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शंकर-जयकिशन के नगमों ने सरहदों की सीमाएं तोड़कर हर किसी को अपना दीवाना बनाया
हिंदी सिनेमा में जब भी कोई फिल्म हिट होती है तो उसके पीछे सिर्फ अच्छे एक्टर, एक्ट्रेस का ही हाथ नहीं होता बल्कि एक बेहतरीन संगीतकार का भी बहुत बड़ा हाथ होता है, वैसे भी हिंदी फिल्में गानों के बिना अधूरी ही होती है

हिंदी सिनेमा में जब भी कोई फिल्म हिट होती है तो उसके पीछे सिर्फ अच्छे एक्टर, एक्ट्रेस का ही हाथ नहीं होता बल्कि एक बेहतरीन संगीतकार का भी बहुत बड़ा हाथ होता है, वैसे भी हिंदी फिल्में गानों के बिना अधूरी ही होती है. कई दशकों से अच्छे संगीत ने फिल्मों में अहम भूमिका निभाई है. हमारी फिल्म इंडस्ट्री में ऐसे ही एक लाजवाब संगीतकार की जोड़ी रही शंकर-जयकिशन की.
‘आवारा हूं, आवारा हूं’ राज कपूर की फिल्म ‘आवारा’ के इस गीत ने शंकर-जयकिशन की जोड़ी को हिंदी सिनेमा में खास पहचान दिलाई थी, तो वहीं दूसरी तरफ राज कपूर को भी इस गाने ने पूरी दुनिया में मशहूर कर दिया. ये शंकर-जयकिशन के संगीत का ही जादू था जो सरहदों की सीमाएं तोड़कर हर किसी को अपना दीवाना कर रहा था. उनके नगमों की गूंज रूस की गलियों में भी सुनाई देने लगी थी. कौन भूल सकता है ‘मेरा जूता है जापानी ये पतलून इंग्लिशतानी सर पे लाल टोपी रूसी फिर भी दिल है हिंदुस्तानी’ फिल्म ‘श्री 420’ के इस नग्में ने राज कपूर को ऐसी रूसी टोपी पहनाई कि वो हमेशा रुसियों के पसंदीदा एक्टर बने रहे.

फिल्म ‘श्री 420’ का एक और गाना, ‘प्यार हुआ इकरार हुआ’, इस गीत के दर्शक तो कायल हुए ही साथ ही खुद राज कपूर भी इतने दीवाने हुए कि रिकॉर्डिंग स्टूडियों में ही छतरी मंगा कर इस गाने की प्रेक्टिस करने लगते थे, कुछ ऐसा ही था शंकर-जयकिशन की धुनों का जादू. उनका संगीत दिल से सीधे आत्मा में उतरता था. एक तरफ तो जहां उनको अपनी धुनों पर पूरी पकड़ थी तो वहीं वो इस बात पर डटे रहते थे कि किस गाने में कौन से सिंगर की आवाज जचेगी, यहां तक कि एक बार वो ‘यहूदी’ फिल्म के एक गाने को लेकर अड़ गए कि इस गाने की मांग मुकेश की आवाज है लेकिन दिलीप कुमार साहब इसे मानने के लिए तैयार नहीं थे, फिर इस बात को तय करने के लिए टॉस किया गया जिसमें मुकेश कुमार ही जीते. फिर क्या था शंकर-जयकिशन के संगीत के जादू ने मुकेश की आवाज का ये गाना सुपरहिट साबित हुआ.
शंकर-जयकिशन की धुनें सफलता की बुलंदियों को छूती गई. फिर साल 1965 में एक फिल्म आई ‘दिल एक मंदिर’ जो इस जोड़ी के संगीत का नायाब नमूना बनी. फिल्में चले या ना चले लेकिन शंकर-जयकिशन का संगीत खूब चला. फिल्म ‘आवारा’ के गाने 'घर आया मेरा परदेसी' में तो उन्होंने गाय की घंटी की आवाज से जो समा बांधा वो समा हर किसी को मदमस्त कर गया. आपको बता दें कि शंकर-जयकिशन ने ना सिर्फ पर्दे के पीछे काम किया बल्कि उन्होंने पर्दे के आगे भी काम किया, साल 1948 में राज कपूर की फिल्म ‘आग’ में शंकर जी ने मछुवारे का किरदार निभाया तो वहीं जयकिशन ने ‘श्री 420’ और 1956 में आई फिल्म ‘बेगुनाह’ में दिखाई दिए थे. दोनों के बारे में ये भी कहा जाता है कि राजेंद्र कुमार को सिल्वर जुबली स्टार बनाने वाले शंकर-जयकिशन ही थे.
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Source: IOCL




























