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Deepawali 2022: कोरोना के बाद, LED लाइट्स ने बाजार में मचाई धूम, लेकिन आस्था के कारण दीपों की पहचान बरकरार

Diwali 2022: एक महिला ने कहा, मुझे मिट्टी के दिए ही ज़्यादा पसंद आते हैं क्योंकि इसके साथ आस्था जुड़ी है. जो लोग अपनी मिट्टी से जुड़े हैं उनको बढ़ावा देना है.

Deepawali 2022: दीपावली से पहले, तरह तरह के दीये, एलईडी लाइट्स, मोमबत्ती से बाजार सज चुके हैं और लोग बड़ी तदाद में खरीदारी कर रहे हैं. कोलकाता के बाजार में इतने प्रकार की चीजें रोज आती हैं, लेकिन दीये अब भी अपनी रोशनी से घरों रोशन कर रहे हैं. कोरोना महामारी के कारण दो साल के भारी नुकसान के बाद, दुकानदारों का व्यवसाय आखिरकार दीपावली से पहले फिर से पटरी पर लौट आया है. 

कोलकाता में मोमबत्ती की दुकान चलाने वाले मोहम्मद शमी ने बताया कि "हमारे पास अलग-अलग मॉडल के आइटम हैं. पहले पानी में बहने वाला कोई आइटम नहीं था, लेकिन अब पानी में बहने वाले आइटम ही ज़्यादा बिक रहे हैं. कीमतों में 30 फीसदी की बढ़त आई है. खरीदार तो पहले जैसे ही हैं उसमें कुछ बदलाव नहीं हुआ है. पहले सादी मोमबत्ती बनती थी तो लोग आराम से थोड़ा-थोड़ा ले जाते थे, अभी मोमबत्तियों में जितनी डिजाइन बढ़ी है उतनी बिक्री भी बढ़ी है. इसकी वजह से मोमबत्ती ज्यादा बिक रही है."

कोलकाता के बाजारों में दुकानों पर फेयरी लाइट और एलईडी बल्ब से लेकर बिजली के लैंप, पेपर लैंप, मोमबत्तियां, बहु-रंग के बल्ब और एलईडी दीयों की एक विशाल विविधता बिक रही है. दिवाली से पहले, लोगों को घर की सजावट के सामान, दीया के साथ ही एलईडी लाइट के तार खरीदते देखा जा रहा है.

मोमबत्ती की मांग क्यों बढ़ी?

बदलते वक़्त के साथ दीये की मांग क्यों कम हो रही है और मोमबत्ती की मांग क्यों बढ़ रही है? इसके बारे में मोमबत्ती के व्यापारी तुहिन मुखर्जी ने कहा, "सबसे पहले चीनी एलईडी लाइटों ने मोमबत्ती के लिए समस्या खड़ी कर दी है. दूसरी बात हम मार्केट का भाव वो इतना ज्यादा बढ़ गया है कि लोगों को समस्या हो रही है. 

तुहिन मुखर्जी ने कहा, हम लोग थोड़ा अलग काम करते हैं क्योंकि सादा और स्टैंड मोमबत्ती में में ज़्यादा मोम लगता है, इसलिए इसका दाम भी ज़्यादा होता है. इसके साथ ही मोमबत्ती कई समारोह में काम आती है जैसे- जन्मदिन पार्टियां, तैरती मोमबत्तियां, सुगंधित मोमबत्तियां इसीलिए हम अलग-अलग डिजाईन बनाते हैं. हर साल हम 3-4 नए डिजाईन ले कर आते हैं. इस साल भी लाए हैं. 

दोगुनी हुई चीजों की कीमतें

तुहिन मुखर्जी ने कहा, बाजारों में चीजों की बढ़ते दाम और महंगाई की वजह से लोगों की पसंद भी बदल गई है. दिवाली के समय जो मोम का भाव होता था वो अब बढ़ गया है. हम मोमबत्ती, 18% के जीएसटी रेट में खरीते हैं, मगर वो बिकता 12% के भाव में है. वहीं, अगरबत्ती पर कोई जीएसटी नहीं है, लेकिन मोमबत्ती में जीएसटी है. दोनों ही चीजें पूजा के काम आती हैं यह बात ठीक नहीं है. 


