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Mai SE 1 Review: बिखरी कहानी से कमजोर पड़ा सीरीज का थ्रिल, साक्षी तंवर चौंकाती हैं अपने परफॉर्मेंस से

पुराने आइडियों और बहुत सारे किरदारों की कहानियां एक साथ कहने के चक्कर में माई का थ्रिल कमजोर पड़ जाता है लेकिन इन बातों के बीच साक्षी तंवर का अभिनय इस वेब सीरीज को संभालने की कोशिश करता है.

माई में एक किरदार का संवाद है, ‘कुछ लोग कितना ही चिराग घिस लें, उनका जिन्न कभी बाहर नहीं निकलता.’ यह वेब सीरीज देखते हुए नेटफ्लिक्स इंडिया के लिए भी आप कुछ ऐसा ही महसूस करते हैं. विदेश में सफल और आकर्षक ओरिजनल्स देने वाले इस ओटीटी प्लेटफॉर्म को हिंदी में सफलता मिलती नहीं दिख रही है. उनके कंटेंट चयन में मौलिक आइडियों का अकाल भी नजर आता है. साक्षी तंवर की मुख्य भूमिका वाली वेबसीरीज माई से पहले हिंदी के दर्शक 2017 में श्रीदेवी की आखिरी फिल्म ‘मॉम’ और उसी दौरान रिलीज हुई रवीना टंडन की ‘मातृ’ में लगभग इसी तरह की कहानी देख चुके हैं. इन फिल्मों में दोनों मांएं अपनी बेटियों से हुई दरिंदगी और उनकी मौत का बदला लेती हैं. दोनों फिल्में बॉक्स ऑफिस पर नाकाम थीं. उसी आइडिये के केंद्रीय तत्व को बदलकर कर माई के बदले की कहानी गढ़ी गई है. इस तरह माई पुरानी बोतल में नई शराब है.

पचास-पचास मिनट से अधिक की छह कड़यों की इस सीरीज की शुरुआत सुप्रिया चौधरी (वामिका गब्बी) की मौत से होती है. मां शील चौधरी (साक्षी तंवर) की आंखों के आगे सड़क पर एक ट्रक टक्कर मारकर उसे मौत की नींद सुला देता है. बोल पाने में असमर्थ सुप्रिया एक पैथोलॉजी लैब में काम करती थी और मरने से पहले इशारों में मां से कुछ कहना चाहती थी. अदालत में ट्रक ड्राइवर की बातों से शील को महसूस होता है कि सुप्रिया की मौत सड़क-हादसा नहीं है बल्कि किसी ने उसकी हत्या कराई है. ‘मेरी बेटी को किसने और क्यों मारा?’ इस सवाल का जवाब पाने की कोशिश ही माई की पूरी यात्रा है. माई अपनी जवान बेटी की मौत के रहस्य पर से पर्दा उठाने और बदला लेने के लिए सक्रिय हो जाती है. तब धीरे-धीरे कहानी में नए-नए किरदारों के साथ नई-नई परतें खुलती हैं.

इस थ्रिलर की समस्या यह है कि लेखकों-निर्देशकों ने यहां सब कुछ गोलगप्पे खाने जैसा बना दिया है. माई जैसा-जैसा सोचती है, जो-जो करना चाहती है, सब कुछ वैसा-वैसा होता जाता है. माई किसी जासूस से भी तेज है और पुलिस की जांच उसके आगे फीकी साबित होती है. वह कहानी के हर मोड़ पर दूसरों से दो कदम आगे है. किस्मत भी पल-पल उसके हक में रहती है. जबकि साक्षी का किरदार यहां बहुत सीधी-सरल-गृहिणी जैसी महिला का है, जो एक नर्स है. लेकिन यहां साक्षी के आगे तमाम प्रभावशाली, पैसेवाले, खतरनाक और क्रूर अपराधी भी नहीं टिकते. वह जिसे चाहे, जब चाहे अपने फंदे में ले लेती है.


Mai SE 1 Review: बिखरी कहानी से कमजोर पड़ा सीरीज का थ्रिल, साक्षी तंवर चौंकाती हैं अपने परफॉर्मेंस से

यहां शील के पति और बच्चों की कहानी के साथ उसके जेठ-जेठानी का घरेलू ट्रैक है. जिस वृद्धाश्रम में शील काम करती है, वहां की घटनाएं कहानी में अहम रोल में अदा करती हैं. लखनऊ में स्थित इस कहानी में एक बड़ा मेडिकल घोटाला बताया गया है, जिसमें पुलिस संदिग्ध सिंडिकेट के पीछे लगी है. यहां स्पेशल पुलिस फोर्स को लीड करने वाले एसपी फारुख सिद्दीकी (अंकुर रतन) के नाखुश दांपत्य के साथ-साथ एस्कॉट गर्ल से गैंगस्टर बनी नीलम (राइमा सेन) की भी कहानी है. एक ट्रेक प्रशांत नारायणन की भी है, जिसमें वह डबल रोल में प्रकट होकर चौंका देते हैं और कहानी को टोटल फिल्मी बना देते हैं. इन सबके साथ सीरीज में अपनी-अपनी कहानियां लिए अन्य छोटे-बड़े भी किरदार हैं.


Mai SE 1 Review: बिखरी कहानी से कमजोर पड़ा सीरीज का थ्रिल, साक्षी तंवर चौंकाती हैं अपने परफॉर्मेंस से

माई एक साथ बहुत सारे लोगों की कहानियां कहने की कोशिश करती है और लगातार तर्क को पीछे छोड़ती जाती है. नतीजा यह कि थ्रिल निरंतर शिथिल होता जाता है. इधर फिल्मों और वेबसीरीजों में ऐसी कई कहानियां आई हैं, जिनमें मुख्य पात्र एक ही बात कहता है, ‘फैमिली सब कुछ है.’ यही वाक्य माई की नींव में रखा है. ऐसे किरदार परिवार के लिए कुछ भी कर सकते हैं. आप जानते हैं। लेकिन निर्माता जब तर्क को सिर के बल खड़ा कर देते हैं तो कहानी का असर खत्म हो जाता है. इस वेब सीरीज में भी यही हुआ.


Mai SE 1 Review: बिखरी कहानी से कमजोर पड़ा सीरीज का थ्रिल, साक्षी तंवर चौंकाती हैं अपने परफॉर्मेंस से

शुरुआती दो एपिसोड में माई थोड़ा बांधती है और लगता है कि शायद यह कुछ अलग अंदाज में आगे बढ़ेगी लेकिन ऐसा नहीं होता. बढ़ते हुए यह ढीली पड़ कर दोहराव की शिकार हो जाती है. नए किरदार कुछ नया नहीं जोड़ पाते. खास तौर पर सीमा पाहवा जैसी प्रतिष्ठित अभिनेत्री का ट्रैक बिल्कुल बेवजह नजर आता है. सीरीज की एकमात्र सफलता साक्षी तंवर का अभिनय है. उन्होंने खूबसूरती और सहजता से अपनी भूमिका निभाई है. वह अपने किरदार में पूरी संवेदना के साथ उतरी हैं. उनका अभिनय ही इस सीरीज को देखने की एकमात्र वजह बन सकता है. लंबे अर्से बाद दिखे प्रशांत नारायणन डबल रोल में बेकार गए, जबकि विवेक मुश्रान के हिस्से कुछ खास नहीं है. वामिका गब्बी औसत हैं। राइमा सेन जरूर थोड़ा असर पैदा करती हैं लेकिन उनके किरदार में ज्यादा रंग नहीं भरे गए.

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