Ek Chatur Naar Review: बिल्कुल चतुर नहीं है ये फिल्म, खराब कहानी, ओवरएक्टिंग और वक्त की बर्बादी
Ek Chatur Naar Review: दिव्या खोसला और नील नितिन मुकेश की फिल्म एक चतुर नार सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है. अगर इस फिल्म को देखने का प्लान बना रहे हैं तो पहले रिव्यू पढ़ लें.
उमेश शुक्ला
दिव्या खोसला, नील नितिन मुकेश, सुशांत सिंह, छाया कदम
सिनेमाघर
कुछ फिल्में क्यों बनाई जाती हैं, किसलिए बनाई जाती हैं, क्या उन्हें बनाने के बाद मेकर्स खुद से ये सवाल पूछते हैं. शायद पूछते होंगे लेकिन फिर लगता होगा कि अब बना दी है तो चलो मार्केटिंग करते हैं. पीआर करते हैं और बेच डालते हैं, क्योंकि हम चतुर हैं लेकिन शायद वो ये भूल जाते हैं कि दर्शक सबसे ज्यादा चतुर है. ये फिल्म इतनी चतुर है कि ये दर्शकों को बिल्कुल चतुर नहीं समझती और यहीं मार खा जाती है.
कहानी
ममता एक गरीब महिला है, अपनी सास और बच्चे के साथ गरीबी में जिंदगी काट रही है. मॉल में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करती है, वेटर का काम करती है. एक दिन उसे एक आदमी का फोन मिल जाता है, उस फोन में कई राज हैं. वो उसे ब्लैकमैल करती है और बड़े चतुर तरीके से करती है. ऐसा उसके लगता है, फिर इसके बाद क्या होता है, ये अगर ये फिल्म ओटीटी पर आए तो देख लीजिएगा वो भी अगर कुछ करने को ना हो तो.
कैसी है फिल्म
ये फिल्म वक्त की बर्बादी है, इस फिल्म के ट्विस्ट एंड टर्न बचकाने लगते हैं. कुछ बनाने की कोशिश की गई है लेकिन वो भी ठीक से नहीं गई है. भर भर के ओवरएक्टिंग आपको इस फिल्म में देखने को मिलेगी. ये फिल्म देखकर आपको पुराने जमाने वाली फिल्में भी याद आ सकती हैं. हालांकि उनमें भी ट्विस्ट मजेदार होते थे लेकिन यहां उन्हें ट्विस्ट कहना इस शब्द का अपमान होगा. एक चतुर नार जैसे कमाल के गाने का भी अपमान ही है ये फिल्म. आपको समझ नहीं आता कि ये फिल्म क्यों बनाई गई है. ये फिल्म सिर्फ और सिर्फ आपको सिरदर्द देती है.
एक्टिंग
दिव्या खोसला ने यहां कुछ अलग करने की कोशिश की है लेकिन ये कोशिश खराब है. ये किरदार उनपर सूट ही नहीं किया है और वो ओवरएक्टिंग करती दिखी. नील नीतिन मुकेश का काम बढ़िया है, वही इकलौते एक्टर हैं फिल्म में जो अच्छा काम कर गए हैं. छाया कदम काफी खराब लगी हैं, ऐसे किरदार उन्हें नहीं करने चाहिए खासकर तब जब फिल्म फेस्टिवल्स में वो इतनी तारीफें बटोरती हैं. सुशांत सिंह जैसे कद के एक्टर को भी ऐसे किरदार सूट नहीं करते.
राइटिंग और डायरेक्शन
हिमांशु त्रिपाठी ने कहानी लिखी है और क्या वाकई लिखी है. उमेश शुक्ला ने डायरेक्ट किया है. इन दोनों का काम काफी खराब है, ना कहानी में दम है ना डायरेक्शन में और यही वजह है ये फिल्म खराब लगती है. आप फीमेल सेंट्रिक फिल्म बना रहे हैं तो उसमें दम होना चाहिए सिर्फ इस वजह से ही फिल्म नहीं देखी जा सकती है कि इसमें फीमेल कैरेक्टर लीड है.
कुल मिलाकर इस फिल्म को ना देखना असली चतुराई है
रेटिंग- 2 स्टार्स

























