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आडवाणी, जोशी और कल्याण सिंह पर चलेगा मुकदमा, जानिए क्या है पूरा मामला

नई दिल्ली : बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में बड़े नेताओं पर साज़िश का मुकदमा चलाने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका है. लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह समेत 21 नेताओं पर साज़िश की धारा में मुकदमा चलाने की इजाज़त सर्वोच्च न्यायालय ने दे दी है.

याचिका में जिन नेताओं के नाम हैं उनमें से कई अब इस दुनिया में नहीं हैं. सीबीआई ने 2012 में अपील दाखिल कर इस बारे में अपील की थी. ऐसे में हम आपको बता रहे हैं कि आखिर यह पूरा मामला क्या है ? मूल घटना क्या थी, नेताओं पर क्यों आरोप लगें और साथ ही यह मामला आखिर कैसे-कैसे सुप्रीप कोर्ट तक पहुंचा.

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सुप्रीम कोर्ट क्यों पहुंचा मामला :

दरअसल ये मामला तकनीकी कारणों से बड़े नेताओं से साज़िश की धारा हट जाने का है. कई नेता तो मुकदमे से पूरी तरह ही बच गए. मामले में इलाहबाद हाईकोर्ट से अपने खिलाफ फैसला आने के बाद सीबीआई, सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी.

किस वजह से बचे नेता :

1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद 2 एफआईआर दर्ज हुई थी. एफआईआर संख्या 197 लखनऊ में दर्ज हुई. ये मामला ढांचा गिराने के लिए अनाम कारसेवकों के खिलाफ था.

दूसरी एफआईआर यानी एफआईआर नंबर 198 को फैज़ाबाद में दर्ज किया गया. बाद में इसे रायबरेली ट्रांसफर किया गया. इस एफआईआर में 8 बड़े नेताओं के ऊपर मंच से हिंसा भड़काने का आरोप था. ये बड़े नेता थे- लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, साध्वी ऋतम्भरा, गिरिराज किशोर, अशोक सिंहल, विष्णु हरि डालमिया, उमा भारती और विनय कटियार.

बाद में इन दोनों मामलों को लखनऊ की कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया. सीबीआई ने जांच के दौरान साज़िश के सबूत पाए. उसने दोनों एफआईआर के लिए साझा चार्जशीट दाखिल की. इसमें बाल ठाकरे समेत 13 और नेताओं के नाम जोड़े गए. कुल 21 नेताओं के खिलाफ आपराधिक साजिश की धारा 120b के आरोप लगाए गए.

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2001 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पाया कि एफआईआर 198 को लखनऊ की स्पेशल कोर्ट में ट्रांसफर करने से पहले चीफ जस्टिस से इसकी इजाज़त नहीं ली गयी थी. ऐसा करना कानूनन ज़रूरी था. इस वजह से लखनऊ की कोर्ट को एफआईआर 198 पर सुनवाई का अधिकार नहीं था.

हाई कोर्ट ने इस निष्कर्ष के आधार पर दोनों मामलों को अलग चलाने का आदेश दिया. इस फैसले को बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी सही ठहराया. दोनों मामले अलग होने के चलते सीबीआई की साझा चार्जशीट बेमानी हो गयी. 8 नेताओं का मुकदमा रायबरेली वापस पहुंच गया.

बाद में इसी को आधार बनाकर वो 13 नेता भी मुकदमे से बच गए जिनका नाम साझा चार्जशीट में शामिल था. इसका सबसे बड़ा असर ये हुआ कि किसी भी नेता के ऊपर आपराधिक साजिश की धारा बची ही नहीं.

13 नेताओं को मुकदमे से अलग करने का हाई कोर्ट का फैसला 2011 में आया. सीबीआई ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.

सुप्रीम कोर्ट का रुख :

सुनवाई के दौरान जस्टिस पी.सी. घोष और रोहिंटन नरीमन की बेंच ने पूरे मसले पर दोबारा गौर किया. जजों ने माना कि महज़ तकनीकी वजहों से किसी आरोपी का बचना गलत है. बेंच ने लखनऊ और रायबरेली के मुकदमों को एक साथ चलाने के संकेत दिए.

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कहा कि रायबरेली के मुकदमे को भी लखनऊ की कोर्ट में ट्रांसफर किया जा सकता है. कोर्ट ने 25 साल तक मामले के खिंचने पर सवाल उठाए. कोर्ट ने कहा, "हम मामले में रोज़ाना सुनवाई करने और उसे 2 साल के भीतर निपटाने का आदेश दे सकते हैं."

क्या होगा असर :

दोनों मामले साथ चलने से लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह समेत कई बड़े नेताओं पर साज़िश करने की धारा बहाल हो जाएगी. ये सभी नेता मुकदमा चलाने में हुई तकनीकी गलतियों के चलते आपराधिक साजिश की गंभीर धारा से बच गए थे.

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