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देश के पहले पीएम बनते-बनते कैसे रह गए थे सरदार पटेल, किस बात पर पलटा यह फैसला?

सरदार पटेल ने वह काम किया जो शायद कोई और नहीं कर पाता, उन्होंने 562 रियासतों को जोड़कर भारत को एकता के सूत्र में बांधा. अगर पटेल नहीं होते, तो आज भारत का नक्शा वैसा नहीं होता जैसा हम आज देखते हैं.

हर साल 31 अक्टूबर को हम राष्ट्रीय एकता दिवस मनाते हैं. यह दिन भारत के महान नेता लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती के रूप में मनाया जाता है. सरदार पटेल ने वह काम किया जो शायद कोई और नहीं कर पाता, उन्होंने 562 रियासतों को जोड़कर भारत को एकता के सूत्र में बांधा. अगर पटेल नहीं होते, तो आज भारत का नक्शा वैसा नहीं होता जैसा हम आज देखते हैं. इस साल का राष्ट्रीय एकता दिवस और भी खास है क्योंकि यह सरदार पटेल की 150वीं जयंती का अवसर है. लेकिन आज हम आपको सरदार पटेल के जीवन की एक ऐसी सच्ची और कम सुनी गई कहानी के बारे मे बताते हैं, जिसमें सरदार पटेल देश के पहले पीएम बनते-बनते रह गए थे. तो चलिए जानते हैं कि सरदार पटेल देश के पहले पीएम बनते-बनते कैसे रह गए थे और यह फैसला किस बात पर पलटा था. 

सरदार पटेल देश के पहले पीएम बनते-बनते कैसे रह गए थे?

कांग्रेस पार्टी उस समय देश की सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत थी, और यह तय था कि जिसे कांग्रेस अध्यक्ष चुना जाएगा, वहीं आजाद भारत का पहला प्रधानमंत्री बनेगा. उस वक्त कांग्रेस के अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद थे , जो कई सालों से इस पद पर बने हुए थे. लेकिन अब पार्टी में नया चुनाव होना था. मौलाना आजाद खुद दोबारा अध्यक्ष बनना चाहते थे. यह बात उन्होंने अपनी आत्मकथा India Wins Freedom में भी मानी है. लेकिन  इसी बीच महात्मा गांधी ने कहा कि अब किसी और को मौका मिलना चाहिए. गांधीजी के इस बयान ने कांग्रेस के भीतर हलचल मचा दी. 

गांधीजी के व्यक्तिगत झुकाव के बावजूद, कांग्रेस संगठन पूरी तरह से सरदार वल्लभभाई पटेल के पक्ष में था. कांग्रेस के संविधान के मुताबिक, अध्यक्ष का चुनाव प्रदेश कांग्रेस समितियां करती थीं. जब नामांकन की प्रक्रिया शुरू हुई, तो 15 में से 12 प्रदेश समितियों ने सरदार पटेल का नाम प्रस्तावित किया. इसके बाद तीन समितियों ने कोई नाम नहीं दिया, लेकिन एक भी समिति ने नेहरू का नाम नहीं रखा. 

क्यों बदला पूरा खेल?

29 अप्रैल 1946 को नामांकन की आखिरी तारीख थी. उसी दिन एक नया मोड़ आया. महात्मा गांधी के बहुत करीबी जे.बी. कृपलानी और कुछ अन्य नेताओं ने कोशिश की कि किसी तरह नेहरू का नाम भी आगे बढ़ाया जाए. हालांकि यह कांग्रेस के नियमों के खिलाफ था, क्योंकि नेहरू को किसी भी प्रदेश कांग्रेस समिति ने नामांकित नहीं किया था फिर भी, गांधीजी से बातचीत के बाद कोशिशें बढ़ीं. जब यह स्थिति सामने आई कि नेहरू दूसरा स्थान नहीं लेंगे यानी या तो वो प्रधानमंत्री बनेंगे या कुछ नहीं, तब गांधीजी ने सरदार पटेल से कहा कि वे अपने नामांकन को वापस ले लें.स पटेल ने बिना किसी विरोध के ऐसा कर दिया उन्होंने कहा, मेरे लिए पद नहीं, देश पहले है. 

यह फैसला किस बात पर पलटा था?

गांधीजी ने बहुत सोच-समझकर यह फैसला लिया. उन्हें विश्वास था कि अगर नेहरू को प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया, तो वे अलग राह पकड़ लेंगे, जिससे कांग्रेस और देश दोनों को नुकसान होगा. गांधीजी ने यह भी कहा जवाहरलाल दूसरा स्थान नहीं लेंगे, लेकिन वल्लभभाई देश की सेवा करते रहेंगे. इस तरह नेहरू कांग्रेस अध्यक्ष बने, और जब अंग्रेजों ने अंतरिम सरकार बनाने के लिए आमंत्रण दिया,तो उसी आधार पर नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बन गए. कई इतिहासकारों ने भी माना है कि अगर गांधीजी ने हस्तक्षेप नहीं किया होता,तो सरदार पटेल ही भारत के पहले प्रधानमंत्री होते, हालांकि प्रधानमंत्री का पद उन्हें नहीं मिला, लेकिन आजाद भारत के निर्माण में सरदार पटेल की भूमिका नेहरू से किसी भी रूप में कम नहीं थी. 

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