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देशभर की सभी 41 ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियां एक महीने की हड़ताल पर, 82,000 कर्मचारियों ने रोका काम

देश की सेनाओं के लिए गोला-बारूद मुहैया कराने वाली 41 ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों में करीब 82 हजार कर्मचारी काम करते हैं. ये कर्मचारी हड़ताल पर हैं और इनका कहना है कि सरकार कोरपोरेटाजाईशेन यानि निगमीकरण के जरिए निजीकरण की तैयारी कर रही है.

नई दिल्लीः ऐसे समय में जब पड़ोसी देश, पाकिस्तान से कश्मीर और धारा 370 को लेकर संबंध तल्ख हैं और एलओसी पर पाकिस्तानी सेना से रोज फायरिंग हो रही है, देशभर की सभी 41 ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियां एक महीने की हड़ताल पर चली गई हैं. देश की सेनाओं के लिए गोला-बारूद मुहैया कराने वाली इन फैक्ट्रियों में करीब 82 हजार कर्मचारी काम करते हैं. एक ऐसी ही ऑर्डिनेंस फैक्ट्री, गाजियाबाद के मुरादनगर में है जहां के दो हजार कर्मचारी भी हड़ताल पर हैं. एबीपी न्यूज की टीम जब इस ओएफबी फैक्ट्री में पहुंची तो वहां काम बंद था. सरकार के कोरपोरेटाइजेशन यानि निगमीकरण के खिलाफ भी इस फैक्ट्री के कर्मचारी एक महीने की हड़ताल पर हैं.

ओएफबी मुरादनगर में भारतीय वायुसेना के लिए 'करगिल हीरो' बम बनाए जाते हैं. दरअसल, ये 450 किलो के बम होते हैं जो लड़ाकू विमान आसमान से दुश्मन के कैंप इत्यादि पर बरसाते हैं. करगिल युद्ध के दौरान इसी फैक्ट्री में तैयार बमों को करगिल की ऊंची पहाड़ियों पर भारतीय चौकियों पर कब्जा जमाए पाकिस्तानी सैनिकों पर बरसाए गए थे. इसीलिए यहां बनाए जाने वाले बमों को करगिल-हीरो का नाम दिया गया है. साथ ही थलसेना के टैंकों के लिए ट्रैक-चेन बनाई जाती हैं. यहां के 2000 कर्मचारी भी ओएफबी के उन 82 हजार कर्मचारियों में शामिल हैं जो हड़ताल पर हैं.

देशभर की सभी 41 ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियां एक महीने की हड़ताल पर, 82,000 कर्मचारियों ने रोका काम

एबीपी न्यूज से बातचीत में यहां के हड़ताली कर्मचारियों का कहना है कि सरकार कोरपोरेटाजाईशेन यानि निगमीकरण के जरिए निजीकरण की तैयारी कर रही है जबकि देश की सुरक्षा प्राईवेट हाथों में सुरक्षित नहीं है क्योंकि करगिल युद्ध के दौरान निजी कंपनियों ने या तो गोला-बारूद देना बंद कर दिया था या फिर कीमत दुगने-तिगुने कर दिए थे. प्राईवेट कंपनियां टेंडर लेने के लिए घूसखोरी और करप्शन का सहारा लेती हैं जबकि सरकारी कंपनियों में ऐसा नहीं होता है.

वहीं रक्षा मंत्रालय और ओएफबी चैयरमैन ने मंगलवार को एक बयान जारी कर कहा कि ओएफबी की जो तीन कर्मचारी यूनियन हड़ताल पर हैं उन्हें 14 अगस्त को ही बता दिया था कि सरकार ओएफबी का निजीकरण नहीं कर रही है. बल्कि इऩ्हें डिफेंस-पीएसयू यानि रक्षा-क्षेत्र की पब्लिक सेक्टर यूनिट बनाने की तैयारी है. ताकि इन फैक्ट्रियों को ज्यादा से ज्यादा स्वायत्तता दी जा सके और उनके काम में तेजी लाई जा सके. ओएफबी का कहना है कि निगमीकरण के जरिए इन आयुध निर्माण फैक्ट्रियों को सशस्त्र सेनाओं की भविष्य की जरूरतों को अधिक तेजी के साथ पूरा किया जा सकेगा. साथ ही उनके उत्पादों को निर्यात की संभावनाओं को बल मिलेगा.

दरअसल, ओएफबी एक बोर्ड है जो सीधे रक्षा मंत्रालय के अंर्तगत काम करता है. इसका मुख्यालय कोलकता में है. इनमें से कुछ फैक्ट्रियां दो सौ साल पुरानी है जो ब्रिटिश काल से काम कर रही हैं. इन 41 फैक्ट्रियों में पिस्टल, राईफल, गोला-बारूद, तोप, टैंक तैयार किए जाते हैं. सेनाओं के साथ साथ अर्द्धसैनिक बलों और पुलिस को भी ये आयुध फैक्ट्रियां अपना सामान मुहैया कराती हैं.

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