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यहां मुर्दे की राख का सूप बनाकर पी जाते हैं परिवार वाले, जानिए ऐसा क्यों करते हैं लोग?

शव के अंतिम संस्कार के आपने आमतौर पर दो तरीके ही सुने होंगे, पहला है जलाना और दूसरा है दफनाना. कभी शव की राख का सूप बनाना सुना है? इतना ही नहीं उस सूप को मृत के परिजन पीते भी हैं.

Funeral Rites: दुनिया में हर धर्म, समाज के लोगों के कुछ रिवाज होते हैं. आमतौर पर अंतिम संस्कार के रिवाजों में ज्यादातर जगहों पर शव को जलाने, दफनाने या फिर जीव जंतुओं के भोजन के लिए छोड़ देने का रिवाज है. लेकिन, आज हम आपको अंतिम संस्कार के कुछ ऐसे अजीबों-गरीब रिवाजों के बारे में बताएंगे, जिन्हे जानकर आप हैरान रह जायेगा. 

शव के किए जाते हैं टुकड़े

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, तिब्बत में बौद्ध धर्म के लोग अंतिम संस्कार के लिए शव को किसी पहाड़ की चोटी पर बने शमशान घाट पर ले जाते हैं. वहां पहले से ही कुछ लामा या बौद्ध भिक्षु शव की विधि-विधान से पूजा करते हैं. जिसके बाद शव के छोटे-छोटे टुकड़े करके, उन्हे जै के आटे के घोल में डुबाकर गिद्ध और चीलों के लिए छोड़ दिया जाता है. बची हुई अस्थियों (हड्डियों) को भी बाद में चूरा बनाकर जौ के आटे के घोल में डुबाकर पक्षियों को ही खिला दिया जाता है.

डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक, इस परंपरा के पीछे कुछ प्रमुख वजहें हैं. पहली तो यह कि बहुत ऊंचाई पर होने की वजह से तिब्बत यहां पेड़ आसानी से नहीं पाए जाते हैं. लिहाजा, अंतिम संस्कार के लिए लकड़ियां जुटा पाना बेहद मुश्किल है. 

दूसरा, यहां की जमीन पथरीली होने के कारण शव को दफनाने के लिए गड्ढा खोद पाना बेहद मुश्किल होता है. इनके अलावा बौद्ध धर्म की मान्यता भी है कि मृत शरीर को सजाकर रखने की जरूरत नहीं है. दफनाने से भी शव को कीड़े-मकोड़े ही खाते हैं. इससे बेहतर है कि इसे पक्षियों का निवाला बनवा दिया जाए. बौद्ध धर्म में इसे 'आत्म बलिदान' कहा जाता है.

बार-बार कब्र से निकालते हैं शव

मैडागास्कर अफ्रीका के पूर्वी तट पर स्थित है. यहां फामाडिहाना परंपरा के तहत शव को दफनाने के बाद उसे बीच-बीच में निकाल कर देखा जाता है. ऐसा करने के पीछे मान्यता है कि जब तक शव का मांस गल नहीं जाता, तब तक मृत की आत्मा की मुक्ति नहीं होती. जब शव का कंकाल बाकी बचता है तो उसे कब्र से निकाल कर मौके पर ही जश्न मनाया जाता है. जिसके बाद शव को फिर से कब्र में दफना दफना देते हैं.

शव की राख का बनाते हैं सूप

अमेजन के जंगलों में यानोमानी जनजाति पाई जाती है. यहां अंतिम संस्कार के लिए एंडोकैनिबलिज्म रिवाज को अपनाया जाता है. जिसमें शव को पत्तों से ढककर घर के भीतर रख दिया जाता है और एक महीने बाद उसे जलाकर राख को बर्तन में बंद कर देते हैं. मृत के परिवार वाले उस राख का सूप बनाकर पीते हैं. द गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा करने के पीछे मान्यता है कि मृत आत्मा को शांति तभी मिलती है, जब उसके शव का इस्तेमाल उसके अपने करते हैं.

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