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Homebound Review: 2025 की सबसे कमाल फिल्म को मिलना चाहिए ऑस्कर, इरफान और केके मेनन जैसे एक्टर्स की याद दिला गए ईशान खट्टर और विशाल जेठवा

Homebound Review: ईशान खट्टर-जाह्नवी कपूर की फिल्म 'होमबाउंड' को दुनियाभर के फिल्म फेस्टिवल्स में तारीफ मिली थी. यहां ये रिव्यू पढ़िए और जानिए आखिर क्यों सराही जा रही है ये फिल्म.

तुम दुबई चले जाओ, कम से कम वहां कोई ये नहीं पूछेगा कि आप गोभी भी हलाल करके खाते हैं.  मोहम्मद शोएब अली के अब्बा उसे ये कहते हैं लेकिन तमाम जिल्लत के बाद भी वो दुबई नहीं जाना चाहता. चंदन कुमार कहता है कि हम डरते हैं कि कल को पुलिस में भर्ती होने के बाद भी ये लोग थाने में झाड़ू ना लगवाएं हमसे और  इसलिए वो जनरल वाले कॉलम में पुलिस भर्ती का फॉर्म भरता जब उसके लिए तो सीट आरक्षित है. 

चंदन की मां स्कूल में काम करती है लेकिन बच्चों के माता-पिता कहते हैं कि हमारे बच्चों को खाना नहीं परोसेगी क्योंकि वो दलित है. एक अफसर उनसे कहता है कि ये नौकरी इनका हक है और आप लोगों पर SC/ST एक्ट लग सकता है और उसे जवाब मिलता है- अरे मिश्रा जी अपना संविधान अपने पास रखिए, ये वाकये बताने के लिए काफी हैं कि कैसे चंदन और शोएब के सपनों के आगे उनकी जाति और धर्म आ जाते हैं. इस फिल्म को ऑस्कर के लिए भेजा गया है और ये फिल्म इतनी कमाल की है कि इसे ऑस्कर मिलना चाहिए.

कहानी- ये कहानी है चंदन और शोएब की, दोनों को पुलिस में भर्ती होना है, सिपाही बनना है , घर के हालात खराब हैं, जब तक सेलेक्शन नहीं हो जाता ये छोटे मोटे काम करने की कोशिश करते हैं लेकिन इनकी जात और धर्म आड़े आ जाता है. फिर इनकी कहानी में क्या होता है, ये देखने आपको थिएटर जाना होगा क्योंकि ऐसी कमाल की फिल्म थिएटर में देखी जानी चाहिए.

कैसी है फिल्म - ये एक कमाल की फिल्म है. ये फिल्म सिर्फ इन दो लड़कों की जर्नी नहीं है. समाज के ऐसे बहुत सारे लड़कों की जर्नी है जो इन सबसे गुजरते हैं. इनकी दोस्ती, इनका स्ट्रगल, इनका जुनून, हर चीज को कमाल तरीके से दिखाया गया है. दो घंटे में एक फ्रेम ऐसा नहीं है जो एक्स्ट्रा हो या फिर जिसका मतलब ना निकले. इनके साथ जो भेदभाव होता है उसे जिस तरह से दिखाया गया है वो आपका दिल तोड़ देता है. कभी कोई कहता है कि शेर की खाल पहन लेने से सुअर शेर नहीं बन जाता, तो कभी कंपनी का कोई अधिकारी शोएब से कह देता है कि वो उसकी बोतल ना भरे.

जब शोएब पूछता है कि कंपनी में हमारा ही आधार क्यों लगता है. हमारे मां बाप का ही आधार क्यों लगता है और हमारी ही पुलिस वेरिफिकेशन क्यों होती है, तो उसका दर्द आप महसूस करते हैं. कोरोना का दौर भयावह तरीके से याद आता है. एक मिल बंद हो जाती है, वहां सिर्फ एक बूढ़ा गार्ड है. जब ये उससे पूछते हैं कि तुम क्यों नहीं गए तो वो कहता है- हम चले गए तो लौटने पर ये काम छूट जाएगा, जब ये कोरोना के दौर पर वापस घर आ रहे होते हैं तो चंदन कहता है- चाची से कहकर बिरयानी बनवाओ बढ़िया, भगोने के अंदर बैठकर खाएंगे. 

ये फिल्म इमोशन्स को इस तरह से दिखाती है कि आप रो पड़ेंगे. ये प्रोजेक्ट नहीं फिल्म है और इसे देखकर समझ आता है. होमबाउंड का मतलब है कि एक जगह कैद, यहां कौन कहां कैद है, किस दायरे में कैद है, ये आपको देखकर समझ आएगा.  इस तरह की फिल्मों को विदेशी फिल्म फेस्टिवल्स में तारीफें तो मिलती हैं लेकिन थिएटर और दर्शक नहीं लेकिन इस फिल्म के साथ करण जौहर जैसा बड़ा नाम जुड़ा है तो उम्मीद है कि इसे दर्शक और थिएटर दोनों मिलेंगे.

एक्टिंग- ईशान खट्टर ने कमाल का काम किया है. कहां नेटफ्लिक्स की सीरीज रॉयल्स में सिक्स पैक दिखाकर घुड़सवारी करना और कहां ये किरदार, ईशान ने दिखा दिया है कि वो हिंदी सिनेमा के सबसे बेहतरीन कलाकारों में से एक हैं. वो इस किरदार को जी गए हैं, सारे शोएब उनसे रिलेट करेंगे.

विशाल  जेठवा चंदन ही लगते हैं और उनका काम कमाल है, ये फिल्म उनके लिए भी मील का पत्थर साबित होगी. ये दोनों सिनेमा के कमाल के एक्टर्स इरफान और केके मेनन की याद दिला देते हैं, जो अपने किरादरों में खो जाया करते हैं. जाह्नवी कपूर ने अपनी इमेज तोड़कर एक देसी किरदार करने की कोशिश की है लेकिन उनपर ये सूट नहीं किया. उनका स्क्रीन टाइम भी कम है. ईशान और विशाल की एक्टिंग इतनी जबरदस्त है कि जाह्नवी फीकी लगती हैं और वो इस फिल्म की इकलौती कमजोर कड़ी हैं.

राइटिंग और डायरेक्शन- मसान के बाद नीरज घेवान ने फिर से दिखा दिया है कि कहानियों कहनी उन्हें आती हैं. दिलों को छूना उन्हें आता है. इस फिल्म मे उनकी शिद्दत कमाल तरीके से दिखती है. इमोशन्स को उन्होंने इस तरह से कैप्चर किया है कि सीन सीधे आपके दिल पर लगते हैं.

कुल मिलाकर ये फिल्म देखिए. इस फिल्म का आधा स्टार सिर्फ इसलिए काटा जा रहा है क्योंकि जिंदगी और फिल्मों में बेहतरी की गुंजाइश हमेशा बनी रहनी चाहिए.

रेटिंग- 4.5 स्टार्स

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