फाइटर प्लेन उड़ाने से कितना मिलता-जुलता है स्पेस का सफर, जानें क्यों चुने जाते हैं पायलट
Why Fighter Pilot Chosen For Space Mission: अपने अगर ध्यान दिया हो तो अक्सर स्पेस मिशन के लिए पायलटों का चुनाव किया जाता है. आखिर अंतरिक्ष के लिए खासतौर पर ऐसा क्यों किया जाता है.

हाल ही में पायलट शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष में करीब 18 दिन का वक्त बिताकर धरती पर लौटे हैं. इस दौरान उन्होंने कई सारे प्रयोग किए. शुभांशु भारत के दूसरे ऐसे भारतीय हैं, जो कि अंतरिक्ष स्टेशन पर गए हैं, इससे पहले 1984 में भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा स्पेस स्टेशन गए थे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि स्पेस स्टेशन पर जाने के लिए फाइटर प्लेन पायलट का ही चुनाव क्यों किया जाता है. क्या फाइटर प्लेन उड़ाने और अंतरिक्ष का सफर मिलता-जुलता है. आइए समझते हैं कि ऐसा क्यों होता है.
क्यों चुने जाते हैं फाइटर पायलट
फाइटर प्लेन उड़ाने में और अंतरिक्ष में सफर करने में कुछ समानताएं तो हैं ही साथ ही कई अंतर भी हैं. दोनों ही मामलों में पायलटों को या फिर अंतरिक्ष यात्रियों को वेल ट्रेन, स्पेशलाइजेशन और स्किल्ड होने की जरूरत होती है. अंतरिक्ष यात्रा में गुरुत्वाकर्षण, वायुमंडल और अन्य कारकों से संबंधित कई चुनौतियां होती हैं. इसीलिए पायलट, खासतौर से लड़ाकू विमान उड़ाने वाले पायलट अक्सर अंतरिक्ष यात्रियों के रूप में चुने जाते हैं, क्योंकि उनके पास को खूबियां होती हैं, जो कि अंतरिक्ष यात्रा के जरूरी हैं.
किन खूबियों की होती है जरूरत
अंतरिक्ष में जाने वालों के लिए शारीरिक या मानसिक सहनशक्ति, दबाव की स्थिति में काम करने का अनुभव और जटिल चीजों को संभालने की क्षमता होनी चाहिए. लड़ाकू विमान के पायलट शारीरिक और मानसिक रूप से फिट होते हैं, क्योंकि उनमें उच्च गुरुत्वाकर्षण, अलगाव और विकिरण जैसी का सामना करना होता है, पायलटों को ऐसी स्थिति के लिए हमेशा तैयार किया जाता है. फाइटर जेट पायलट्स को प्रेशर में काम करने का अनुभव होता है, जैसे कि युद्ध की परिस्थिति में या फिर आपात कालीन स्थिति में भी वे प्रेशर को आसानी से हैंडल कर लेते हैं. यही अनुभव अंतरिक्ष में शांत तरीके से काम करने में उनकी मदद करता है.
टेक्नोलॉजी में सक्षम
अंतरिक्ष यान और उपकरण लगातार डेवलप हो रहे हैं और नई-नई टेक्नोलॉजी आ रही है, इसलिए अंतरिक्ष यात्रियों को उन्हें जल्दी सीखना होता है. ऐसे में फाइटर जेट के पायलटों को नई टेक्नोलॉजी को जल्दी सीखने के लिए ट्रेनिंग दी जाती है, क्योंकि विमानों में अक्सर नई तकनीकें और बदलाव आते रहते हैं. इससे उनको अंतरिक्ष में फायदा मिलता है. अंतरिक्ष में सेल्फ कंट्रोल की बहुत जरूरत होती है, इसके लिए पायलटों को पहले ही ट्रेनिंग दी जा चुकी होती है, इसलिए उनको अंतरिक्ष में कठिनाई नहीं होती है.
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