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Independence Day 2022: स्वतंत्र और सशक्त भारत की बुनियाद में इन वैज्ञानिकों ने निभाई महत्वपूर्ण भूमिका, जानिए उनके योगदान के बारे में

Independence Day News: स्वतंत्रता पूर्व और फिर स्वतंत्र भारत में देश को वैज्ञानिक महाशक्ति बनाने का स्वप्न देखने और उसे साकार करने में जुटे वैज्ञानिकों का योगदान बहुत महत्वपूर्ण है.

Azadi Ka Amrit Mahotsav: भारत (India) इस साल देश की स्वतंत्रता की 75वीं सालगिरह पर आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) मना रहा है. इस दौरान हर घर तिरंगा (Har Ghar Tiranga) अभियान चलाया जा रहा है. देशवासियों के दिलों में देशभक्ति की भावना जगाने के इरादे से इस अभियान की शुरुआत की गई है. इस अभियान के तहत 13 से 15 अगस्त तक देश के हर घर में राष्ट्रीय ध्वज (National Flag) फहराने की योजना बनाई गई है. सरकार लोगों को इस अभियान से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित भी कर रही है. 

आजादी के इस अमृत महोत्सव में जश्न मनाने के साथ-साथ उन लोगों को भी याद किया जा रहा है, जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया. बीते 75 सालों में देश के अलग-अलग राज्यों में ऐसे लोग भी हुए जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों में अपने उत्कर्ष कार्यों से दुनियाभर में भारत को एक अलग पहचान दिलाने में मदद की. वैसे तो भारत को संतों का देश कहा जाता है लेकिन विज्ञान के क्षेत्र में देश ने अपनी अलग पहचान बनाई है. आइए आपको बताते हैं देश के ऐसे ही लोगों के बारे में जिन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में भारत को एक अलग पहचान दिलाई.

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम

'भारत के मिसाइन मैन' के नाम से प्रसिद्ध डॉ एपीजे अब्दुल कलाम (Dr APJ Abdul Kalam) का स्वभाव जितना सरल था वह उतने ही बड़े वैज्ञानिक थे. अब्दलु कलाम ने दस सालों की कड़ी मेहनत से जुलाई 1980 को उपग्रह रोहिणी को सफालतापूर्वक अंतरिक्ष की कक्षा में लॉन्च कराया. भारत का पोखरण-2 परमाणु परीक्षण (Pokhran-2 Nuclear Test) उन्हीं की देन था. उन्होंने पोखरण में दूसरी बार न्यूक्लियर विस्फोट भी परमाणु ऊर्जा के साथ मिलाकर किया. इस तरह भारत ने परमाणु हथियार के निर्माण की क्षमता प्राप्त करने में सफलता हासिल की. बता दें वह प्रथम वैज्ञानिक हैं जो राष्ट्रपति बने हैं. वहीं, वह तीसरे ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें राष्ट्रपति बनने से पहले भारत रत्न से नवाजा गया. 

सर सीवी रमन

सर सीवी रमन (C V Raman) को किसी पहचान की आवश्यकता नहीं है. उनके द्वारा किए गए कार्य ही उनकी पहचान हैं. हर साल 28 फरवरी को सीवी रमन के सम्मान में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस (National Science Day) के रूप में मनाया जाता है. साल 1928 में इसी दिन उन्होंने अपनी खोज रमन प्रभाव या रमन इफेक्ट का ऐलान किया था. उनकी इसी खोज के लिए उन्हें साल 1930 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए साल 1954 में भारत सरकार ने सीवी रमन को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा था. 

डॉ. अनिल काकोडकर

डॉ. अनिल काकोडकर (Dr. Anil Kakodkar) का नाम भारत के प्रख्यात परमाणु ऊर्जा वैज्ञानिकों में गिना जाता है. उन्होंने भारत के परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष पद समेत भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग के सचिव पद पर काम किया है. इसके अलावा वह करीब चार साल तक ‘भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर‘ के डायरेक्टर भी रह चुके हैं. 1974 और 1998 के भारत द्वारा परमाणु परीक्षण के समय वे इस टीम के प्रमुख सदस्य के रूप में शामिल थे. परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में देश को आत्म-निर्भर बनाने की दिशा में उठाए गए उनके उत्कृष्ट कदम अत्यंत ही सराहनीय रहे हैं. 

