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'कट-कॉपी-पेस्ट' भी नहीं जानते हैं लोग, जानिए डिजिटल इंडिया की हकीकत

आज प्राइवेट से लेकर सरकारी तक सभी काम ऑनलाइन किए जरूर जा रहे हैं, लेकिन क्या सच में देश के हर एक नागरिक में डिजिटल लिटरेसी है?

आपने आखिरी बार कागज पर कोई काम कब किया होगा शायद आपको याद न हो. इसकी वजह बैंकिंग से लेकर कॉर्पोरेट तक के सभी कामों का पूरी तरह से डिजिटलीकरण हो जाना है. लेकिन आज से 10 साल पहले भारतीय इतने डिजिटलाइज नहीं थे. एक दशक पहले तक सिर्फ 13 प्रतिशत भारतीय ऐसे थे जिनकी पहुंच इंटरनेट तक थी. 

हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान जहां पर उस दौर में केवल 9 प्रतिशत और बंग्लादेश में 6 प्रतिशत लोगों तक ही इंटरनेट की पहुंच थी.  वहीं चीन में 46 प्रतिशत और अमेरिका में 71 प्रतिशत और ब्रिटेन में 90 प्रतिशत लोगों तक इंटरनेट की पहुंच थी. 

2018 में पूरे देश में डिजिटल इंडिया की शुरुआत हुई जिसका मकसद 2023 तक भारत के सभी गांवों और ग्राम पंचायतों को पूरी तरह से डिजिटलीकरण करना, सारे सरकारी काम ऑनलाइन कर देना और देश के प्रत्येक नागरिकों को 100 प्रतिशत डिजिटल तौर पर साक्षर करना था.

डिजिटल इंडिया की ये मुहिम काफी हद तक कारगर हुई है, क्योंकि आज प्राइवेट से लेकर सरकारी तक सभी काम ऑनलाइन किए जरूर जा रहे हैं, लेकिन क्या सच में देश का हर एक नागरिक इस डिजिटल तौर तरीकों को अपना चुका है. इसको जानने के लिए एक सर्वे किया गया है. इसका जवाब एक सर्वे में मिल चुका है. आइये जानते हैं. 

मार्च 2023 में, नेशलन सेंपल सर्वे रिपोर्ट में बुनियादी चीजों का डाटा पेश किया गया. पानी, स्वच्छ शौचालय, ईंधन , शिक्षा, बैंकिंग के अलावा लोगों से उनकी कंप्यूटर दक्षता के बारे में भी पूछा गया. 

कंप्यूटर दक्षता को लेकर कुछ अहम बातें सामने आईं

  • 75.4 प्रतिशत भारतीयों को कंप्यूटर फोल्डर बनाना नहीं आता.
  • 76. 7 प्रतिशत भारतीयों को एक डॉक्यूमेंट से जानकारी कॉपी, पेस्ट करना नहीं आता.
  • 84. 4 प्रतिशत भारतीयों को अटैचमेंट के साथ मेल करना नहीं आता.
  • 87.5 प्रतिशत भारतीयों को कंप्यूटर में नया सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करना नहीं आता.
  • 92.5 प्रतिशत भारतीयों को एक डिवाइस में दूसरा डिवाइस कनेक्ट करना नहीं आता.
  • 94.1 प्रतिशत भारतीयों को स्प्रेडशीट पर काम करना नहीं आता.
  • 94. 9 प्रतिशत भारतीयों को प्रेजेंटेशन बनाना नहीं आता.
  • 98.6 प्रतिशत भारतीयों को कंप्यूटर प्रोग्राम बनाना नहीं आता.

ग्रामीणों के लिए परेशानी का सबब बना डिजिटलीकरण? 

यही वजह है कि जब कोरोना का टीका ऑनलाइन लगवाने की पहल हुई तो गांवों में लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को जनवरी 2023 में पूरी तरह से डिजिटल कर दिया गया. इसमें हर दिन प्रत्येक श्रमिक की दो जियो-टैग की गई तस्वीरें ऐप के सुपरवाइजर से क्लिक करके अपलोड करने का नियम बना दिया गया है. 

इस नियम से परेशान आ कर कई महिलाओं ने अपना काम छोड़ दिया. वजह इन महिलाओं के पास न तो स्मार्टफोन था न इंटरनेट की पहुंच. कुछ के पास स्मार्टफोन तो था लेकिन इंटरनेट की पहुंच नहीं थी. हालांकि सरकार ने ग्रामीणों की इस परेशानी को देखते हुए इस नियम को पूरी तरह से ऑफलाइन कर दिया है. 

