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अब होगा S.I.R. पर असली बवाल बंगाल में दीदी का खेल अभी बाकी है!

चुनाव आयोग ने बंगाल के मुख्य सचिव और जिला निर्वाचन अधिकारियों को तैयारी करने के लिए कहा है और निर्देश दिया है कि एसआईआर के लिए अगर भर्तियां करनी हों तो वो भी तुरंत शुरू की जाएं.

बिहार में चल रहे SIR पर चल रहा बवाल तो उस बड़ी पिक्चर का ट्रेलर भर है, जिसमें नायक के तौर पर तेजस्वी यादव और राहुल गांधी दिख रहे हैं. इस कवायद की बड़ी और असली पिक्चर तो दिखनी अभी बाकी है, क्योंकि अब बिहार के बाद एसआईआर बंगाल में होने जा रहा है, जिसके लिए चुनाव आयोग अपनी तैयारियों में जुट गया है. इसी के साथ अब विरोध की कमान बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी संभालने जा रही हैं, जिसमें खेल तो होकर रहेगा. 

बिहार में एसआईआर का विरोध करने का दारोमदार तेजस्वी यादव और राहुल गांधी पर है. वो अपना काम बखूबी कर भी रहे हैं, लेकिन उनकी सबसे कमजोर कड़ी ये है कि दोनों ही नेता प्रतिपक्ष हैं. राहुल गांधी केंद्र में नेता प्रतिपक्ष हैं और तेजस्वी यादव बिहार में. नेता प्रतिपक्ष होने के नाते उनकी कुछ सीमाएं हैं, जिसमें वो राज्य के किसी भी अधिकारी पर किसी तरह का कोई दबाव नहीं बना सकते. नतीजा ये है कि उन्हें वोटर अधिकार यात्रा निकालनी पड़ रही है और जो भी बातें हैं, वो पब्लिक के बीच जाकर करनी पड़ रही हैं.

क्या बंगाल में भी यही होगा? ये सवाल इसलिए है, क्योंकि चुनाव आयोग बंगाल में भी स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन करने जा रहा है. इसके लिए चुनाव आयोग ने बंगाल के मुख्य सचिव और जिला निर्वाचन अधिकारियों को तैयारी करने के लिए कहा है और निर्देश दिया है कि एसआईआर के लिए अगर भर्तियां करनी हों तो वो भी तुरंत शुरू की जाएं.

बंगाल के मुख्य चुनाव अधिकारी मनोज अग्रवाल ने 27 अगस्त को बाकायदा बंगाल के सभी जिलों के जिला निर्वाचन अधिकारियों को इस बारे में पत्र भी लिख दिया है. साथ ही बंगाल के मुख्य सचिव मनोज पंत को भी पत्र लिखकर कहा है कि बंगाल सरकार को इसके लिए तैयारी शुरू करनी होगी, जिसमें खाली पड़े पदों पर भर्ती भी होनी है, लेकिन क्या चुनाव आयोग के लिए बंगाल में एसआईआर करवाना बिहार जितना आसान होगा. जवाब है नहीं...एक तो ममता बनर्जी और उनकी पार्टी टीएमसी इस पूरी एसआईआर प्रक्रिया की ही धुर विरोधी है. दूसरा चुनाव आयोग ने जब बिहार सरकार को एसआईआर करवाने के लिए कहा तो बिहार सरकार ने आपत्ति नहीं जताई क्योंकि बिहार में एनडीए की सरकार है, जिसके मुखिया नीतीश कुमार हैं. तो वहां विरोध का सवाल ही पैदा नहीं होता था.

बंगाल में ममता दीदी हैं. वो खुद इस प्रक्रिया की विरोधी हैं. ऐसे में उनके ही अधिकारियों को एसआईआर के लिए राजी करवाना चुनाव आयोग के लिए टेढी खीर साबित हो सकता है. अगर संवैधानिक संस्थाओं का हवाला देकर चुनाव आयोग बंगाल के मुख्य सचिव, राज्य चुनाव आयुक्त और जिला निर्वाचन अधिकारी से ये प्रक्रिया शुरू करवा भी दे... तो प्रक्रिया पूरी करना उन्हीं अधिकारियों के हाथ में होगा, जो सीधे ममता बनर्जी को रिपोर्ट करते हैं.

ऐसे में चुनाव आयोग के लिए बंगाल के अधिकारियों से अपनी बात मनवाना कतई आसान नहीं होगा. तिस पर तुर्रा ये है कि बंगाल में भी विधानसभा चुनाव में कोई लंबा वक्त नहीं बचा है. अगले साल 2026 के मार्च-अप्रैल में विधानसभा के चुनाव होने हैं. वोटर लिस्ट में सुधार की ये पूरी प्रक्रिया चुनाव से पहले हर हाल में पूरी करनी होगी. ममता बनर्जी का केंद्र सरकार, केंद्रीय संस्थाओं और जांच एजेंसियों से भिड़ने का जो इतिहास रहा है, वो बताने के लिए पर्याप्त है कि बंगाल में एसआईआर की प्रक्रिया बिहार जैसी आसान तो कतई नहीं होगी.

अविनाश राय एबीपी लाइव में प्रोड्यूसर के पद पर कार्यरत हैं. अविनाश ने पत्रकारिता में आईआईएमसी से डिप्लोमा किया है और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ग्रैजुएट हैं. अविनाश फिलहाल एबीपी लाइव में ओरिजिनल वीडियो प्रोड्यूसर हैं. राजनीति में अविनाश की रुचि है और इन मुद्दों पर डिजिटल प्लेटफार्म के लिए वीडियो कंटेंट लिखते और प्रोड्यूस करते रहते हैं.

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