इन देशों में बार-बार आते हैं तगड़े भूकंप, फिर भी टिकी रहती हैं ऊंची-ऊंची इमारतें, आखिर कैसी तकनीक करते हैं इस्तेमाल?
भूकंप प्रवण देशों जापान, इंडोनेशिया और तुर्की में ऊंची इमारतें विशेष इंजीनियरिंग तकनीक से सुरक्षित बनाई जाती है. बेस आइसोलेशन, मोशन डैम्पर्स और पैगोड़ा-स्टाइल डिजाइन जैसी तकनीकें कंपन को सोखती है.

हर साल 3 सितंबर को स्काईस्क्रैपर डे मनाया जाता है. यह दिन ऊंची-ऊंची इमारतों और इंजीनियरिंग की बेमिसाल कलाकृतियों को समर्पित हैं, जिन्होंने आसमान छूने के सपने को हकीकत बना दिया. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जापान, इंडोनेशिया, तुर्की या ईरान जैसे डेंजर जोन वाले देशों में खड़ी गगनचुंबी इमारतें आखिर कैसे सुरक्षित रहती हैं?
भूकंप का खतरा और गगनचुंबी इमारतें
जापान, फिलीपींस, इंडोनेशिया और तुर्की जैसे देश पेसिफिक रिंग ऑफ फायर पर स्थित है, जहां साल में दर्जनों बार शक्तिशाली भूकंप आते हैं. इतिहास गवाह है कि इन देशों में आए बड़े भूकंप हजारों जिंदगियां निगल चुके हैं. बावजूद इसके टोक्यो की स्काईट्री, दुबई का बुर्ज खलीफा या तुर्की के मॉडर्न टॉवर्स मजबूती से खड़ी रहते हैं.
इमारतों को बचाने वाली खास तकनीक
बेस आइसोलेशन- इमारतों की नींव को रबर या शॉक एब्जॉर्बिंग पैड्स पर टिकाया जाता है. भूकंप आने पर यह पैड्स जमीन की गति को सोख लेते हैं और इमारत ज्यादा हिलने-डुलने से बच जाती है.
मोशन डैम्पर्स- यह खास तरह के हाइड्रोलिक या ओयल फील्ड उपकरण होते हैं, जो इमारत के अंदर लगे रहते हैं. भूकंप के झटके आने पर यह कंपन को कम करते हैं. जापान की कई ऊंची इमारतों जैसे टोक्यो की रोपोंगी हिल्स मोरी टावर में इनका इस्तेमाल किया जाता है.
पैगोड़ा-स्टाइल डिजाइन- पारंपरिक जापानी मंदिरों से प्रेरित डिजाइन में एक सेंट्रल पिलर और फ्लेक्सिबल स्ट्रक्चर बनाया जाता है. यह झटकों को आसानी से रोक लेता है. टोक्यो स्काईट्री इसका बेहतरीन उदाहरण है.
रेगुलर ग्रेड स्ट्रक्चर- इंजीनियर मानते हैं कि इमारत जितनी ज्यादा संतुलित और नियमित डिजाइन वाली होगी, उतनी ही ज्यादा स्थिर रहेगी. इसीलिए कई गगनचुंबी इमारतों में मंजिलें और कॉलम एक समान ऊंचाई और दूरी पर बनाए जाते हैं.
ये भी पढ़ें- भारत में बाढ़ से हाहाकार, लेकिन इन देशों का सबसे बेहतरीन है ड्रेनेज सिस्टम; सड़क पर गिरते ही सूख जाता है पानी
टॉप हेडलाइंस
Source: IOCL
























