कोई एयरलाइन कितना बढ़ा सकती है किराया, क्या हैं इसके नियम?
कोई एयरलाइन कितना किराया बढ़ाएगी और कितना कम करेगी, ये चीजें कई बातों पर निर्भर करती हैं. इंडिया में हवाई टिकटों की कीमत पूरी तरह डायनेमिक प्राइसिंग पर आधारित होती है.

आपने अक्सर सुना या फिर कहीं-न-कहीं पढ़ा होगा कि त्योहारों पर, किसी विशेष परिस्थितियों में या फिर इमरजेंसी की स्थिति में एयरलाइन्स फ्लाइट्स का किराया बढ़ा देती हैं. इसका ताजा उदाहरण आपको इंडिगो क्राइसिस के दौरान देखने को मिला, क्योंकि इस दौरान जब लगातार इंडिगो की फ्लाइट्स कुछ दिनों तक कैंसिल हुईं, तो फ्लाइट का किराया आसमान छूने लगा. इसको रोकने के लिए नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने विशेष तौर पर किराया न बढ़ाने के लिए कहा था, उसके बावजूद भी राहत नहीं मिली थी. बाद में इसको लेकर कैपिंग पॉलिसी लागू कर दी गई थी. ऐसे में हमारे मन में सवाल आता है कि आखिर एक कंपनी कितना किराया बढ़ा सकती है और इसको लेकर क्या नियम हैं.
कितना किराया बढ़ा सकती हैं कंपनियां?
कोई एयरलाइन कितना किराया बढ़ाएगी और कितना कम करेगी, ये चीजें कई बातों पर निर्भर करती है. इंडिया में हवाई टिकटों की कीमत पूरी तरह डायनेमिक प्राइसिंग पर आधारित होती है. अगर हम इसको सरल शब्दों में समझें, तो यानी किराया मांग, सीजन, बुकिंग की टाइमिंग, फ्यूल प्राइस और सीट उपलब्धता के हिसाब से बदलता रहता है. यहां आपको एक बात ध्यान रखना होगा कि सरकार या फिर DGCA यानी डायरेक्टर जनरल ऑफ सिविल एविएशन की तरफ से नॉर्मल दिनों में किसी भी एयरलाइन के लिए अधिकतम किराया तय नहीं किया जाता. इसका मतलब यह हुआ कि कोई लिमिट तय नहीं है कि एयरलाइंस कितना भी किराया बढ़ा या घटा सकती हैं. हालांकि, इस दौरान उनको नियमों के तहत पारदर्शिता रखनी होती है.
क्या हमेशा से कंपनियां किराया तय करती थीं?
इस सवाल का जवाब सरकार की तरफ से संसद में 15 दिसंबर 2022 को दिया गया था. डिजिटल संसद में उपलब्ध डॉक्यूमेंट के अनुसार, एक सवाल का जवाब देते हुए वी.के. सिंह ने कहा था कि मार्च 1994 में एयर कॉरपोरेशंस अधिनियम के निरस्त होने के बाद भारत का घरेलू विमानन बाजार डीरगुलेट कर दिया गया. इसके बाद हवाई किराया पूरी तरह बाजार आधारित हो गया और इसे न तो सरकार तय करती है और न ही नियंत्रित करती है. PRS India की एक रिसर्च रिपोर्ट बताती है कि परिवहन, पर्यटन और संस्कृति पर स्थायी समिति अध्यक्ष वी. विजयसाई रेड्डी ने एयरफेयर तय करने से जुड़े मुद्दे पर अपनी रिपोर्ट 10 अगस्त 2023 को प्रस्तुत की थी. इसमें बताया गया कि वर्ष 1994 से पहले हवाई किराए केंद्र सरकार द्वारा एयर कॉरपोरेशन अधिनियम, 1953 के तहत पूरी तरह नियंत्रित किए जाते थे. वर्ष 1994 में हवाई किराया प्रणाली को डीरगुलेट कर दिया गया.
क्यों बढ़ते हैं अचानक?
शादी का सीजन हो, त्योहार हो, कहीं कोई हादसा हो गया हो या फिर दूसरी परिस्थिति हो, अचानक विमान कंपनियां किराये का दाम आसमान पर पहुंचा देती हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इस समय डिमांड काफी बढ़ जाती है और सप्लाई सीमित ही रहती है. ज्यादा लोग टिकट खोजते हैं, सिस्टम अपने-आप किराया बढ़ा देता है. इसके अलावा यात्रा के दिन या एक दिन पहले अगर कोई टिकट खोजता है, तो कंपनियों को लगता है कि यात्री किसी मजबूरी में यात्रा कर रहा है, इसलिए किराया ज्यादा हो जाता है. हालांकि, जब सरकार को लगता है कि अब कंपनियां अपनी मनमानी कर रही हैं, तो सरकार की तरफ से जरूरी कदम उठाए जाते हैं ताकि इसे कंट्रोल किया जा सके. इसका उदाहरण खुद एविएशन मिनिस्टर किंजरापु राममोहन नायडू ने इंडिगो के मामले पर बोलते हुए दिया था कि कुंभ मेले के समय, पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद और कोविड-19 महामारी के दौरान सरकार ने कदम उठाकर कीमतों को तय किया था.
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Source: IOCL