Deepawali 2022: कोरोना के बाद, LED लाइट्स ने बाजार में मचाई धूम, लेकिन आस्था के कारण दीपों की पहचान बरकरार

उन्होंने कहा, किसी चीज का दाम कम नहीं हो रहा, बल्कि वो बढ़ता ही जाता है. लेकिन बढ़ने का एक तरीका होना चाहिए. यह एक बार में 120 रुपये से 165 रुपये हो जाए तो हमें भी समस्या होती है. पहले हम 1 टन मोम 1 लाख रुपये में खरीदते थे, लेकिन अब इसका दाम एक लाख 65 हजार रुपये हो गए हैं. 2 टन खरीदने के जितने रुपये लगते थे उसके लगभग अब 1 टन खरीदने में लगते हैं. इसके साथ ही गैस के दाम भी काफी ज़्यादा हैं और उत्पाद का रंग और अन्य सामान की भी कीमतें बढ़ी हैं. कोविड के बाद परिवहन लागत बहुत अधिक बढ़ गई है. 

लोगों ने दीये खरीदने में की कटौती

दीये के व्यापारी राजू माली ने बताया "एलईडी के वजह से दीये में थोड़ा फर्क पड़ता है. लोगों के पास ज़्यादा समय भी नहीं होता है इसलिए लोग अब मोमबत्ती ज़्यादा इस्तेमाल करना पसंद करते हैं. इसके उपर से महंगाई भी ज्यादा बढ़ गई है. महंगाई का असर दीये पर भी हुआ है. पहले जो लोग 100 दीये लेते थे वो अभी 50 -60  दीये ही खरीद रहे हैं. वहीं जो 50 लेते थे वो 11 पर चले आए हैं. हमारी बिक्री भी काफी कम है, अब पहले जैसी बात नहीं रही."

राजू माली ने आगे कहा, अब लोगों के पास पैसे की भी दिक्कत है ऊपर से महंगाई बढ़ती जा रही है. हमको लगता है इस बार तो बहुत ज़्यादा फर्क पड़ा है. अभी दिवाली का आखिरी दौर चल रहा है. इसमें क्या होता है यह बोलना मुश्किल है पर असर तो बहुत है. दीये के व्यापर पर एलईडी लाइट्स और मोमबत्ती दोनों से ही असर पड़ा है."

हालांकि पिछले दो वर्षों के मुकाबले इस बार बाजार में तेजी देखी जा रही है. दीया बेचने वाले दुकानदार खुश नजर आ रहे हैं. दुकानदार श्याम सिंह का कहना है कि "इस बार बाजार बढ़िया है और बिक्री भी अच्छा है. मोमबत्ती और दीया के मुकाबले एलईडी की बिक्री ज्यादा है. लॉकडाउन के बाद से बाजार अच्छा चल रहा है. मोमबत्ती और दीये का दाम बढ़ गया है इसलिए लोग एलईडी लाइट्स ज़्यादा खरीद रहे हैं."

क्यों बदल गई लोगों की पसंद?

तुहिन मुखर्जी ने बताया, "सब लोगो की पसंद अलग हो गई है. अभी लोग सोचते हैं कि दिवाली में पैसे देकर ज़्यादा मोमबत्तियां मिलेंगी. लेकिन हमारे पास 5-10 पीसेज की पैकिंग है. लोग तैरने वाली और सुगंधित मोमबत्तियां लेते हैं, लेकिन सबकी पसंद अलग-अलग है. सबसे बड़ी बात है कि हम पहले घरों को दीयों और मोमबत्तियों से सजाते थे, लेकिन अब मार्केट में लाइट्स के चलन के बाद लोग वही अपने घरों में लगा रहे हैं. समस्या यह भी है कि मोमबत्ती 4 घंटे जलती है लेकिन वो एक लाइट दो-तीन साल चल जाएगी."

