दुश्मन को अंतरिक्ष में वार करने से पहले अब कई बार सोचना होगा-डॉ सारस्वत
रक्षा वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस सफल परीक्षण ने दिखा दिया है अगर कोई भारत के उपग्रहों को नुकसान पहुंचाता है तो हम जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं.
नई दिल्लीः भारत ने उपग्रह मारक क्षमता के साथ अंतरिक्ष में अपनी काबिलियत का नया परचम फहराया है. देश के रक्षा वैज्ञानिकों की यह कामयाबी छोटे-छोटे कदमों के साथ तय हुई एक ऐसी ऊंची छलांग है जहां अब तक दुनिया के केवल तीन मुल्क ही पहुंच पाए हैं. यह सफर कैसे तय हुआ और आखिर इस क्षमता के मायने क्या हैं? इन सवालों के साथ एबीपी न्यूज के असोसिएट एडिटर प्रणय उपाध्याय ने बात की पूर्व डीआरडीओ प्रमुख और नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके सारस्वत से. इसी बातचीत के प्रमुख अंश यहां दिए गए हैं-
सवालः भारत ने अंतरिक्ष में एक नई सफलता हासिल की है. इस क्षमता के अर्थ क्या हैं और एक सामान्य भारतीय नागरिक के लिए इसके मायने क्या हैं?
डॉ. सारस्वतः यह एक खास क्षमता है जिससे भारत अंतरिक्ष में अपने उपग्रह व अन्य एसैट्स को सुरक्षित कर सकता है. रक्षा वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस सफल परीक्षण ने दिखा दिया है अगर कोई भारत के उपग्रहों को नुकसान पहुंचाता है तो हम जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं. तकनीक की दृष्टि से यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है. अभी तक केवल अमेरिका, रूस और चीन ने ही यह क्षमता दिखाई है.
यह समझना जरूरी है कि इसके लिए बेहद सटीक क्षमता वाली तकनीक और कुशलता की जरूरत होती है. इस तरह समझिए कि करीब 5000 मीटर प्रति सैकेंड की रफ्तार से चल रहे उपग्रह को जमीन से छोड़े जाने वाले रॉकेट से मार गिराना है. इस काम में मिली सैकेंड की चूक होने पर भी आप अपने लक्ष्य से भटक सकते हैं. लिहाजा दोनों की रफ्तार को सैकड़ों किमी दूर मिलाना है. इस परीक्षण से स्पष्ट है कि भारत की रॉकेट और मिसाइल तकनीक क्षमता विश्व स्तरीय है. देश के नागरिकों को अधिक सुरक्षित महसूस करना चाहिए. साथ ही इस बात पर गर्व होना चाहिए कि भारत की अंतरिक्ष तकनीक दुनिया में किसी से कम नहीं है.
सवालः भारत ने जब अग्नि-5 मिसाइल का टेस्ट किया तब से यह कहा जा रहा है कि उपग्रह रोधी यह तकनीक भारत के पास है. फिर इतना वक्त क्यों लगा और तकनीकी क्षमता विकास की यह यात्रा कैसी रही?
डॉ. सारस्वत: इस क्षमता के विकास के लिए हमने दो कार्यक्रमों पर काम किया है. पहला है लंबी दूरी की मिसाइलों का विकास और दूसरा बैलेस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम. भारत ने 2012 में जब अग्नि-5 मिसाइल का सफल परीक्षण किया तो यह साबित हो गया कि हम 5000 किमी की दूरी और 800 किमी ऊंचाई तक वार कर सकते हैं. यानी हमारे पास सैटेलाइट-रोधी प्रहार के लिए बेसिक क्षमता है. जरूरत थी उच्च क्षमता वाले इंफ्रारेड सीकर औऱ किल व्हीकल की. ताजा परीक्षण के साथ भारत ने यह दिखा दिया कि उसके पास यह दोनों तकनीकी क्षमता भी आ गई है.
सवालः तीन मिनट में 300 किमी ऊंचाई पर वार, आखिर इस ऑपरेशन को किस तरह अंजाम दिया गया?
डॉ. सारस्वत: यह एक तीन चरण वाले रॉकेट लांच की तरह था. इसमें पहले और दूसरे चरण के बूस्टर से रॉकेट किल व्हीकल को माकूल ऊंचाई तक पहुंचाता है. उसके बाद किल व्हीकल में लगे थर्स्टर उसे तेजी से चल रहे उपग्रह तक पहुंचाते हैं ताकि उसे नष्ट किया जा सके. भारत ने निचले ऑर्बिट में अपने ही एक पुराने सैटेलाइट को इस परीक्षण के दौरान नष्ट किया.
सवालः यानी क्या भारत अब किसी देश के सैटेलाइट को मार गिरा सकता है?
डॉ. सारस्वत: आपने प्रधानमंत्री को सुना है. उन्होंने स्पष्ट कहा है कि भारत अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग का हिमायती है. आज अंतरिक्ष का इस्तेमाल आपदा प्रबंधन, मानवीय सहायता पहुंचाने, यातायात समेत अनेक क्षेत्रों में हो रहा है. लेकिन अन्य देशों की तरह भारत सैन्य उद्देश्यों के लिए भी अंतरिक्ष और उपग्रहों का इस्तेमाल कर रहा है. हमारा सैन्य संचार और हथियार उपग्रह आधारित हो रहे हैं. इसके मद्देनजर यदि कभी युद्ध के हालात बनते हैं तो लड़ाई भले ही पारंपरिक हथियारों से लड़ी जाए लेकिन उपग्रह आधारित संचार उसकी एक अहम जरूरत है. लिहाजा युद्ध की स्थिति में यदि दुश्मन हमारे उपग्रह को नष्ट करता है तो हमारी युद्ध क्षमता प्रभावित हो सकती है. ऐसे में हमारे पास विकल्प होगा कि हम जल्द से जल्द नया उपग्रह प्रक्षेपित करें और साथ ही दुश्मन के उपग्रह को भी नष्ट करें. ताकि दुश्मन देश में भी संचार प्रणाली ठप हो जाए. भारत की इस क्षमता के बाद दुश्मन को भारत के किसी सैटेलाइट पर वार करने से पहले कई बार सोचना होगा. यदि उसने वार किया तो पलटवार भी होगा. भारत की उपग्रह रोधी क्षमता एक रक्षात्मक उपयोग का साधन है. किसी देश के खिलाफ आक्रामक हथियार नहीं है.
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