यहां पढ़ें: नीतीश के इस्तीफा देने के बाद अब बिहार में क्या होगा?
इधर नीतीश कुमार इस्तीफा सौंपे हैं उधर पटना में बीजेपी विधायक दल की बैठक सुशील मोदी के घर शुरू हो गयी है. अब जरा दिल्ली पर ध्यान दीजिए. पीएम नरेंद्र मोदी भी नीतीश कुमार को बधाई दे रहे हैं.
नई दिल्ली: बिहार के सियासत में अचानक ही सियासी पारा चढ़ गया है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने पद से राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया है. यह सियासी हलचल क्या नया मोड़ लेगा, इस पर चर्चा तेज हो गया है. इधर नीतीश कुमार इस्तीफा सौंपे हैं उधर पटना में बीजेपी विधायक दल की बैठक सुशील मोदी के घर शुरू हो गयी. बैठक खत्म हुई तो सुशील मोदी ने कहा कि बीजेपी बिहार में मध्यावधि चुनाव नहीं चाहती है. अब जरा दिल्ली पर ध्यान दीजिए. पीएम नरेंद्र मोदी भी नीतीश कुमार को बधाई दे रहे हैं. नीतीश ने इस्तीफे को बताया अंतरआत्मा की आवाज, पीएम मोदी ने दी बधाई( उधर क्या चल रहा है सियासी हलचल यहां पढ़ें )
यदि बीजेपी संसदीय दल की बैठक में नीतीश कुमार को बाहर से समर्थन देने का फैसला होता है, तो नीतीश कुमार एक बार फिर सरकार बनाने में सफल हो जाएंगे. फिलहाल राज्यपाल नीतीश कुमार के इस्तीफे को स्वीकार कर सरकार को भंग कर देंगे. इसके बाद यदि बीजेपी समर्थन देती है तो नीतीश कुमार एक बार फिर सरकार बनाने का राज्यपाल के सामने दावा पेश कर सकते हैं.
आपको बता दें कि नीतीश कुमार कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से महागठबंधन पर चल रहे विवाद को लेकर मुलाकात की थी. लेकिन कुछ खास निर्णय नहीं हो पाने की वजह से नीतीश कुमार को इस्तीफा देना पड़ा.
अब वक्त के पहिये को जरा सा पीछे ले चलिए, फिर सियासी संभावना स्पष्ट हो जाएगी. कुछ ही दिन पहले बिहार बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय ने कहा था कि बीजेपी नीतीश को बाहर से समर्थन दे सकती है. इसका मतलब ये स्पष्ट संदेश था कि लालू के समर्थन की नीतीश परवाह न करें. नीतीश तेजस्वी को बर्खास्त करें इसके बाद अगर सरकार पर संकट आएगा तो बीजेपी बचा लेगी.
बिहार में सरकार का समीकरण क्या है?
पहले हमें बिहार विधानसभा का गणित समझना होगा, 2015 में जब विधानसभा का चुनाव हुआ तो 243 सीटों में से महागठबंधन को 178 सीटें मिली थीं, इसमें जेडीयू की 71, आरजेडी की 80 और कांग्रेस की 27 सीट थी, जबकि एनडीए को 58 सीटें मिली थीं. अब जबकि नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है तो ऐसे में बिहार सरकार बनाने के दो विकल्प सामने नज़र आ रहे हैं. पहला विकल्प ये हो सकता है कि नीतीश कुमार बीजेपी से हाथ मिला लें, बहुमत के लिए उन्हें 122 सीटों की ज़रूरत है, नीतीश के पास 71 सीटें हैं, इसमें अगर एनडीए की 58 सीटें जोड़ दें तो आंकड़ा 129 का हो जाता है, यानी बहुमत से 7 सीटें ज्यादा. दूसरा विकल्प ये हो सकता है कि लालू यादव और कांग्रेस आपस में मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश करें, ऐसी स्थिति में लालू की 80 सीटें और कांग्रेस की 27 सीटों को मिलाकर आंकड़ा 107 का होता है, जो बहुमत से 15 सीटें कम हैं, यानी लालू को सरकार बनाने के लिए ज्यादा जोड़-तोड़ करनी होगी. तीसरा विकल्प- अगर दोनों ही परिस्थतियों में सरकार नहीं बनती है तो एक मात्र विकल्प सूबे में राष्ट्रपति शासन लगाने का बचता है. वैसी इस स्थति में विधानसभा को सस्पेंडेड एनीमेशन में रखकर सरकार बनाने के विकल्पों को खुला रखा जाए. एक विकल्प यह भी है कि विधानसभा भंग कर सियासी दल चुनावी मैदान में उतरें. हालांकि इसकी संभावना कम है क्योंकि बीजेपी खुद ही इस पक्ष में नहीं है. सुशील मोदी ने संकेत देते हुए कहा कि बीजेपी मध्यावधि चुनाव के पक्ष में नहीं है. फिलहाल 20 महीने सरकार चलने के बाद सियासी अनिश्चितता की दहलीज पर खड़ी है.