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India On CPEC: चीन और पाक की नापाक कोशिश पर भारत की चेतावनी, कहा- 'अस्वीकार्य है', जानिए पूरा मामला

CPEC Project: सीपीईसी परियोजना में चीन और पाकिस्तान अब दूसरे देशों को भी भागीदार बनाने की तैयारी कर रहे हैं.

India On CPEC: चीन-पाकिस्तान का नापाक गठजोड़ यानि भारत की जमीन हड़पने पर आमादा दो देश. दोनों मुल्क न तो भारत के खिलाफ साजिशों से बाज आते हैं और न ही इस नापाक मंसूबों के कारोबार से. ऐसे ही काले मंसूबों का नमूना है चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा. जिसका एक बड़ा हिस्सा भारत (India) की अवैध तरीके से कब्जाई जमीन पर बनाया गया है. इस कथित सीपीईसी (CPEC) परियोजना पर चीन (China) और पाकिस्तान (Pakistan) अब दूसरे देशों को भी भागीदार बनाने की तैयारी कर रहे हैं. 

भारत ने दोनों पड़ोसियों की इस करतूत पर सख्त चेतावनी दे दी है. भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने दो टूक कह दिया है कि तथाकथित सीपीईसी परियोजना न केवल पूरी तरह अवैध है बल्कि भारत के लिए पूरी तरह अस्वीकार्य है. लिहाजा भारत इसी तरह मानते हुए कार्रवाई करेगा. यह सभी को आगाह करने वाला ऐलान है. विदेश मंत्रालय ने CPEC में भागीदारी की किसी भी कोशिश पर साफ कर दिया कि किसी भी पक्ष का ऐसा कोई कदम भारत की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ माना जाएगा. 

क्यों बना रहे दूसरे देशों को भागीदार?

हालांकि इस बीच सवाल इस बात को लेकर उठता है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि चीन और पाकिस्तान को दूसरे देशों को अपनी इस परियोजना में भागीदार बनाना पड़ा. एक ऐसी योजना जिसे चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर का फ्लैगशिप प्रोजेक्ट कहा जाता है उसके लिए भागीदार तलाशना पड़ रहे हैं. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने बीते दिनों कहा कि CPEC परियोजना को अफगानिस्तान तक बढ़ाया जाना चाहिए. साथ ही पाकिस्तान के नेता इसमें तुर्की, सऊदी अरब और यूएई को भागीदार बनाने की भी बात कर रहे हैं. 

पाकिस्तान के खजाने पर तंगी की मार

दरअसल CPEC के लिए नए साझेदारों के तलाश की वजह है पाकिस्तान के खजाने पर तंगी की मार. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है. पाकिस्तानी रुपया डॉलर के मुकाबले 220 से नीचे जा चुका है. पाकिस्तान की हालत पतली है तो चीन भी आर्थिक मुश्किलों के दौर से गुजर रहा है. ऐसे में दोनों की योजना है कि सिंध में ग्वादर से लेकर गिलगित-बाल्टिस्तान के रास्ते चीन तक जाने वाले इस गलियारे के लिए नए साझेदारी तलाशे जाएं ताकि खर्च का बोझ कुछ कम हो. 22 जुलाई को पाकिस्तान में हुए CPEC की संयुक्त कोऑर्डिनेशन कमेटी ने बाकायदा इस बारे में फैसला कर बयान भी जारी किया था.

जाहिर तौर पर CPEC की परियोजनाएं पाकिस्तान के कब्जे में मौजूद कश्मीर के इलाके से भी गुजरती हैं जिनको लेकर भारत अपना ऐतराज चीन के आगे भी दर्ज कराता आया है. इतना ही नहीं पाकिस्तान के बलूचिस्तान से लेकर सिंध तक कई इलाकों में स्थानीय लोग भी लगातार CPEC पर सवाल उठाते रहे हैं. 

CPEC योजना के आधे प्रोजेक्ट भी पूरे नहीं हुए

हालांकि चीन के कर्ज को फर्ज बना चुके पाकिस्तान में आलम यह है कि करीब 62 अरब डॉलर की लागत वाली CPEC योजना के अभी तो आधे प्रोजेक्ट भी पूरे नहीं हुए हैं. इनकी लागत बढ़ रही है यानी उनसे कोई आमदनी तो दूर अभी तक उनको पूरा करने का ही संकट है. जानकारों का मानना है कि पाकिस्तान के आर्थिक संकट की भी एक बड़ी वजह CPEC परियोजना है क्योंकि इसके लिए पाक को बड़े पैमाने पर आयात करना पड़ा है. जाहिर है आयात ज्यादा हो और निर्यात कम तो विदेशी मुद्रा भंडार को लड़खड़ाएगा ही. ऊपर से कोरोना की मार ने कमर तोड़ दी है.

पाकिस्तान में CPEC पर हुई चीन और पाकिस्तान के वरिष्ठ प्रतिनिधियों की 22 जुलाई को हुई जॉइंट कोऑर्डिनेशन समिति की बैठक के महज दो दिन बाद पाक सरकार ने कैबिनेट की बैठक में सरकारी संपत्तियों में हिस्सेदारी विदेशी कंपनियों को बेचने को मंजूरी दे दी. इसके तहत पाकिस्तान की तेल, गैस और ऊर्जा क्षेत्र से जुड़ी सरकारी संपत्तियों में हिस्सेदारी विदेशी सरकारों को बेची जा सकेंगी. ये कवायद है पाकिस्तान को देनदारियों में डिफॉल्ट से बचाने को लेकर. 

पाकिस्तान की मुश्किलें नहीं हो रही कम 

हालांकि इतना साफ है कि इस तरह के कदमों से भी पाकिस्तान की मुश्किलें अभी कम नहीं हो रहीं. पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष से 6 अरब डॉलर के लोन का भरोसा तो मिल गया है, लेकिन अभी तक 1.7 अरब डॉलर की पहली किस्त का इंतजार बाकी है. इतना ही नहीं पाकिस्तान के सामने संकट इस साल 3.3 अरब डॉलर की विदेशी देनदारियों का है. जिसको चुकाने के लिए उसे खासी जद्दोजहद करनी है. पाकिस्तान की तिजोरी का बही-खाता कर्ज के बोझ से दबता जा रहा है. बीते साल मार्च में ही पाकिस्तान (Pakistan) की देनदारी 380 खरब पाकिस्तानी रुपये तक पहुंच चुकी थी यानि पाकिस्तान की जीडीपी का बड़ा हिस्सा तो विदेशी कर्ज को चुकाने में ही जाएगा. 

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