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पूर्व मुख्यमंत्री को बंगला अलॉट करने को लेकर क्या हैं नियम, केजरीवाल vs केंद्र विवाद के बीच जान लीजिए जवाब

Rules For Former CM Bungalow: दिल्ली हाईकोर्ट में पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अलॉट होने वाले बंगले को लेकर विवाद छिड़ा है. चलिए जानें कि पूर्व सीएम को बंगला अलॉट करने के क्या नियम हैं.

Rules For Former CM Bungalow: दिल्ली में पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल को लेकर चल रहा सरकारी आवास विवाद अब अदालत तक पहुंच गया है. गुरुवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार के रुख पर नाराजगी जताते हुए साफ कहा कि सरकारी आवास के आवंटन की प्रक्रिया एक समान और पारदर्शी होनी चाहिए. चलिए इसी बीच यह जान लेते हैं कि आखिर पूर्व सीएम को बंगला अलॉट करने के लिए क्या नियम हैं?

क्या कहता है कानून?

भारत में पूर्व मुख्यमंत्रियों को जीवन भर सरकारी बंगला देने का प्रावधान नहीं है. 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में साफ कहा था कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को स्थायी रूप से सरकारी आवास देने का कोई संवैधानिक या कानूनी आधार नहीं है. कोर्ट का तर्क था कि यह जनता के पैसे पर बोझ है और लोकतांत्रिक व्यवस्था के सिद्धांतों के खिलाफ है.

हालांकि, अलग-अलग राज्यों ने अपने स्तर पर नियम बनाए हुए हैं. कुछ राज्यों में मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद एक निश्चित अवधि (आमतौर पर 3 से 6 महीने) तक सरकारी बंगला खाली करने की मोहलत मिलती है. इसके बाद नए मुख्यमंत्री या सरकार की जरूरत के हिसाब से उस आवास को वापिस लेना अनिवार्य होता है.

दिल्ली के संदर्भ में

दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है और यहां की स्थिति थोड़ी अलग है. यहां आवास आवंटन का अधिकार शहरी विकास मंत्रालय के अधीन होता है. मुख्यमंत्री रहते हुए उन्हें टाइप VIII बंगला मिल सकता है, लेकिन पद छोड़ने के बाद यह अधिकार स्वतः समाप्त हो जाता है. इसके बावजूद कई बार राजनीतिक परिस्थितियों और सुरक्षा कारणों से पुराने मुख्यमंत्री को कुछ समय तक बंगला रखने की छूट मिल जाती है.

पहले भी उठ चुके हैं सवाल

पूर्व मुख्यमंत्रियों को बंगले आवंटित करने को लेकर विवाद नया नहीं है. उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में भी यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट तक जा चुका है. तब भी सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा था कि सत्ता से हटने के बाद बंगला जैसी सुविधा लोकतंत्र में असमानता पैदा करती है.

यह भी पढ़ें: अल्बानिया की सरकार ने कैबिनेट में शामिल किया पहला AI मिनिस्टर, क्या भारत में भी ऐसा हो सकता है?

About the author निधि पाल

निधि पाल को पत्रकारिता में छह साल का तजुर्बा है. लखनऊ से जर्नलिज्म की पढ़ाई पूरी करने के बाद इन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत भी नवाबों के शहर से की थी. लखनऊ में करीब एक साल तक लिखने की कला सीखने के बाद ये हैदराबाद के ईटीवी भारत संस्थान में पहुंचीं, जहां पर दो साल से ज्यादा वक्त तक काम करने के बाद नोएडा के अमर उजाला संस्थान में आ गईं. यहां पर मनोरंजन बीट पर खबरों की खिलाड़ी बनीं. खुद भी फिल्मों की शौकीन होने की वजह से ये अपने पाठकों को नई कहानियों से रूबरू कराती थीं.

अमर उजाला के साथ जुड़े होने के दौरान इनको एक्सचेंज फॉर मीडिया द्वारा 40 अंडर 40 अवॉर्ड भी मिल चुका है. अमर उजाला के बाद इन्होंने ज्वाइन किया न्यूज 24. न्यूज 24 में अपना दमखम दिखाने के बाद अब ये एबीपी न्यूज से जुड़ी हुई हैं. यहां पर वे जीके के सेक्शन में नित नई और हैरान करने वाली जानकारी देते हुए खबरें लिखती हैं. इनको न्यूज, मनोरंजन और जीके की खबरें लिखने का अनुभव है. न्यूज में डेली अपडेट रहने की वजह से ये जीके के लिए अगल एंगल्स की खोज करती हैं और अपने पाठकों को उससे रूबरू कराती हैं.

खबरों में रंग भरने के साथ-साथ निधि को किताबें पढ़ना, घूमना, पेंटिंग और अलग-अलग तरह का खाना बनाना बहुत पसंद है. जब ये कीबोर्ड पर उंगलियां नहीं चला रही होती हैं, तब ज्यादातर समय अपने शौक पूरे करने में ही बिताती हैं. निधि सोशल मीडिया पर भी अपडेट रहती हैं और हर दिन कुछ नया सीखने, जानने की कोशिश में लगी रहती हैं.

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