Bangladesh Violence: बांग्लादेश की सबसे खतरनाक फोर्स कौन सी, दंगा रोकने के लिए कब किया जाता है उसका इस्तेमाल
Bangladesh Violence: बांग्लादेश में बढ़ते दंगे के बीच काली वर्दी के पीछे छिपे उन चेहरों की कहानी जानते हैं, जो बांग्लादेश की गलियों में कानून और खौफ के बीच की एक धुंधली लकीर बन चुके हैं.

Bangladesh Violence: बांग्लादेश में बीती रात इंकलाब मंच के प्रवक्ता शरीफ उस्मान हादी की मौत के बाद देश में जमकर हिंसा भड़क उठी. इस दौरान कई इमारतों और वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया. बांग्लादेश की राजधानी ढाका में प्रदर्शनकारियों ने जमकर बवाल काटा. सिर्फ इतना ही नहीं इस दौरान भीड़ ने द डेली स्टार अखबार के दफ्तर रप भी हमला बोल दिया और ऑफिस के अंदर काम कर रह लोग वहीं फंस गए. हमले के करीब चार घंटे के बाद दफ्तर के अंदर काम करने वाले करीब 30 पत्रकारों की जान जैसे-तैसे बचाई गई. आइए इसी क्रम में आपको यह बता देते हैं कि आखिर बांग्लादेश की सबसे खतरनाक फोर्स कौन सी है और दंगा रोकने के लिए उसका इस्तेमाल आखिर कब किया जाता है.
बांग्लादेश की सबसे खतरनाक फोर्स कौन सी?
जब ढाका की गलियों में बवाल बढ़ने लगे और सामान्य पुलिस के हाथ-पांव फूलने लगें, तब काली वर्दी और माथे पर काला कपड़ा बांधे कुछ सुरक्षाकर्मी सड़क पर उतरते हैं. इन्हें दुनिया 'रैपिड एक्शन बटालियन' यानी RAB के नाम से जानती है. बांग्लादेश की यह सबसे खतरनाक और विवादित फोर्स सिर्फ एक सुरक्षा दस्ता नहीं, बल्कि अपराधी दुनिया के लिए दहशत की इबारत है. आखिर क्या है इस फोर्स की ताकत और क्यों इसके नाम से ही थर्रा उठता है बांग्लादेश?
काली वर्दी का वो खौफ, जिससे थर्राता है पूरा बांग्लादेश
बांग्लादेश की सुरक्षा व्यवस्था में एक ऐसी इकाई है जिसकी चर्चा अक्सर बंद कमरों में दबी जुबान से की जाती है. हम बात कर रहे हैं रैपिड एक्शन बटालियन की, जिसे संक्षेप में 'रैब' कहा जाता है. साल 2004 में जब देश में अपराध और उग्रवाद का ग्राफ आसमान छू रहा था, तब तत्कालीन सरकार ने एक ऐसी फोर्स की जरूरत महसूस की जो नियम-कायदों की फाइलों से इतर जाकर 'ऑन द स्पॉट' फैसले ले सके.
कैसे बनी ‘रैब’?
आर्मी, नेवी और एयरफोर्स के बेहतरीन जवानों को छांटकर बनाई गई इस हाइब्रिड फोर्स का अंदाज शुरू से ही जुदा रहा. इनकी काली वर्दी और चेहरे पर ढका नकाब केवल एक ड्रेस कोड नहीं है, बल्कि यह एक मनोवैज्ञानिक युद्ध का हिस्सा है जो अपराधी के मन में सरेंडर करने से पहले ही मौत का डर पैदा कर देता है.
रैब की कार्यशैली को लेकर हमेशा से दो फाड़ राय रही है. एक तरफ वो लोग हैं जो मानते हैं कि ढाका और चटगांव जैसे शहरों में गिरोहबाजी और चरमपंथ को खत्म करने के लिए इस 'हंटर फोर्स' का होना जरूरी था, तो दूसरी तरफ मानवाधिकार संगठनों की लंबी फेहरिस्त है जो इन्हें 'डेथ स्क्वॉड' तक कह देते हैं.
कब बुलाई जाती है ‘रैब’?
दिलचस्प बात यह है कि रैब को दंगा नियंत्रण के लिए तब बुलाया जाता है जब हालात सामान्य पुलिस के बस से बाहर हो जाते हैं, जब भीड़ बेकाबू हो जाए, आगजनी और हिंसा का तांडव चरम पर हो, तब रैब की एंट्री होती है. इनकी मौजूदगी मात्र से ही उपद्रवियों में भगदड़ मच जाती है, क्योंकि यह फोर्स 'वेट एंड वॉच' की पॉलिसी पर नहीं, बल्कि 'क्विक रिस्पॉन्स' के सिद्धांत पर चलती है.
कैसे काम करती है ‘रैब’?
इस फोर्स की सबसे बड़ी ताकत इसकी खुफिया जानकारी जुटाने की क्षमता है. रैब का अपना एक अलग जासूसी तंत्र है जो सीधे आर्मी हेडक्वार्टर से समन्वय करता है. यही वजह है कि जब भी बांग्लादेश में कोई बड़ा राजनीतिक संकट या तख्तापलट जैसी स्थितियां बनती हैं, तो सबसे पहले नजरें रैब की गतिविधियों पर टिकी होती हैं. हालांकि, हाल के वर्षों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, खासकर अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों ने इस फोर्स की साख पर सवालिया निशान खड़े किए हैं.
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Source: IOCL























