क्या आप जानते हैं वर्ल्ड कप ही क्यों बोलते हैं, वर्ल्ड गिलास क्यों नहीं
आज आप जिस वर्ल्ड कप को देखते हैं, उसका आकार 1800 के दशक में तय हुआ था. उस दौरान इसे शादियों में या फिर किसी अन्य जश्न के मौके पर इस्तेमाल किया जाता था.

वर्ल्ड कप 2023 के फाइनल मुकाबले में ऑस्ट्रेलिया ने भारत को 6 विकेटों से करारी शिकस्त दे कर वर्ल्ड कप ट्रॉफी अपने नाम कर ली. खैर, आज हम भारत की जीत और हार पर चर्चा नहीं करेंगे, बल्कि ये जानने की कोशिश करेंगे कि जीत की ट्रॉफी को वर्ल्ड कप ही क्यों कहते हैं, वर्ल्ड गिलास या वर्ल्ड प्लेट क्यों नहीं कहते. इसके साथ ही ये भी जानेंगे कि आखिर जीत की निशानी के तौर पर कप का दिया जाना कैसे शुरू हुआ.
जीत की निशानी कैसे बना कप?
जीत की ट्रॉफी का इतिहास इंसान के विकास के दौर से है. हर समय जब इंसान अपने किसी प्रतिद्वंदी से जीतता था तो वह जीत की निशानी के तौर पर कुछ ना कुछ उसका रख लेता था. बाद में जब ये ट्रॉफी खेल के मैदान में पहुंची तो इसका एक रूर रंग तय किया गया. सबसे पहले ऐसा रोमन्स ने किया. उन्होंने विजेता टीम के लिए तरह-तरह की वास्तुशिल्प ट्रॉफियां बनवाईं. लेकिन फिर 1800 के दशक में जीत की निशानी के तौर पर कप का इस्तेमाल होने लगा.
शादियों से मैदान तक
आज आप जिस वर्ल्ड कप को देखते हैं, उसका आकार 1800 के दशक में तय हुआ था. उस दौरान इसे शादियों में या फिर किसी अन्य जश्न के मौके पर इस्तेमाल किया जाता था. इसे उस समय लविंग कप कहा जाता था. बाद में धीरे-धीरे इन्हीं पार्टियों के जरिए ये कप लोकप्रिय होता चला गया और ये जीत की निशानी के तौर पर देखा जाने लगा. बाद में यही जीत की निशानी कप खेल में विजेता टीम को दिया जाने लगा. हालांकि, इस बार क्रिकेट मैच में जो वर्ल्ड कप दिया गया उसका आकार कप जैसा नहीं था. लेकिन जीत की निशानी को हमेशा से कप कहा जाने लगा है, इसलिए इसका आकार और रूप कैसा भी हो लोग इसे अप कप ही कहते हैं.
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Source: IOCL





















