प्राचीन काल में बाल धोने के नियम: जानें सेहत, ऊर्जा और रहस्यमयी मान्यताओं का गहरा संबंध!
Hair washing rules: प्राचीन भारत में बेहतर जीवनशैली से जुड़े कई नियमों का पालन किया जाता था. इसमें बाल धोने के नियम भी शामिल हैं. आखिर बालों को जल्दबाजी में क्यों नहीं धोना चाहिए?

Ancient cultures hair washing rules: प्राचीन काल में बालों धोना कभी भी जल्दबाजी में किया जाने वाला स्वच्छता कार्य नहीं था. यह एक अच्छे से किया जाने वाले काम था जो सेहत, ऊर्जा और ब्रह्मांडीय व्यवस्था से जुड़ी थी.
बालों को नर्वस सिस्टम से जुड़ी जीवन शक्ति का वाहक माना जाता था. मान्यता है कि, गलत समय पर, बीमारी के बाद, चंद्र चरण के दौरान या बिना आराम किए बाल धोने से शरीर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
बाल धोने से जुड़े ये नियम केवल अंधविश्वास नहीं थे, बल्कि तापमान नियंत्रण, सेहत से जुड़े लाभ और दैनिक एवं मौसमी लय द्वारा निर्मित मन-शरीर के बीच तालमेल बनाते थे.
बाल धोने को लेकर अलग-अलग संस्कृतियों की राय
दुनियाभर की कई संस्कृतियों में बालों को सिर की त्वचा से उगने वाले निर्जीव रेशों से कहीं ज्यादा महत्व दिया जाता था. माना जाता था कि, इनमें जीवन शक्ति, स्मृति, और व्यक्तिगत ऊर्जा समाहित होती है.
कई परंपराओं में बाल को शक्ति, अनुशासन और आध्यात्मिक ऊर्जा से जोड़ा जाता है. इसी वजह से, बालों को धोना शरीर की ऊर्जा क्षेत्र को सक्रिय करने के समान माना जाता था. बाल धोते समय लापरवाही या गलत समय का चयन करने से व्यक्ति शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से कमजोर हो जाता था.
इसी मान्यताओं के कारण स्त्रियां उपवास, शोक, प्रार्थना या बीमारी के दिनों में बाल धोने जैसे कार्य को टालती थी. इन क्षणों में शरीर को असुरक्षित माना जाता था. सिर की त्वचा से तेल, गर्मी और सुरक्षात्मक परतें हटाने से आंतरिक संतुलन बिगड़ने का खतरा माना जाता था.
प्राचीन भारत में बाल धोने के लिए अवलोकन जरूरी
शैम्पू, एंटीबायोटिक्स या सीरम के आविष्कार से काफी पहले लोग अवलोकन (Observation) पर निर्भर थे. तब लोगों ने इस बात को समझा कि, ठंड के समय में बाल धोने से सिरदर्द होता था. रात में धोने से ठंड लगती थी. बुखार के दौरान बाल धोने से तबीयत और लक्षण बिगड़ जाते थे. प्राचीन समय से चले आ रहे यही अवलोकन नियमों में बदल गए.
सिर की त्वचा पर मौजूद नैचुरल ऑयल को सहज रूप से सुरक्षात्मक माना जाता था. बार-बार सिर धोने से ये तेल निकल जाते थे, जिससे सिर ठंड, तूफान और संक्रमण के प्रति असुरक्षित हो जात था. यही कारण है कि, आज भी लोग नहाने से पहले बालों में तेल लगाते हैं.
तेल केवल सौंदर्य प्रसाधन ही नहीं, बल्कि वे बालों के लिए औषधि का काम करते हैं.
आधुनिक समय में पानी को आमतौर पर हानिरहित तत्व माना जाता है. हालांकि प्राचीन इतिहास में चीजें इससे उलट थीं. नदियां, कुएं और तालाब जैसे जल स्त्रोत् अक्सर हानिकारिक जीवाणुओं, परजीवियों और ऋतुओं के साथ मिलकर प्रदूषित हो जाते थे.
ऐसे में बाल धोने के लिए पानी का उपयोग करने वाले व्यक्तियों को आमतौर पर खुले में लंबे समय तक पानी के संपर्क में रहना पड़ता था, जिससे उनके बाल रूखें और खराब हो जाते थे.
बाल धोने के लिए कौन-सा समय बेस्ट?
बाल धोने के लिए सुबह का समय बेहद सुरक्षित माना जाता था क्योंकि सूर्य की रोशनी से बाल जल्दी सूख जाते थे. शाम या रात के समय बाल धोने से परहेज किया जात था, खासकर सर्दियों के मौसम क्योंकि माना जाता था कि, गीले बाल सिर के अंदर ठंड को रोके रखते हैं,जिससे सिर दर्द, जकड़न और लंबे समय तक मानसिक तनाव की समस्या बनी रहती थी.
प्राचीन समय में बालों को धोने के लिए चक्रों का पालन किया जाता था. चंद्र कलाएं, ऋतुएं और कृषि कैलेंडर. बाल सामाजिक पहचान के साथ वैवाहिक स्थिति, जाति, आयु, शोक या भक्ति का भी प्रतीक थे.
बालों को धोना या न धोना जीवन में बदलाव के संकेत की ओर इशारा करता था. विधवाएं, तपस्वी या शोक संतप्त लोग इन नियमों का सख्ती से पालन करते थे.
बालों से जुड़े ये नियम आज के समाज में कठोर लग सकते हैं, लेकिन प्राचीन भारत में वह कभी जीवन रक्षा के लिए एक अहम मार्गदर्शक हुआ करते थे. ये दिशा निर्देश व्यक्तियों को बीमारियों से बचाने के साथ शरीर में गर्मी बनाए रखने और स्वच्छता मानकों का पालन करने और सामाजिक स्थिरता को मजबूत करने का काम करते थे.
आधुनिक भारत में पहले से चली आ रही कई मान्यताएं आज धीरे-धीरे लुप्त होते जा रही है. तेजी से बदलते इस दौर में आज भी कुछ पारंपरिक ज्ञान कायम है, जैसे कि, नहाने से पहले बालों में ऑयल करना, रात के समय बाल धोने से बचना और बीमारी के दौरान शरीर को भरपूर आराम देना. बालों को इंद्रियों का निवास स्थान भी माना जाता था.
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