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Parenting: बच्चों को जिम्मेदार बनाने के चक्कर कहीं आप उनका आज तो नहीं कर रहे हैं खराब ? जानें परवरिश के 4 तरीके, कौन सा है बेहतर

बच्चों की परवरिश के चक्कर में पैरेंट्स कई बार अपनी बातें थोपकर उन्हें परेशान करने लगते हैं. ऐसे में माता-पिता को कोशिश करनी चाहिए कि बच्‍चे खुद अपना एक लक्ष्‍य बनाएं. जानें पैरेंटिंग के खास टिप्स.

Parenting Advice: बच्‍चों को सभी अच्छी और जरूरी बातों को सिखाना पेरेंट्स (Parents) की सबसे पहली और बड़ी जिम्‍मेदारी होती है. हालांकि, पेरेंट्स को इस दौरान अपने नेचर को ध्‍यान में रखकर ये सब करना सबसे ज्यादा जरूरी है. क्योंकि बच्चों को तो हर कोई अच्छा बनाना चाहता हैं, लेकिन पैरैंटिग (Parenting Tips) में सबसे जरूरी बात ही वे भूल जाते हैं और यही गलती कर बैठते हैं. बच्चा अगर कुछ अच्छा नहीं सीख पाता तो पेरेंट्स बेहतर परवरिश ना कर पाने के लिए खुद को जिम्मेदार ठहराने लगते हैं.
 
अपने बच्चों को ज्यादा अच्छा बनाने के चक्कर में हम उन्हें परेशान करने लगते हैं और इससे हम जो उनसे चाहते हैं, उसके बिल्कुल विपरीत बच्चों पर असर होता.ऐसे में माता-पिता यह कोशिश करें कि बच्‍चे खुद अपना एक लक्ष्‍य बनाएं, उन पर अपना लक्ष्‍य थोपे नहीं. यहां जानें पैरेंटिंग के कुछ तरीके, जिनके बारे में जानकर आपको अपने बच्चे की परवरिश करने में हेल्प मिलेगी...
 
अथॉरिटेटिव पैरेंटिंग
ऐसे पेरेंट्स अपने बच्चे के साथ पॉजिटिव रिश्ता रखना चाहते हैं और बच्चों के साथ रिश्ते बेहतर करने के लिए बहुत मेहनत भी करते हैं. बच्चों के लिए कोई नियम बनाने से पहले उन्हें इसका कारण भी खुलकर बता देते हैं. अगर बच्‍चा नियम तोड़ता है तो उसे सबक के तौर पर कोई पनिशमेंट भी देते हैं, लेकिन बच्चों की भावनाओं को ध्यान में रखकर पेरेंट्स ऐसा करते हैं. ऐसे माता-पिता बच्चों को पॉजिटिव डिसिप्लिन सिखाने में यकीन रखते हैं. माना जाता है कि अथॉरिटेटिव पेरेंट्स के बच्चे बड़े होकर जिम्मेदार नागरिक बनते हैं. 
 
नेगलेक्‍टफुल पेरैंटिंग
बच्‍चों के प्रति बेपरवाही के कारण आपके पालन-पोषण का बच्चों पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है. ऐसे लापरवाह पेरेंट्स बच्चे पर ध्‍यान नहीं देते, जिससे बच्चों को बाहर लोगों से कैसे मिलना जुलना है, क्या बात करनी चाहिए और कैसे पेश आना चाहिए इसमें परेशानी आती है. ऐसे माता पिता बच्‍चों की परेशानी को भी नजरअंदाज कर देते हैं. ऐसे में बच्‍चे को घर में मेंटल सर्पोट नहीं मिलता.
 
परमिसिव पेरैंटिंग
ऐसे पेरेंट्स अपने बच्चों के लिए अच्छे-अच्छें नियम बनाते हैं, लेकिन उन्हें कभी अमल नहीं करते और ना ही बच्चे की गलती पर उन्हें सबक सिखाते. ऐसे पेरैंट्स सोचते है कि बच्चा खुद से ही सब सीखेगा और तभी कुछ बेहतर करेगा जब उसकी जिंदगी में दखल न दी जाए. ऐसे पेरैंट्स बहुत रिलैक्स होते हैं. वे कोई बड़ी परेशानी होने पर ही इनवॉल्व होना पसंद करते हैं. एक स्टडी के मुताबिक परमिसिव पेरैंट्स के बच्चे एकेडमिक्‍स में दूसरों बच्चों से पीछे रह जाते हैं. 
 
स्ट्रिक्‍ट पैरेंटिंग
यह ऑथोरिटेनियन्‍ट पैरेंटिंग भी कहलाती है. इसमें बच्‍चों को अपने बारे में कुछ भी सोचने की आजादी नहीं होती, पेरेंट्स का कहा ही पत्थर की लकीर होती है. ऐसे पेरेंट्स बच्चे के लिए कोई फैसला लेने से पहले उसकी फीलिंग्स के बारे में नहीं सोचते. वहीं, बच्चों से उनके मन की बात जानने में भी इंटरेस्टेड नहीं होते. ऐसे बच्चों में सेल्फ एस्टीम से जुड़ी कई तरह ही परेशानियां होने लगती हैं और उनका कॉन्फिडेंस लेवल डाउन हो जाता है. ऐसे बच्चे आगे चलकर लड़ाकू स्वभाव के हो जाते हैं.
 
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