इस्लाम में 'क़ुबूल है' के कितने गहरे मायने हैं? हकीकत जान खुल जाएंगी आंखें
Kabul Hai Meaning: क़ुबूल है...क्या ये महज शब्द या इसके धार्मिक और दार्शनिक मायने भी हैं. इस्लाम में इस शब्द को क्यों इतना महत्व दिया गया है? आइए जानते हैं.

Kabul Hai Meaning: कुबूल है… ये शब्द सिर्फ किसी निकाह की रस्म नहीं, बल्कि आत्मा की गहराई में उतरने वाली गवाही हैं. जब कोई यह कहता है, तो वह सिर्फ किसी इंसान को नहीं, बल्कि खुद अल्लाह की मर्जी को स्वीकार करता है.
सूफ़ी मत कहता है कि जो 'कुबूल है' कह देता है, वो खुदा के फ़रमान के आगे सिर झुका देता है. लेकिन आज यह वाक्य सोशल मीडिया का कैप्शन बन गया है, बिना नीयत, बिना एहसास. क्या आपने कभी सोचा है, इन तीन शब्दों में इतना असर क्यों है कि यह निकाह से लेकर आखिरी सांस तक हर रिश्ता तय कर देता है?
कुबूल है...आत्मा, ईमान और वजूद बदल देते हैं!
जब कोई कहता है कि कुबूल है…तो यह केवल एक जवाब नहीं होता. यह वो क्षण होता है जब एक इंसान अपनी आत्मा, अपने अहंकार और अपनी पूरी जिंदगी को किसी दूसरे इंसान और ईश्वर की मर्जी के हवाले कर देता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है इन तीन शब्दों में आखिर ऐसा क्या है जो इन्हें जन्नत और जहन्नुम के बीच की सीमा बना देता है?
इन तीन शब्दों से तय होती है ज़िंदगी की दिशा
इस्लाम में 'कुबूल है' कोई रस्मी वाक्य नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक और कानूनी वचन है. निकाह (विवाह) के समय जब काजी पूछता है कि क्या आपको यह निकाह मंज़ूर है? और दूल्हा-दुल्हन कहते हैं... कुबूल है, कुबूल है, कुबूल है.
तो ये सिर्फ प्रेम की घोषणा नहीं होती बल्कि यह एक ईश्वरी अनुबंध (Divine Contract) बन जाता है. इस वक्त स्वर्ग और पृथ्वी के बीच एक नया रिश्ता जन्म लेता है, और अल्लाह के सामने दो आत्माएं एक पवित्र बंधन में बंध जाती हैं.
परंपरा में तीन बार दोहराने का कारण भी रहस्यमय है यह मन, वचन और कर्म तीनों की सहमति का प्रतीक है. इस तरह यह घोषणा करती है कि व्यक्ति अब सिर्फ भावनाओं से नहीं, बल्कि अपनी सम्पूर्ण चेतना से इस बंधन को स्वीकार कर रहा है.
जहां प्रेम भी है और परीक्षा भी
सूफिज्म के अनुसार 'कुबूल है' कहने वाला व्यक्ति अब अपनी नहीं, खुदा की मर्जी का गुलाम हो जाता है. यानि कि कुबूल है सिर्फ विवाह नहीं, ईमान की परीक्षा भी है. जब आप 'कुबूल है' कहते हैं, तो आप यह मान लेते हैं कि मेरी चाहत अब वही होगी जो अल्लाह चाहेगा.
यह वाक्य प्रेम का भी है और आत्मसमर्पण का भी. सूफ़ी संत हजरत निज़ामुद्दीन औलिया कहा करते थे जो क़ुबूल कहता है, वो खुदा के फ़रमान के आगे सिर झुका देता है. यानी इस एक शब्द में इंसान अपनी आजादी और जिम्मेदारी दोनों सौंप देता है.
जब 'कुबूल है' झूठ बन जाता है…
लेकिन आज के दौर में यह पवित्र वाक्य अक़्सर एक डायलॉग बनकर रह गया है. फ़िल्मों, वेबसीरीज़ और सोशल मीडिया ट्रेंड्स ने इसे मोहब्बत की नाटकीय लाइन बना दिया है लोग बड़ी आसानी से बिना सोचे समझे कह देते हैं-तेरी हर बात मुझे कुबूल है.
कितना अजीब है कि जिस वाक्य के लिए कभी गवाह बुलाए जाते थे, आज वही बिना गवाही, बिना नीयत, और बिना एहसास के कहा जाता है. अल्लाह के नाम पर किया गया यह अनुबंध अब कैप्शन और रील-शॉर्ट बन चुका है.
शरीअत कहती है अगर निकाह में 'कुबूल है' दिल से नहीं कहा गया, तो वह अमान्य है. यानि अल्लाह के दरबार में यह सिर्फ ज़ुबान नहीं, नीयत का सबूत है.
'कुबूल है' का आध्यात्मिक रहस्य क्या है?
इस वाक्य का सबसे बड़ा रहस्य यह है कि यह सिर्फ निकाह तक सीमित नहीं. सूफ़ी दर्शन में 'कुबूल है' एक ईश्वरीय संवाद है. जब कोई साधक, मुर्शिद या भक्त अपनी ज़िंदगी में मुश्किलों, तकलीफों या इम्तेहान से गुजरता है और फिर भी कहता है- 'जो तू चाहे वही मर्जी, मुझे कुबूल है.'
तो वह इंसान ईमान की उस ऊंचाई पर पहुंच जाता है जहां उसकी आत्मा खुदा की मर्जी से एक हो जाती है. यह वही क्षण है जब इंसान शिकायत करना छोड़ देता है और स्वीकार करना सीखता है. 'कुबूल है' कहना, दरअसल 'ना' कहने की ताकत छोड़ देना है.
'कुबूल है' तीन बार क्यों कहते हैं?
इस्लामी फिक़्ह के अनुसार निकाह में 'कुबूल है' तीन बार इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह तीन स्तरों पर प्रमाण देता है-
- मानसिक सहमति (Niyyat): मन में इच्छा और इरादा स्पष्ट हो.
- वाचिक सहमति (Ijaab): ज़ुबान से स्पष्ट शब्दों में कहा जाए.
- सामाजिक सहमति (Gawahi): समाज या गवाहों के सामने कहा जाए ताकि रिश्ता वैध और सम्मानित हो.
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
टॉप हेडलाइंस
Source: IOCL






















