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क्या शीतलहर पर पड़ा ग्लोबल वार्मिंग का असर? इस सर्वे में निकाला गया 60 से 70 सालों का रिकॉर्ड, जानें क्या हुए खुलासे
Survey On Cold Wave: इंडियन इन्स्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी (IITM) के सर्वे में पता लगाया गया कि क्या शीतलहर पर ग्लोबल वार्मिंग का कोई असर देखने को मिला. यहां पढ़िए क्या कहता है सर्वे.
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Cold Wave In India: भारत ने भले ही हाल के दशकों में कई रिकॉर्ड तोड़ गर्मी क्यों न देखी हो लेकिन ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के बावजूद शीतलहर (Cold Wave) में भी किसी तरह की कोई कमी नहीं आई है. इंडियन इन्स्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी (IITM) ने इसे लेकर एक सर्वे किया. आईआईटीएम के वैज्ञानिक राजू मंडल और सुस्मिता जोसेफ ने बताया कि पिछले सात दशकों यानी 1951-2022 तक हुई शीतलहर पर सर्वे किया गया.
इस सर्वे में पाया गया कि अब पहले से ज्यादा शीतलहर में बढ़ोतरी हुई है. पिछले दशकों और हाल के दशकों की तुलना की जाए तो शीतलहर के दिनों में इजाफा देखा गया है. पूर्व और पश्चिम मध्य प्रदेश, झारखंड, विदर्भ, मराठवाड़ा, उत्तर प्रदेश, बिहार और उत्तर-पश्चिम भारत के कुछ क्षेत्र जैसे छत्तीसगढ़, हरियाणा, चंडीगढ़ और दिल्ली सबसे ज्यादा शीतलहर के प्रकोप में रहे हैं. 2011-2021 की अवधि के दौरान, मध्य और पूर्वी भागों में, शीत लहर के दिनों की औसत संख्या में प्रति दशक पांच दिनों से अधिक और यहां तक कि प्रति दशक 15 दिनों से ज्यादा की वृद्धि हुई है.
शीतलहर के दिनों में बढ़ोतरी
भारत में कोर शीत लहर क्षेत्र के मध्य और पूर्वी हिस्सों में 1951-2011 से अधिकांश दशकों के दौरान प्रति 10 वर्षों में 2-5 शीतलहर के दिन रिकॉर्ड किए जाते थे. 2021 में यह बढ़कर लगभग 5-15 दिन हो गया. इसलिए यह कहा जा सकता है कि शीतलहर की घटनाएं हाल के दिनों में पहले से ज्यादा हुई हैं. आंकड़ों से यह भी पता चला है कि पिछले 20 साल की अवधि के दौरान हरियाणा, चंडीगढ़ और दिल्ली के कुछ हिस्सों में शीतलहर के दिनों में प्रति दशक 5-10 दिन की वृद्धि हुई है, जबकि पिछले दशकों में यह औसतन 2-5 थी.
क्यों हुई शीतलहर के दिनों में बढ़ोतरी?
स्टडी में पाया गया कि पिछले आठ दशकों के दौरान हुई सबसे लंबी शीत लहरें (लगभग 61 प्रतिशत) भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर (Equatorial Pacific Ocean) में वायु दाब सामान्य से ज्यादा होने यानी ला नीना स्थितियों से जुड़ी थीं. मंडल ने कहा. यह सर्वे यह देखने के लिए किया गया था कि कहीं ग्लोबल वार्मिंग के कारण शीतलहर में तो कमी नहीं आई है.
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