हैरान करने वाली बात ये है कि शहरी इलाकों में भी कंप्यूटर को लेकर लोगों में ज्यादा जानकारी नहीं है. नेशलन सैंपल सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक 15 प्रतिशत शहरी जनता में करीब 7.5 प्रतिशत लोगों को ही एक डिवाइस से दूसरा डिवाइस कनेक्ट करने आता है, वहीं ग्रामीण इलाकों में केवल 4 प्रतिशत लोगों को ही एक डिवाइस से दूसरा डिवाइस कनेक्ट करने आता है. 

भारतीय महिलाएं या पुरुष कौन है ज्यादा डिजिटली साक्षर

इसी रिपोर्ट में ये पता चला कि पुरुष महिलाओं के मुकाबले ज्यादा डिजिटल साक्षर हैं. रिसर्च में 31 प्रतिशत पुरुषों ने ये बताया कि उन्हें कंप्यूटर के डॉक्यूमेंट में डेटा कॉपी पेस्ट करना आता है. वहीं केवल 18 प्रतिशत महिलाओं को ही कंप्यूटर के डॉक्यूमेंट में डाटा कॉपी पेस्ट करने की जानकारी है. 

तो क्या आज के बच्चों में डिजिटल साक्षरता ज्यादा होगी?

इसका जवाब जानने के लिए इस रिसर्च में 20 से 25 साल के युवा लड़के और लड़कियों से ये पूछा गया कि उन्होंने आखिरी बार कंप्यूटर का इस्तेमाल कब किया था तो जवाब बहुत संतोषजनक नहीं थे.

83 प्रतिशत लड़कों ने कहा कि उन्होंने हाल ही में कंप्यूटर का इस्तेमाल किया, लेकिन वहीं 57 प्रतिशत महिलाओं ने हाल ही में कंप्यूटर का इस्तेमाल करने की बात कही. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत में होने वाला विकास हमेशा की तरह आज भी भेदभावपूर्ण रहेगा. अगर हमारी डिजिटल अर्थव्यवस्था सभी जेंडर को एक साथ लेकर नहीं चल रही है.

मदरसों में सबसे कम कंप्यूटर का इस्तेमाल

पूरे भारत में, केवल 29 प्रतिशत शिक्षक पढ़ाने के दौरान कंप्यूटर का इस्तेमाल करते हैं. मदरसों में कंप्यूटर का इस्तेमाल सबसे कम है. वक्फ की तरफ से मान्यता प्राप्त स्कूलों में 7 फीसदी टीचरों को कंप्यूटर ती थोड़ी -बहुत समझ है. आदिवासी कल्याण विभाग द्वारा संचालित स्कूलों में 13 फीसदी टीचरों को कंप्यूटर की थोड़ी-बहुत जानकारी है. 

वहीं केंद्रीय विद्यालयों में 79 फीसदी बच्चों और सैनिक स्कूलों में 84 फीसदी के बच्चों को कंप्यूटर की अच्छी जानकारी है. इन स्कूलों के टीचरों को भी कंप्यूटर की जानकारी है. बता दें कि भारत के 40 प्रतिशत से कम स्कूलों में कंप्यूटर हैं और सिर्फ 34 प्रतिशत के पास इंटरनेट है . 

डिजिटल इंडिया का दावा करने के बाद भी पूरे देश में इंटरनेट कवरेज लगभग 100 के करीब नहीं है. इसलिए कंप्यूटर को लेकर बेसिक पढ़ाई भी पूरे देश में नहीं पहुंच पाई है. जबकि पूरे देश में कंप्यूटर पहुंचाना डिजिटल इंडिया का हिस्सा रहा है.

डिजिटल इंडिया शुरू होने के एक साल बाद 10.6 करोड़ नए ग्राहक इंटरनेट से जुड़े हैं. लेकिन कोरोना के बाद साल 2021 में 4 लाख सब्सक्राइबर्स की गिरावट देखी गई. यहां भी शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों का बहुत फर्क देखा गया था. देश के 85 करोड़ इंटरनेट उपभोक्ताओं में से 51 करोड़ शहरों में और सिर्फ 34 करोड़ गांवों में हैं.

अलग-अलग सरकारों ने इंटरनेट को बढ़ावा देने के लिए क्या कदम उठाए 

डिजिटल इंडिया की शुरुआत  बीजेपी सरकार ने की. हालांकि पूर्व की यूपीए सरकार ने भी भी देश को डिजिटल करने की कोशिशें की हैं. कांग्रेस ने ही ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क का नाम बदलकर भारतनेट किया था. यह एक राष्ट्रव्यापी ब्रॉडबैंड नेटवर्क परियोजना थी. तब की कांग्रेस सरकार का कहना था कि  2020 तक लोगों को 2 एमबीपीएस की इंटरनेट की स्पीड दी जाएगी. इसके बाद बीजेपी ने ये कहा कि  2 एमबीपीएस कम स्पीड है, 20 एमबीपीएस की स्पीड देंगे.