रक्षा के क्षेत्र में खासकर परमाणु पनडुब्बी के पावरपैक तकनीक के प्रदर्शन में उनका योगदान माना जाता है. साथ ही ध्रुव रिएक्टर के डिजाइन और उसके निर्माण में भी डॉ अनिल काकोडकर का प्रमुख भूमिका रही है. वैज्ञानिक अनिल काकोदकर को भारत सरकार ने वर्ष 1998 में पद्मश्री, वर्ष 1999 में पद्म भूषण और वर्ष  2009 को पद्म विभूषण से विभूषित किया. 

डॉ होमी जहांगीर भाभा 

डॉ होमी जहांगीर भाभा (Dr. Homi Jehangir Bhabha) ने भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की कल्पना की और भारत को परमाणु शक्ति सम्पन्न तथा वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में अग्रसर होने का मार्ग प्रशस्त किया. उन्हें भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का जनक भी कहा जाता है. कॉस्मिक किरणों पर उनकी खोज के चलते उन्हें विशेष ख्याति मिली. उनकी उपलब्धियों को देखते हुए साल 1944 में मात्र 31 साल की उम्र में उन्हें प्रोफेसर बना दिया गया. वर्ष 1957 में भारत ने मुंबई के करीब ट्रांबे में पहला परमाणु अनुसंधान केंद्र स्थापित किया. साल 1967 में इसका नाम बदलकर भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र कर दिया गया. 

मंजुल भार्गव

गणित का नोबेल फील्ड्स मेडल जीतने वाले पहले भारतवंशी 40 वर्षीय मंजुल भार्गव (Manjul Bhargava) को नंबर थ्योरी का विशेषज्ञ माना जाना जाता है. जब वह 8 साल के थे उस समय उन्हें संतरे गिनने में दिक्कत हुई तो उन्होंने फॉर्मूला बनाने की ठानी. महीनों तक मेहनत करने के बाद आखिरकार उन्होंने फॉर्मूला बनाकर ही दम लिया. इसके बाद वह पिरामिड देख कर बता देते थे कि ठेले पर कितने फल लगे हैं. उन्होंने 2001 में प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी (Princeton University) से पीएचडी की पढ़ाई के दौरान  नंबर थ्योरी की 200 साल पुरानी प्रॉब्लम को चुटकियों में हल कर दिया. भार्गव ने ब्रह्मगुप्त के संस्कृत में लिखे सिद्धांत को फेमस रयूबिक क्यूब पर लागू किया और 18वीं सदी के गाउस के लॉ को ज्यादा आसान तरीके से समझाने में कामयाबी हासिल की.

वेंकटरमण रामकृष्णन 

भारतीय मूल के वैज्ञानिक वेंकटरमण रामकृष्णन (Venkataraman Ramakrishnan) को रसायन शास्त्र का नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. तमिलनाडु के चिदंबरम जिले में जन्में रामकृष्णन ने 1976 में एक अमेरिकन यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री ली थी. वह काफी समय तक कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के मॉलिक्यूलर बायॉलजी डिपार्टमंट से जुड़े रहे.

विक्रम सारा भाई

विक्रम साराभाई (Vikram Sarabhai) का बचपन से ही विज्ञान के प्रति उनका लगाव बहुत अधिक था. बता दें कि साराभाई के नेतृत्व में कॉस्मिक किरणों का निरीक्षण करने वाले नए दूरबीनो का निर्माण किया गया. उन्होंने डॉक्टर होमी भावा के सहयोग से भारत में पहला रॉकेट लॉन्च इंप्रेशन स्थापित किया. भारत में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की शुरुआत करने का श्रेय भी विक्रम सारा भाई को ही जाता है. उन्होंने नासा के साथ मिलकर साल 1975 से लेकर 1976 के दौरान सेटेलाइट सफल टेलिविजन एक्सपेरिमेंट लॉन्च किए. विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण और पदम भूषण सम्मान नवाजा. 

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