कुछ लोगों को दीये ही पसंद

खरीदारी करने आई एक ग्राहक अरुंधति दास ने कहा कि "दीया और मोमबत्ती बहुत सालों से चलती आ रही भारतीय परंपरा है. हमारे यहां 100-200 या उससे भी ज़्यादा सालों से दीया जलाने की परंपरा है. तब हमारे पास एल.ई.डी. बत्तियां भी नहीं होती थीं. एल.ई.डी. बत्तियों को आए तो अभी कुछ साल ही हुए हैं. दीया और मोमबत्ती एक परंपरा भी है और मुझे अच्छे भी लगते है इसलिए ख़रीदा है."

वहीं, खरीदारी करने आई एक दूसरी महिला का मानना है कि अगर हम दीये नहीं खरीदेंगे तो अगली पीढ़ी को अपनी परंपरा के बारे में क्या बताएंगे? "मैं सजावट के लिए एलईडी लाइट्स को भी प्राथमिकता दे रही हूं क्योंकि इसमें बहुत सारी किस्में भी हैं. ये भी बहुत अच्छी लगती हैं. हम उन लाइट्स का दुबारा से इस्तेमाल कर सकते हैं.

महिला ने आगे कहा, "मुझे मिट्टी के दीये ही ज़्यादा पसंद आते हैं क्योंकि इसके साथ आस्था जुड़ी है. जो लोग अपनी मिट्टी से जुड़े हैं उनको बढ़ावा देना है. अपनी मिट्टी की यह संस्कृति भी है और यह हमेश चलती रहे. अगर हम करेंगे तभी मेरे बेटे-बहू भी सीखेंगे. यह ऐसे भी कम हो रहा है. अगर मैं कम कर दूंगी तो मेरे बाद और दो पीढ़ी में जाते-जाते विलुप्त हो जाएगा. इसीलिए मैं इस मिट्टी के दीये पर ही जोर देना चाहूंगी. मैं घूम-घूम कर दीये ले रही हूं ताकि सुंदर और अच्छी चीज़ें मिल सकें." 

दीपावली चमक से खुश हुए विदेशी पर्यटक

दीपावली में दीयों की चमक सिर्फ भारत में ही नहीं होती बल्कि बहुत सारे विदेशी सैलानी भी दिवाली की चमक देखने आते हैं. ऐसे ही विदेशी पर्यटक मारिया अपनी बहन के साथ दिवाली की चमक देखने भारत आई हैं. दोनों बहनों ने बताया कि "मुझे लगता है कि यहां मूर्तियां बहुत खूबसूरत हैं. यह हमारे लिए निश्चित रूप से एक अनुभव है. यह बहुत सुंदर है, मैं इसे हमेशा अपने पास रखूंगी. मैं इस पूरी प्रक्रिया और कलात्मकता से चकित हूं." 


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दोनों बहनों ने कहा, मुझे स्वस्तिक और उसके पीछे का अर्थ पसंद है. मुझे अच्छे दोस्त और एक जीवंत शहर में एक अद्भुत अनुभव याद होगा. दिवाली उत्सव को देखना अद्भुत है. माना जाता है कि दिवाली पश्चिमी संस्कृति में क्रिसमस का एक घटक है, हम इसे देखकर खुश हैं. रोशनी अद्भुत है. दिवाली पर यहां की संस्कृति को देखना अद्भुत है. मैं उनके पास और अधिक हिंदी फिल्में देखती हूं और वास्तव में वो सभी मुझे बहुत पसंद आते हैं."

नीतू इन बहनों को दिवाली के मौके पर सजे हुए कोलकाता शहर को दिखाने लाईं हैं. नीतू ने कहा "जब मैं फ्लोरिडा गई थी तब इन्होंने जिस तरह मुझे फ्लोरिडा घुमाया था, तब से मेरे मन में भी यही था कि जब भी ये लोग भारत आएं, मैं वो सब करूं जो कुछ मैं कर सकती हूं. आज मैं इन्हें ले कर यहां की सुंदरता दिखाने लाई हूं. मैंने इन्हें दुर्गा पूजा की तस्वीरें भेजी थी. इसलिए मैं चाहती थी कि वह अनुभव करें कि यह कैसे बनता है और इसे बनाने के लिए कलाकार इतनी मेहनत कैसे करता है."

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