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राजा के बाद किसके हाथों में आई थी कश्मीर की कमान? जानें कैसे चुना गया था घाटी का पहला नेता

चुनाव आयोग आज यानी 16 अगस्त की शाम तक जम्मू-कश्मीर में चुनावी तारीखों की घोषणा कर सकता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि डोगरा राजवंश के बाद कश्मीर का नेता कौन चुना गया था.

केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में आज यानी 16 अगस्त के दिन चुनावों की घोषणा हो सकती है. चुनाव आयोग ने शाम 3 बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई है, जिसमें जम्मू-कश्मीर के 90 सीटों पर चुनावों की घोषणा हो सकती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि डोगरा राजा हरि सिंह ने जम्मू-कश्मीर का विलय भारत में कब किया था और उसके बाद कश्मीर की कमान किसने संभाली थी. आज हम आपको कश्मीर संभाग का इतिहास बताएंगे. 

जम्मू-कश्मीर 

जम्मू-कश्मीर के आखिरी राजा हरि सिंह थे. जिन्होंने 26 अक्टूबर 1947 को विलय पत्र पर हस्ताक्षर करके अपने राज्य का भारत में विलय किया था. लेकिन जम्मू-कश्मीर राजवंश के इतिहास को समझने के लिए आपको इतिहास के पन्नों को पलटना पड़ेगा. 

डोगरा राजवंश

बता दें जम्मू संभाग में डोगरा राजवंश के संस्थापक महाराजा गुलाब सिंह थे. गुलाब सिंह का राजा के तौर पर राजतिलक महाराजा रणजीत सिंह ने स्वयं किया था. गुलाब सिंह ने अपने राजकाल में राज्य का विस्तार लद्दाख, गिलगित और बल्तिस्तान तक किया था. 1846 में कश्मीर घाटी भी इसमें शामिल हो गया था. हालांकि इसके बाद महाराजा गुलाब सिंह की मुत्यु श्रीनगर में 30 जून 1857 में हुई थी. उनकी मौत के बाद उनके 26 साल के बेटे रणवीर सिंह राजगद्दी पर बैठे थे. रणवीर सिंह के चार पुत्र हुए थे. सबसे बड़े पुत्र प्रताप सिंह, राम सिंह, अमर सिंह और लक्ष्मण सिंह थे. लक्ष्मण सिंह की मृत्यु तो 5 साल की अल्प आयु में ही हो गई थी. वहीं दूसरे पुत्र राम सिंह की मृत्यु 45 साल की आयु में हुई थी. 

महाराजा प्रताप सिंह बने राजा

 जानकारी के मुताबिक लगभग 30 साल राज्य करने के बाद 55 साल की उम्र में 12 सितंबर, 1885 को रणवीर सिंह की मृत्यु हो गई थी. जिसके बाद परंपरानुसार उनके बड़े प्रताप सिंह का राजतिलक हुआ था. राजा बनने के बाद प्रताप सिंह ने राज्य को बखूबी संभाला और राज्य की सीमाओं का विस्तार किया था. वहीं 1891 में प्रताप सिंह की सेना ने गिलगित की हुंजा वैली, नागर और यासीन वैली को भी अपने राज्य में मिला लिया था. हालांकि अंग्रेजी शासन इस दौरान प्रताप सिंह की सत्ता को चुनौती देने की लगातार कोशिश कर रहे थे. लेकिन तमाम साजिशों के बावजूद भी महाराजा प्रताप सिंह डोगरा राजवंश में सबसे ज्यादा समय 40 सालों सत्ता की कमान संभाली थी. 

प्रताप सिंह के कोई पुत्र नहीं 

बता दें कि महाराजा प्रताप सिंह की कोई संतान नहीं थी. प्रताप सिंह के राजगद्दी पर बैठने के 10 साल बाद उनके छोटे भाई अमर सिंह के घर हरि सिंह का जन्म हुआ था. जिसके बाद उनके परिवार में कुल केवल 3 ही पुरूष जीवित थे. जिसमें महाराजा प्रताप सिंह जो रियासत के महाराजा थे, उनके भाई अमर सिंह, जो राजा थे और हरि सिंह जिनकी उम्र केवल कुछ ही दिनों की थी. हरि सिंह के जन्म पर सारी रियासत में खुशियाँ मनाई गई थी. उस दिन सभी महलों और पूरे जम्मू नगर को दीपों से सजाया गया था. दरअसल उन दिनों देश की रियासतों में राजपरिवार के घर राजकुमार का जन्म लेना आम जनता के लिए खुशियां मनाने का अवसर माना जाता था. 

