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2019 की चाबी ‘पीएम मेटेरियल’ ममता बनर्जी के हाथों में है?

ममता बनर्जी ने अपने पॉलिटिकल करियर की शुरुआत कांग्रेस के साथ ही की थी. बाद में 1998 में उन्होंने अपनी नई पार्टी तृणमूल कांग्रेस बनाई और कभी मुड़कर पीछे नहीं देखा.

कोलकाता: समर्थक इन्हें ‘बंगाल की शेरनी’ बुलाते हैं. सियासी गलियारे में वे ‘दीदी’ के नाम से पुकारी जाती हैं और उनकी पहचान एक महत्वाकांक्षी नेता के तौर पर होती है. अपने विरोधियों के खिलाफ हमेशा अपने तेवर सख्त रखने वाली ममता बनर्जी ने बीते पांच सालों से पीएम नरेंद्र मोदी से दो दो हाथ कर रखा है. वो देश में मोदी विरोध का एक चेहरा बन चुकी हैं.

अपनी सियासी समझ, समीकरण और रणनीति की बदौलत ममता ने पश्चिम बंगाल में खुद को और अपनी पार्टी को बीते 10 सालों में बेहद मजबूत किया है. करीब 35 सालों तक लेफ्ट के गढ़ रहे बंगाल को ममता ने ही फतह किया और वहीं सूबे में कांग्रेस की हालत भी हवा कर दी. बतौर मुख्यमंत्री ये उनका दूसरा कार्यकाल है. राष्ट्रीय राजनीति में उनकी दखल और बढ़ते कद के बीच बात राजनीतिक गलियारों में ये बात गूंजती रहती है कि ममता बनर्जी पीएम मेटेरियल हैं.

मोदी विरोध का बड़ा चेहरा

ममता बनर्जी को बीते पांच सालों में हर मुद्दे पर मुखर होते देखा गया है. पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी पर निशाना साधने का वे कोई मौका नहीं छोड़तीं और कांग्रेस को लेकर भी उनके तेवर गर्म ही रहते हैं. नोटबंदी हो या जीएसटी हो, मोदी सरकार पर उन्होंने ताबड़तोड़ हमले किए. इसमें कई पार्टियों ने उनका साथ भी दिया. हाल ही में कोलकाता में उन्होंने युनाइटेड इंडिया रैली की थी जिसमें विपक्ष की 24 पार्टियों के दिग्गज मोदी सरकार के खिलाफ एकजुट हुए थे.

इस बार के चुनाव हैं अहम

इस बार का चुनाव ममता बनर्जी के लिए बेहद अहम है, क्योंकि बीजेपी पश्चिम बंगाल में अपनी ताकत मजबूत में पूरे जोर शोर लगी हुई. इस मिशन में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और पीएम मोदी पूरे दमखम से लगे हुए हैं. ममता बनर्जी के सामने ये चुनौती है कि साल 2014 जैसा ही उनकी पार्टी का प्रदर्शन रहे. अगर ऐसा हुआ तो ममता बनर्जी राजनीति की नई पटकथा लिखती दिख सकती हैं.

‘मोदी लहर’ में भी चला था ममता का जादू

साल 2011 में लेफ्ट को राज्य की सत्ता से बेदखल करते हुए ममता बनर्जी पहली बार सीएम की कुर्सी पर बैठीं. इस बड़े सियासी बदलाव ने देशभर का ध्यान बंगाल की तरफ खींचा. ममता बनर्जी की चर्चा होने लगी. इसके बाद साल 2014 में 16वां लोकसभा चुनाव हुआ. ‘मोदी लहर’ ने कई रिकॉर्ड तोड़े और नए स्थापित किए लेकिन बंगाल में ‘दीदी’ के सामने बीजेपी की एक न चली.

पश्चिम बंगाल में लोकसभा की कुल 42 सीटें हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने 34 सीटे जीतीं. वहीं बीजेपी को महज दो सीटें मिली. इसके अलावा कांग्रेस ने चार और सीपीएम ने दो सीट जीती थी. इस नतीजे ने ममता बनर्जी की छवि को और भी ज्यादा मजबूत किया और पीएम मेटेरियल की चर्चा शुरू होने लगी. फिलहाल लोकसभा चुनाव में दो चरणों के तहत राज्य की पांच सीटों पर वोटिंग हो चुकी है. बची हुई 37 सीटों पर अगले चार चरणों में चुनाव होंगे.

ममता का सियासी सफर

ममता बनर्जी ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत कांग्रेस (आई) से की. साल 1977 में ममता वेस्ट बंगाल यूथ कांग्रेस वर्किंग कमिटी से सदस्य के तौर पर जुड़ीं. 1979 में उन्हें वेस्ट बंगाल महिला कांग्रेस (आई) का जनरल सेक्रेट्री बनाया गया. 1984 में हुए आम चुनाव में उन्होंने सीपीएम के दिग्गज नेता सोमनाथ चटर्जी को हरा दिया. 1991 में हुए आम चुनाव में वो दूसरी बार लोकसभा पहुंची. 1998 में उन्होंने कांग्रेस से नाता तोड़ कर अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस बनाई और तब से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

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