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Seats In Delimitation: परिसीमन में किस राज्य की झोली में आ सकती हैं सबसे ज्यादा सीटें? जान लीजिए कैसे होता ये तय

Seats In Delimitation: परिसीमन की चर्चा शुरू हो गई है. साल 2026 में परिसीमन किया जा सकता है. ऐसे में यह कैसे तय होता है कि आखिर किस राज्य में कितनी सीटें आएंगी. चलिए जानें.

Seats In Delimitation: साल 2026 आने को है और परिसीमन की चर्चाएं शुरू हो चुकी हैं. साल 2001 की जनगणना के बाद से अटल बिहारी बायपेई ने 25 साल तक के लिए परिसीमन को टाल दिया था. ऐसे में 2025 के बाद अगले साल यह समय पूरा हो जाएगा और फिर से परिसीमन हो सकेगा. वहीं परिसीमन के नाम पर साउथ के राज्यों पर अलग तलवार लटक रही है. एमके स्टालिन ने 25 फरवरी को बयान देकर कहा था कि परिसीमन के नाम पर दक्षिण भारत में तमिलनाडु में आठ लोकसभा सीटें कम होने जा रही हैं. इस बहस के बीच यह जान लेते हैं कि आखिर परिसीमन क्या होता है और सीटें तय कैसे होती हैं. 

क्यों की गई परिसीमन की व्यवस्था

पहले यह जान लेते हैं कि आखिर परिसीमन की व्यवस्था की क्यों गई थी. दरअसल लोकसभा और विधानसभा में जनसंख्या के आधार पर संतुलित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए परिसीमन किया जाता है. आजादी के बाद संविधान बनाने वालों ने यह तय किया कि लोकसभा और विधानसभा में जनसंख्या के आधार पर सीटों का निर्धारण किया जाएगा. इसीलिए परिसीमन व्यवस्था लागू की गई. अब तक चार बार परिसीमन आयोग का गठन हो चुका है और जनसंख्या के आधार पर ही लोकसभा सीटें बढ़ाई जा चुकी हैं. 

कितना बदलेगा सीटों का गणित

उम्मीद की जा रही है कि इस हिसाब से साल 2026 में भारत की आबादी 150 करोड़ हो जाएगी. साउथ में जहां इसको लेकर बहस चल रही है, वहां कर्नाटक में लोकसभा सीटें 28 से बढ़कर 36 हो सकती हैं. तेलंगाना की 17 से बढ़कर 20, आंध्र प्रदेश में 25 से बढ़कर 28 वहीं तमिलनाडु में यह आंकड़ा 39 से बढ़कर 41 हो सकता है. वहीं केरल में सीटें घटने की गुंजाइश जताई जा रही है. यहां पर 20 से 19 सीटें हो सकती हैं. उत्तर प्रदेश में 80 से 128 और बिहार में यह आंकड़ा 40 से 70 की ओर जा सकता है. यही वजह है कि दक्षिण में परिसीमन का पुरजोर विरोध जताया जा रहा है. 

क्या है परिसीमन

आबादी में बदलाव के आधार पर परिसीमन के जरिए संसदीय और विधानसभा की सीटों की संख्या तय की जाती है. इसका उद्देश्य यह तय करना होता है कि हर निर्वाचन क्षेत्र में मतदाता लगभग बराबर रहें. मोटे तौर पर समझें तो बड़ी आबादी वाले राज्यों को संसद में छोटी आबादी वालों की तुलना में ज्यादा प्रतिनिधित्व मिलता है.

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