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कोरोना के खिलाफ मॉडर्ना और फाइजर की वैक्सीन ने दी बड़ी उम्मीद, जानिए दोनों की खासियत

कोविड-19 के खिलाफ दो वैक्सीन ने एक नई उम्मीद दी है, ये दोनों है वैक्सीन है अमेरिकी दवा उत्पादक कंपनी मॉडर्ना इंक और फाइजर इंक की. हालांकि, दुनिया में एस्ट्रेजेनिका समेत और भी कई वैक्सीन पर काम हो रहा है और उम्मीद है कि इन सभी के आने के बाद इस महामारी पर काबू पा लिया जाएगा.

कोरोना वायरस के खिलाफ इस वक्त पूरी दुनिया में जोर-शोर से काम किया जा रहा है ताकि जल्द इस महामारी का खात्मा किया जा सके. कोरोना के चलते दुनियाभर में जहां करोड़ों लोग प्रभावित हुए है तो वहीं लाखों की अब तक मौत हो चुकी है. इस बीमारी से सबसे ज्यादा प्रभावित देश अमेरिका है तो वहीं दूसरे नंबर पर भारत है. ऐसे में लोगों के सामने इंतजार है जल्द कारगर वैक्सीन के आने का.

कोविड-19 के खिलाफ दो वैक्सीन ने लोगों में नई उम्मीद दी है, ये दोनों वैक्सीन हैं अमेरिका कि दिग्गज दवा उत्पादक कंपनी मॉडर्ना इंक और फाइजर इंक की. हालांकि, दुनिया में एस्ट्रेजेनिका समेत और भी कई वैक्सीन पर काम हो रहा है और उम्मीद है कि इन सभी के आने के बाद इस कोरोना पर काबू पा लिया जाएगा. आइये जानते हैं मॉडर्ना और फाइजर वैक्सीन के बारे में.

कैसे हैं दोनों के नतीजे?

मॉडर्ना ने सोमवार को कहा कि शुरुआती विश्लेषण में यह पता चला है कि उनकी वैक्सीन 94.5 फीसदी तक प्रभावी है. इससे पहले, अमेरिकी दिग्गज कंपनी फाइजर जो जर्मन कंपनी बायोटेक के साथ वैक्सीन बना रही है, उसने दावा किया कि उनकी वैक्सीन 90 फीसदी तक कारगर है.

मॉडर्ना के डेटा से यह जाहिर होता है कि कम समय के लिए इसका साइट इफैक्ट्स रहता है और सुरक्षा को लेकर कोई चिंता की बात नहीं है. हालांकि, कोरोना से जिनकी हालत गंभीर थी उन्हें इसका टीका लेने पर कोई फायदा होता नहीं दिखा. अमेरिकी रेगुलेटर ने इस साल कहा था कि कोई भी वैक्सीन कम से कम 50 फीसदी प्रभावी होनी चाहिए.

दोनों वैक्सीन में समानताएं?

दोनों ही वैक्सीन एक टेक्नॉलोजी जिसे मैसेंजर आरएनए कहा जाता है, उस पर आधारित है. इसे कभी भी स्वीकृत वैक्सीन के बनाने से पहले इस्तेमाल नहीं किया गया. इसके जरिए, शरीर में सेल्स का निर्माण कराया जाता है. यह वैक्सीन कोरोना वायरस के खिलाफ प्रोटीन के निर्माण में सहायक होती है, ताकि एंटीबॉडीज डेवलप सकें.

कैसे है दोनों अलग?

मॉडर्ना को जहां वैक्सीन बनाने के लिए यूएस ऑपरेशन रैप स्पीड प्रोग्राम से 955 मिलियन डॉलर सहायता राशि के तौर पर मिला तो वहीं फाइजर को वैक्सीन बनाने लिए इस तरह की कोई फंडिंग नहीं की गई. हालांकि, जर्मनी सरकार ने सहायता के तौर पर बायोटेक को 375 मिलियन यूरो (444 मिलियन डॉलर) की सहायता राशि दी थी. फाइजर जर्मनी की दवा उत्पादक कंपनी बायोटेक के साथ मिलकर संयुक्त रूप से कोरोना वैक्सीन को डेवलप कर रही है.

दवा की स्टोरेज और वितरण में चुनौतियां?

जैसे ही वैक्सीन को मंजूरी जाती जाती है, लोगों को वैक्सीन की मुहैया कराने से पहले कई तरही की परेशानियां आएंगी. वैक्सीन की स्टोरेज से लेकर इसके वितरण में कठिनाइयां हैं. फाइजर वैक्सीन को इस्तेमाल करने से कुछ दिनों पहलेप हले तक काफी कम तापमान पर रखना होगा, लेकिन इसे पांच दिनों तक रेफ्रिजरेटर के तापमान में रखा जा सकता है. तो वहीं, मॉडर्ना के डेटा से यह जाहिर होता है कि इसे 30 दिनों तक रेफ्रिजरेटर का तापमान में रखा जा सकता है.

ये भी पढ़ें: रूस की कोरोना वैक्सीन स्‍पूतनिक-5 टीके की पहली खेप अगले हफ्ते कानपुर आने की संभावना 

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