राज्य सभा का चुनाव हारे रघुनाथ महापात्र के घर क़िस्मत चल कर आई, लेकिन क्या बीजेपी की क़िस्मत चमकेगी?
रघुनाथ महापात्र पहले ओड़िया हैं जिन्हें राज्य सभा के लिए राष्ट्रपति ने मनोनीत किया है.

नई दिल्लीः ओडिशा के अख़बारों में जितनी जगह भगवान जगन्नाथ के रथयात्रा को मिली उतनी ही चर्चा रघुनाथ महापात्र को राज्य सभा में सांसद मनोनीत करने को लेकर है. जिस वक़्त पुरी में जगन्नाथ जी को मंदिर से बाहर लाया जा रहा था. ठीक उसी वक़्त महापात्र को सांसद बनाए जाने की ख़बर आई. रघुनाथ महापात्र पहले ओड़िया हैं जिन्हें राज्य सभा के लिए राष्ट्रपति ने मनोनीत किया है. अगर अगले साल ओडिशा में चुनाव नहीं होते तो शायद ये मुमकिन नहीं था. फ़ैसला तो पहली जुलाई को हो चुका था जब बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भुवनेश्वर आए थे. संपर्क से समर्थन के लिए उन्होंने रघुनाथ महापात्र के घर जाकर उनसे मुलाक़ात की थी लेकिन इसका एलान रथयात्रा के दिन 14 जुलाई को हुआ. राज्यसभा भेजने का फ़ैसला और उसके एलान की टाइमिंग चुनावी रणनीति के हिसाब से हुआ. केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने महापात्र के घर जाकर उन्हें बधाई दी.
ओड़िया सम्मान के बहाने बीजेपी ओड़िया में पैर ज़माने की कोशिश में है. रघुनाथ महायात्रा जाने माने मूर्तिकार हैं अपनी छेनी से वे बेजान पत्थरों में भी जान फूंक देते हैं. पुरी के 75 साल के रघुनाथ महापात्र राज्य सभा का एमपी बनने के लिए पहले भी क़िस्मत आज़मा चुके हैं लेकिन तब उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया था. लेकिन दो साल में ही वक़्त का पहिया ऐसे घूमा कि ख़ुशख़बरी ख़ुद उनके घर चल कर आई. जिस राज्य सभा का चुनाव महापात्र हार गए थे अब बिना चुनाव लड़े ही वे सांसद मनोनीत हो गए हैं.
बात चार साल पहले की है. ओडिशा में राज्य सभा की चार सीटों के लिए चुनाव हो रहे थे. नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल ने तीन नेताओं को टिकट दिया था. ए यू सिंहदे, कल्पतरू दास और सरोजिनी हेम्ब्रम. कांग्रेस ने आईपीएल के पूर्व चेयरमैन और पार्टी नेता रंजीव बिस्वाल को उम्मीदवार बनाया था. रघुनाथ महापात्र निर्दलीय ही चुनावी मैदान में कूद पड़े थे. नवीन पटनायक ने उनके समर्थन का एलान किया था. 147 सदस्यों वाली ओडिशा विधानसभा में बीजेडी के 108 विधायक थे लेकिन जब वोटिंग हुई तो बीजेडी के तीनों उम्मीदवारों को तय 30 वोट से अधिक मिले. पार्टी के एक एमएलए का वोट ख़ारिज हो गया था. बीजेपी ने भी रघुनाथ महापात्र को समर्थन देने का वादा किया था लेकिन एक विधायक वोट देने नहीं पहुंचे जबकि एक ने तो कांग्रेस के लिए वोट कर दिया था. कांग्रेस के रंजीव बिस्वाल से महापात्र चुनाव हार गए. उनकी हार का ठीकरा नवीन पटनायक और उनकी पार्टी बीजू जनता दल पर फूटा. ये कहा गया कि नवीन बाबू इस जाने माने मूर्तिकार को राज्य सभा भेजना ही नहीं चाहते थे. बीजेपी ने कहा मेरे पास तो छह विधायक ही थे. फिर बात ओड़िया गौरव पर आ कर ख़त्म हुई लेकिन रघुनाथ महापात्र खुद ख़ामोश रहे.
अब ठीक चार साल बाद उसी ओड़िया गौरव और सम्मान के चक्कर में रघुनाथ महापात्र राज्य सभा के एमपी बन गए. इसका कनेक्शन अगले लोकसभा चुनाव से है और विधानसभा चुनाव से भी. ओडिशा में दोनों चुनाव साथ होते हैं. स्थानीय निकाय के चुनाव में बीजेपी ने बेहतर प्रदर्शन किया था इसके बाद से ही बीजेपी को ओडिशा में ‘अच्छे दिन’ नजर आने लगे हैं. इसी चक्कर में बीजेपी ने भुवनेश्वर में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक की. सरकार के चार साल पूरे होने पर पीएम नरेन्द्र मोदी ने कटक में रैली की. अब रघुनाथ महापात्र के बहाने ओडिशा के लोगों को भावनात्मक रूप से जोड़ने की तैयारी है.
रघुनाथ महापात्र को उनके बेहतरीन काम के लिये 1976 में ही पद्मश्री मिल गया था फिर पदमभूषण और पदमविभूषण भी मिला. वे कोणार्क के सूर्य मंदिर की तरह ही एक और मंदिर बनाना चाहते हैं. इस सिलसिले में वे पीएम नरेन्द्र मोदी से भी मिल चुके हैं. पर एक सवाल बेहद ज़रूरी कि क्या महापात्र के बहाने ओड़िया सम्मान के नाम पर बीजेपी का भला हो पाएगा? बीजेडी के सांसद अच्युत सामंत कहते हैं नवीन बाबू भी तो ओड़िया गौरव के प्रतीक हैं. जानकारों की भी यही राय है वे कहते हैं महापात्र अपनी कला के जादूगर हैं. लेकिन अगर बीजेपी के मन में चुनावी फ़ायदे की बात चल रही हो तो फिर ऐसा नहीं होनेवाला है.
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Source: IOCL






