अंतिम डोगरा शासक हरि सिंह

हरि सिंह जब 14 साल के थे, तभी उनके पिता अमर सिंह की 1909 में मृत्यु हो गई थी. इस प्रकार वंश परंपरा में केवल हरि सिंह ही बचे थे. हालांकि महारानी चडक नहीं चाहती थी कि हरि सिंह उत्तराधिकारी बने. महाराजा प्रताप सिंह जब बीमार थे, उस वक्त हरि सिंह गुलमर्ग में थे. महाराजा के मंत्री शोभा सिंह ने एक विश्वसनीय व्यक्ति को गुलमर्ग से हरि सिंह को लाने के लिए भेजा था. जिसके बाद प्रताप सिंह ने मृत्यु से पहले ही हरि सिंह को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया था. 

 23 सितंबर 1925 महाराजा हरि सिंह का राजतिलक

 महाराजा प्रताप सिंह की मुत्यु के बाद हरि सिंह का राजतिलक 23 सितंबर 1925 के दिन हुआ था. जिसके बाद उन्होंने जम्मू-कश्मीर के महाराजा के तौर पर अपना कार्य आरंभ किया था. लेकिन नई संवैधानिक व्यवस्था के काऱण वह कुल 22 वर्ष ही जम्मू-कश्मीर के राजा के तौर पर काम कर पाए थे. 26 अक्टूबर 1947 के दिन उन्होंने अपने जम्मू-कश्मीर का अधिमिलन यानी विलय भारत में किया था. 

विलय के बाद कौन बना कश्मीर का नेता

बता दें कि जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय होने के साथ ही साल 1948 में शेख अब्दुल्ला को नेहरु सरकार ने तत्कालीन जम्मू-कश्मीर का प्रधानमंत्री बनाया था. उस वक्त कश्मीर में मुख्यमंत्री की जगह प्रधानमंत्री शब्द का इस्तेमाल किया जाता था.

कौन थे शेख अब्दुल्ला

शेख अब्दुल्ला का जन्म 5 दिसंबर, 1905 को श्रीनगर के पास स्थित सौरा में हुआ था. शेख अब्दुल्ला का परिवार उस वक्त अच्छी स्थिति में था, जिस कारण उन्हें पढ़ने-लिखने का मौका मिला था. उन्होंने लाहौर और अलीगढ़ में पढ़ाई की थी. अलीगढ़ से साल 1930 में विज्ञान में मास्टर्स की डिग्री हासिल करने के बाद वे श्रीनगर वापस लौट आए थे. उन्होंने 1932 में मुस्लिम कांफ्रेंस नाम का एक संगठन बनाया था. वहीं साल 1938 में संगठन का नाम ‘मुस्लिम कांफ्रेंस’ से बदलकर ‘नेशनल कांफ्रेंस’ कर दिया गया था. साल 1946 में शेख अब्दुल्ला ने जम्मू- कश्मीर में महाराजा हरि सिंह के खिलाफ ‘कश्मीर छोड़ो’ आंदोलन चलाया था, तब महाराजा ने उन्हें जेल में डाल दिया था. हालांकि बाद में जवाहरलाल नेहरू की कोशिशों से शेख अब्दुल्ला जेल से रिहा हो गए थे और वो कश्मीरियों के चहेते नेता बन गए थे. हालांकि पांच साल बाद नेहरु सरकार ने उन्हें कश्मीर साजिश के आरोपों में 11 साल के लिए जेल में डाल दिया था. 

ये भी पढ़ें: कश्मीर में क्या होता है महिलाओं का वोट प्रतिशत, पुरुषों के मुकाबले कितना?

गिरिजांश गोपालन को मीडिया इंडस्ट्री में चार साल से ज्यादा का अनुभव है. फिलहाल वह डिजिटल में सक्रिय हैं, लेकिन इनके पास प्रिंट मीडिया में भी काम करने का तजुर्बा है. दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद गिरिजांश ने नवभारत टाइम्स अखबार से पत्रकारिता की शुरुआत की. उन्हें घूमना बेहद पसंद है. पहाड़ों पर चढ़ना, कैंपिंग-हाइकिंग करना और नई जगहों को एक्सप्लोर करना उनकी हॉबी में शुमार है। यही कारण है कि वह तीन साल से पहाड़ों में ज्यादा वक्त बिता रहे हैं. अपने अनुभव और दुनियाभर की खूबसूरत जगहों को अपने लेखन-फोटो के जरिए सोशल मीडिया के रास्ते लोगों तक पहुंचाते हैं.
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