ब्रॉडबैंड स्पीड की परिभाषा नौ साल बाद फरवरी 2023 में बदली. अब इंटरनेट की न्यूनतम  स्पीड 512 केबीपीएस से 2 एमबीपीएस तक है. अमेरिका में एक ब्रॉडबैंड कनेक्शन न्यूनतम 25 एमबीपीएस डाउनलोड स्पीड देता है.

बीजेपी सरकार ने हाल ही में ये कहा है कि भारतनेट ब्रॉडबैंड को सभी ग्राम पंचायतों तक पहुंचाया जाएगा. अभी 1.9 लाख से ज्यादा ग्राम पंचायतों को इंटरनेट की सुविधा दी जा रही है.  

मार्च 2023 में, सरकार ने इंटरनेट कनेक्टिविटी को लेकर संसद में डेटा शेयर किया. इसके मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक 100 लोगों पर सिर्फ 38 इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में 105 लोगों में से 100 लोग इंटरनेट यूजर हैं. भारतनेट के तहत हाई स्पीड ब्रॉडबैंड कनेक्शन की संख्या पिछले दो सालों में 3 लाख तक कम हुई है.

इंटरनेट का इस्तेमाल मानव अधिकार

2012 में, कांग्रेस सरकार ने "ब्रॉडबेड के अधिकार" को मान्यता देने की बात कही थी. संयुक्त राष्ट्र ने 2016 में इंटरनेट के इस्तेमाल को मानव अधिकार घोषित किया था. इसके बाद कई देशों ने भी इंटरनेट के इस्तेमाल को मानव अधिकार घोषित किया. इसमें फ्रांस, फिनलैंड, एस्टोनिया, ग्रीस शामिल है. भारत में केरल के उच्च न्यायालय ने 2019 में कहा था कि इंटरनेट तक पहुंच एक मौलिक अधिकार है जिसे छीना नहीं जा सकता है. 

आए दिन इंटरनेट पर पाबंदी लगाती है सरकार

हाल ही में अमृतपाल सिंह की तलाश के सिलसिले में पंजाब के सभी राज्यों में चार दिनों के लिए इंटरनेट बंद कर दिया गया था.  इस साल की एक रिपोर्ट में भारत लगातार पांचवें साल दुनिया के 187 में से 84 सबसे ज्यादा इंटरनेट शटडाउन करने वाले वाले देश बना. दूसरे स्थान पर यूक्रेन था, जिसने साल 2022 में 22 बार इंटरनेट शटडाउन किया. इसके बाद ईरान में 18  बार इंटरनेट बंद किया गया.   

भारत में इंटरनेट की स्पीड 76  देशों की तुलना में कम, लेकिन दाम ज्यादा 

भारत में इंटरनेट की स्पीड में निश्चित रूप से सुधार हुआ है.  2017 में औसत डाउनलोड की स्पीड 2 एमबीपीएस थी जो अब  32 एमबीपीएस है.  लेकिन फिर भी यह वैश्विक स्तर पर 77 वें स्थान पर है.  ब्रॉडबैंड रिसर्च साइट केबल के डेटा के आधार पर दुनिया भर में इंटरनेट की स्पीड बढ़ रही है. 

5 GB की एक फिल्म को डाउनलोड कितना समय लगता है

अमेरिका- 5 मिनट, 47 सेकेंड

ब्रिटेन- 9 मिनट, 28 सेंकेड

भारत- 21 मिनट, 3 सेकेंड

बंग्लादेश- 3 घंटा, 2 मिनट, 32 सेंकेड

पाकिस्तान- 3 घंटा, 12 मिनट , 18 सेंकेड 

2017 में भारत में वायरलाइन ब्रॉडबैंड ग्राहकों (टेलीफोन) की संख्या में कमी आई . इसी साल भारत में 13 करोड़ से ज्यादा नए मोबाइल फोन उपयोगकर्ताओं जुड़ें.  2017 के आखिर तक वायरलेस ब्रॉडबैंड यानी मोबाइल फोन से 53 करोड़ ग्राहक जुड़ें. नेशलन सेंपल सर्वे रिपोर्ट 70% से ज्यादा भारतीयों ने कहा कि वे मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं.  

भारत में ब्रॉडबैंड की कीमतें औसतन 826 रुपये प्रति माह पर हैं. ये कीमत सुनने में सस्ती लग सकती हैं लेकिन ज्यादातर भारतीय इसे मंहगा मानते हैं.  2020 और 2023 के  बीच मोबाइल डेटा की कीमतें 89% बढ़ी हैं. पिछले आठ सालों में मोबाइल डेटा की कीमतें सबसे मंहगे स्तर पर हैं. 

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