दुनिया के ट्रेंड के विपरीत भारतीय पुरुषों और महिलाओं का छोटा हो रहा कद, लंबाई में औसतन इतनी हुई कमी
भारत में व्यस्कों की लाइफस्टाइल आबादी की औसत लंबाई को प्रभावित कर रही है. शोधकर्ताओं का कहना है कि दुनिया में ट्रेंड के विपरीत मामला चिंताजनक है.
क्या भारतीय की लंबाई घट रही है? पूर्व में कई रिसर्च से पता चला है कि दुनिया भर के व्यस्कों की औसत लंबाई बढ़ रही है, लेकिन इस ट्रेंड के विपरीत भारतीयों के साथ ऐसा मामला नहीं है. भारत में व्यस्कों की औसत लंबाई चिंताजनक दर से गिर रही है. Open Access Scientific Journal PLOS One में प्रकाशित रिसर्च का शीर्षक है '1998 से 2015 तक भारत में व्यस्क की लंबाई का ट्रेंड: राष्ट्रीय परिवार एवं स्वास्थ्य सर्वे से सबूत'. रिसर्च के मुताबिक, ये गिरावट 15-25 वर्षीय आयु समूह की महिलाओं और पुरुषों में देखी गई है. महिलाओं की औसत लंबाई करीब 0.42 सेंटीमीटर कम हुई है, जबकि पुरुषों की औसत लंबाई 1.10 सेंटीमीटर तक गिरी है.
भारतीय महिला और पुरुष दोनों का छोटा हो रहा कद
शोधकर्ताओं का कहना है कि वैश्विक स्तर पर औसत लंबाई में कुल बढ़ोतरी के बीच भारत के व्यस्कों की औसत लंबाई में कमी चिंताजनक है और तत्काल ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है. विभिन्न जेनेटिक समूह के रूप में भारतीय आबादी की लंबाई का अलग-अलग मानक के तर्क को भी जांचने की जरूरत है. चिंताजनक ये है कि रिसर्च इस हकीकत की तरफ इशारा करती है कि नतीजों में नन जेनेटिक फैक्टर भी भूमिका अदा करते हैं, जिसमें लाइफस्टाइल, पोषण, सामाजिक और आर्थिक निर्धारक शामिल हैं.
दुनिया में व्यस्कों की औसत लंबाई के ट्रेंड से विपरीत
उन्होंने कहा कि जेनेटिक का तालमेल, पोषण और लंबाई पर दूसरे सामाजिक और पर्वायवरणीय निर्धारक जांच की जरूरत को दर्शाते हैं. शोधकर्ताओं ने भारतीय लोगों के बीच लंबाई के विभिन्न ट्रेंड को देखा और नतीजों से खुलासा हुआ कि 15-25 वर्ष की उम्र में पुरुषों और महिलाओं की औसत ऊंचाई हाल के वर्षों में स्पष्ट रूप से कम हुई है. धार्मिक समूह, जाति, कबीला, निवास और संपत्ति के इंडेक्स सभी से औसत लंबाई में कमी का पता चला. उन्होंने भारत के व्यस्कों की औसत ऊंचाई में गिरावट को प्रभावित करनेवाले कारकों पर भी चर्चा की.
फैक्टर के बारे में बात करते उन्होंने कहा कि भारत के व्यस्कों की औसत लंबाई में ये कमी को प्रभावित कर रहे हैं, लेकिन आम तौर से कहा जाता है कि आनुवांशिक फैक्टर का अंतिम लंबाई के निर्धारण में 60-80 फीसद योगदान होता है, वहीं पर्वायरणीय और सामाजिक फैक्टर उस क्षमता को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
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