गूगल ने अपना डूडल इस्मत चुगताई को किया समर्पित
लिहाफ', 'टेढ़ी लकीर', एक बात, कलियाँ, जंगली कबूतर, एक कतरा-ए-खून, दिल की दुनिया, बहरूप नगर, छुईमुई इस्मत की साहितत्यिक कृतियां हैं. वर्ष 1941 में उन्होंने 'लिहाफ' नाम की कहानी लिखी. उन्होंने इस कहानी में महिलाओं की समलैंगिकता के बारे में लिखा

नई दिल्ली: गूगल समय-समय पर अपने लोगो को किसी समारोह के अवसर पर, विशेष घटनाओं पर, विशेष व्यक्तियों के जन्मदिवस और पुण्यतिथि के अवसर पर गूगल डूडल के नाम से बनाता है. गूगल डूडल एक प्रकार से गूगल के लोगो में अस्थाई परिवर्तन होता है. इस बार गूगल डूडल को इस्मत चुगताई के जन्मदिवस पर समर्पित किया गया है. मंगलवार को उनका 103वां जन्मदिवस है. इस्मत देश की जानी-मानी साहित्यतकारों में से एक हैं. अपने साहित्य में महिला पात्रों को जगह देने के कारण उनके साहित्य ने एक अलग मुकाम स्थापित किया है. पुरूष प्रधान समाज में महिलाओं की भूमिका को दृढ़ता से स्थापित करने के कारण उनकी तुलना प्रेमचंद से की जाती है. जहां प्रेमचंद के साहित्य के किरदार गांव की विशेषता बताते है तो वहीं इस्मत के साहित्य के किरदार महिलाओं की विशेषता बतलाते हैं.
लिहाफ', 'टेढ़ी लकीर', एक बात, कलियाँ, जंगली कबूतर, एक कतरा-ए-खून, दिल की दुनिया, बहरूप नगर, छुईमुई इस्मत की साहितत्यिक कृतियां हैं. वर्ष 1941 में उन्होंने 'लिहाफ' नाम की कहानी लिखी. उन्होंने इस कहानी में महिलाओं की समलैंगिकता के बारे में लिखा. इस कहानी के कारण इतना विवाद हुआ कि उन पर अश्लीलता फैलाने का मामला चला. मामले को बाद में वापस ले लिया गया. उर्दू भाषा के साहित्य में जितनी बेबाकी से इस्मत ने अपनी बात रखी है, शायद उतनी बेबाकी से किसी ने अपनी बात नहीं रखी. इस्मत ने अपनी कृतियों में ठेठ मुहावरेदार शब्दों का प्रयोग किया है.
इस्मत की एक अन्य कृति को लेकर भी विवाद रहा. उनकी एक कहानी 'टेढ़ी लकीर' को लेकर काफी विवाद रहा. टेढ़ी लकीर एक ऐसी परिवार की कहानी बयान करती है, जिनके बच्चों की परवरिश सही तरीके से नहीं होती है फिर वे प्यार के लिए तरसते हैं. तत्कालीन समय में इस कहानी को समाज ने स्वीकार नहीं किया था.
इस्मत चुगताई का जन्म 21 अगस्त 1915 को उत्तरप्रदेश के बदायूं जिले में हुआ था. वे अपने माता-पिता की नौवीं संतान थी. इस्मत के पिता सिविल सेवक होने के कारण उनके बचपन का ज्यादातर समय जोधपुर में बीता. अपने बड़े भाई मिर्जा आजिम बेग चुगताई से उन्होंने लेखन की कला सीखी. मिर्जा आजिम बेग उर्दू के जाने-माने लेखक रहे हैं. अपनी साहित्यिक कृतियों के लिए साहित्य अकादमी अवॉर्ड, गालिब अवॉर्ड, इकबाल सम्मान आदि मिला. भारत सरकार ने इस्मत के साहित्य के क्षेत्र में अपूरणीय योगदान के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया. इस महान शख्सियत का निधन 24 अक्टूबर 1991 को मुंबई में हुआ.
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