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चीन-पाकिस्तान की दोहरी रणनीतिक चुनौती को मात देने के लिए भारत बढ़ा रहा अपना सैन्य खर्च

विश्व में सैन्य खर्च 2013-20 के दौरान मिलिट्री खर्च में 19% की वृद्धि हुई है. इस मामले में भारत चौथे नंबर पर है. वहीं, 2015 से लगातार सभी देश सैन्य व्यय में वृद्धि कर रहे हैं.

भारत ने पिछले एक साल में सैन्य खर्च के मामले में रूस से एक पायदान पीछे है. इसके साथ ही सैन्य खर्च के मामले में भारत विश्व का चौथा सबसे देश बन गया है. दरअसल, सोमवार को स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) ने अपनी रिपोर्ट जारी की है, जिसमें उसने 2022 के सैन्य खर्चों का विवरण दिया है. सिपरी की रिपोर्ट के मुताबिक भारत का सैन्य खर्च पिछले वर्ष (2022) में कुल 81.4 बिलियन डॉलर रहा और यह दुनिया में चौथा सबसे अधिक था. सैन्य खर्च के मामले में पिछले वर्ष की तुलना में 6% की बढ़ोतरी देखी गई. 2022 में सैन्य उपकरणों पर वैश्विक खर्च 2.24 ट्रिलियन डॉलर रहा. अगर इसे रियल टर्म में देखा जाए तो यह 3.7% बढ़ी है. यह अब तक का सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया है. रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि 2022 लगातार आठवां वर्ष रहा जब वैश्विक सैन्य खर्च बढ़ा. सीपरी ने यह रिपोर्ट रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के बीच जारी किया है, जो यूरोप के सुरक्षा ढांचे को प्रभावित कर रहा है.

रिपोर्ट के चीन ने लगातार चार गुणा अधिक खर्च किये हैं. चीन ने 2022 में सैन्य व्यय के लिए अनुमानित $292 बिलियन का आवंटन किया था. इसके साथ ही वह दुनिया का दूसरा सबसे बड़े सैन्य व्यय कर्ता बना रहा. यह राशि 2021 की तुलना में 4.2% अधिक थी और 2013 की तुलना में यह 63% अधिक खर्च है. यह उल्लेखनीय है कि चीन अपने सैन्य खर्च को विगत 28 सालों से लगातार बढ़ाते चले आ रहा है. वहीं अमेरिका ने 2022 में अपने सैन्य बजट से 10 गुणा अधिक खर्च किया है. वहीं, अगर यूरोप की बात करें तो रिपोर्ट में यह कहा गया है कि यूरोपीय देश भी विगत 30 वर्षों से साल-दर-साल अपने सैन्य उपकरणों पर खर्च बढ़ाता आ रहा है.

विश्व के 10 सबसे ज्यादा सैन्य खर्च करने वाले देश

अगर हम विश्व के 10 सबसे ज्यादा सैन्य खर्च करने वाले देशों की बात करें तो उसमें- सबसे पहले नंबर पर अमेरिका है. उसने 2022 में 877 बिलियन डॉलर खर्च किया है. इसके बाद चीन खड़ा है. चीन ने 292 बिलियन डॉलर खर्च किया है. तीसरे नंबर पर रूस है. उसने 86.4 बिलियन डॉलर खर्च किए हैं. चौथे नंबर पर भारत है और हमने अपने सैन्य साजो-सामान पर कुल 81.4 बिलियन डॉलर खर्च किया है. इसी तरह से क्रमशः सऊदी अरेबिया (75 बिलियन डॉलर), यूके (68.5 बिलियन डॉलर), जर्मनी (55.8 बिलियन डॉलर), फ्रांस ने (53.6 बिलियन डॉलर), साउथ कोरिया ने (46.4 बिलियन डॉलर) और जापान ने (46 बिलियन डॉलर) खर्च किए हैं.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चीन और रूस के सैन्य खर्च के आंकड़ों में पारदर्शिता नहीं होने की वजह से ये और भी अधिक हो सकते हैं. इसके साथ ही यूक्रेन अब सैन्य खर्च के मामलों में 11वें स्थान पर पहुंच गया है. उसका कुल खर्च 44 बिलियन डॉलर है. वहीं, अपना पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान इस मामले में 10 बिलियन डॉलर के साथ 24वें स्थान पर है. 2021 की रिपोर्ट जब प्रकाशित हुई थी तब रूस 5वें स्थान पर था लेकिन अब वह दो स्थान का छलांग लगाते हुए तीसरे नंबर पर आ गया है. रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया गया है कि विश्व स्तर पर बढ़ते सैन्य उपकरणों की होड़ और खर्च यह दिखाता है कि हम एक असुरक्षित दुनिया में जी रहे हैं. दुनिया भर के देश अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं और वे इसलिए लगातार अपने सैन्य खर्चों में वृद्धि कर रहे हैं. सभी अपने मिलिट्री खर्च को बढ़ाकर अपने आप को सुरक्षित महसूस करना चाहते हैं.

भारत क्यों बढ़ा रहा अपना सैन्य खर्च

दरअसल, भारत के साथ लगातार चीन के साथ सीमा विवाद पिछले कुछ वर्षों में गहराए हैं. एलएसी पर लगातार चीन अपने सैनिकों, सुरक्षा के साजो-सामान और आधारभूत संरचना को बढ़ा रहा है. इसके साथ ही पाकिस्तान लगातार भारत के अंदर अपने आतंकवादियों और घुसपैठियों को भेजने का प्रयास कर रहा है. ऐसे में हमें अपनी सुरक्षा को लेकर दो तरफा खतरे का सामना करना पड़ रहा है. यही वजह है कि भारत लगातार अपने सैन्य उपकरणों को आधुनिक बनाने और चीन के साथ एलएसी पर अपनी मजबूत स्थिति को बनाए रखने के लिए रक्षा बजट पर ज्यादा खर्च कर रहा है. भारत के रक्षा बजट के संबंध में जो गौर करने वाली बात है वह यह कि उसका एक बड़ा हिस्सा रिटायर्ड सैनिकों व अधिकारियों के पेशंन और कार्यरत कर्मियों के सैलरी पर खर्च किया जाता है. 

अगर हम 2023-24 के रक्षा बजट की बात करें तो यह कुल 5.93 लाख करोड़ रुपये का है. लेकिन इसमें से 1.4 लाख करोड़ रुपये सिर्फ पेंशन और 1.8 लाख करोड़ रुपये सैलरी का हिस्सा है. यानी की कुल 3.2 लाख करोड़ रुपये सिर्फ 14 लाख सैनिकों की सैलरी और पेंशन भोगियों का भुगतान करने के लिए खर्च किया जाना है. चूंकि हमारे आर्म्ड फोर्सेस के पास क्रिटिकल ऑपरेशन के लिए सैन्य उपकरणों की कमी है. इसकी पूर्ति करने के लिए हमें इंफैंट्री, सबमरीन, लड़ाकू हेलिकॉप्टर आदि की आवश्यकता है. इसके लिए सैन्य आधुनिकीकरण के लिए खर्च किया जाना आवश्यक है. सीपरी रिपोर्ट में यह कहा गया है कि भारत का 2013 के मुकाबले 47 % और 2021 की तुलना में 6% अधिक सैन्य खर्च रहा है.  
 
 

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