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लोकसभा चुनाव 2024 से पहले उत्तर प्रदेश बीजेपी में क्या कुछ बड़ा बदलाव होने जा रहा है?

मिशन 2024 के लिए उत्तर प्रदेश बीजेपी के लिए सबसे महत्वपूर्ण राज्य है. पार्टी ने 80 की 80 सीटें यहां जीतने का लक्ष्य रखा है. लक्ष्य को पूरा करने के लिए जल्द ही 4 बड़े बदलाव किए जा सकते हैं.

उत्तर प्रदेश विधान परिषद चुनाव में जीत के बाद बीजेपी अब मिशन 2024 की तैयारी में जुट गई है. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने बताया कि संगठन में जल्दी ही कुछ बदलाव किए जाएंगे. हाल ही में बीजेपी विधानपरिषद की 5 में से 4 सीटों पर जीत दर्ज की थी.

समाचार एजेंसी पीटीआई से बात करते हुए बीजेपी अध्यक्ष ने कहा कि लोकसभा चुनाव को देखते हुए मुझे पार्टी में आंशिक बदलाव की अनुमति मिल गई है. मार्च 2022 में दूसरी बार उत्तर प्रदेश की सत्ता में लौटने के बाद अगस्त में बीजेपी ने चौधरी को अध्यक्ष बनाया था. 

बीजेपी का मिशन यूपी 2024 क्या है?
उत्तर प्रदेश में लोकसभा की सबसे अधिक 80 सीटें हैं. केंद्र की सत्ता पाने के लिए यूपी में बेहतरीन प्रदर्शन जरूरी है. बीजेपी की प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में सभी 80 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा गया है. 

2014 में बीजेपी गठबंधन ने सबसे अधिक 73 सीटों पर जीत दर्ज की थी. पार्टी ने देशभर में 350 प्लस सीटों का टारगेट रखा है. ऐसे में यूपी पार्टी के लिए सबसे महत्वपूर्ण राज्य है और पार्टी यहां इस बार सारे रिकॉर्ड तोड़ने की कोशिश में है.

बीजेपी में बदलाव क्या-क्या, 4 प्वॉइंट्स
1. राज्य इकाई में फेरबदल- बीजेपी सबसे बड़ा बदलाव राज्य इकाई में करने जा रही है. सबसे पहले यहां खाली पड़े पदों को भरा जाएगा. इसके बाद कुछ अन्य पदों पर भी नियुक्ति की जाएगी. संगठन में काम करने वाले कुछ नेताओं को प्रमोशन भी हो सकता है.

राज्य सरकार में कई ऐसे मंत्री हैं, जो संगठन का पद लेकर भी बैठे हैं. इनमें अरविंद शर्मा, जेपीएस राठौर, दयाशंकर सिंह का नाम प्रमुख हैं. इन नेताओं से भी पद लिया जाएगा और इनके बदले नए लोगों को जिम्मेदारी दी जाएगी.

2. जिला और महानगर में बदलाव- राज्य इकाई में फेरबदल के अलावा बीजेपी सबसे बड़ा बदलाव जिला और महानगर स्तर पर कर सकती है. लोकसभा के साथ ही नगर निकाय को भी फोकस में रखते हुए पार्टी 40 से ज्यादा जिलों में अध्यक्ष बदले जा सकते हैं. 

31 महानगरों में भी अध्यक्ष का बदलना तय माना जा रहा है. इनमें अधिकांश जिले पूर्वांचल और यादवलैंड के हैं, जहां 2022 में बीजेपी को करारी हार मिली थी.

3. पन्ना समितियों का होगा गठन- गुजरात में पन्ना समितियों के सहारे बड़ी जीत हासिल करने के बाद बीजेपी अब यूपी में भी यही प्रयोग करने जा रही है. बूथ लेवल पर पार्टी को अधिक मजबूत करने के लिए पार्टी पन्ना समितियों का गठन कर सकती है. पहले पन्ना प्रमुख बनाए जाते थे अब समितियां बनाई जाएंगी.

पन्ना समिति किसी मतदाता सूची के एक पेज यानी पन्ने पर अंकित जितने वोटर्स होते हैं, उसे साधने के लिए बनाया जाता है. पन्ना समितियों का अगर गठन होती है, तो ब्लॉक स्तर पर पार्टी के संगठन को और बड़ा करना पड़ेगा.

4. चुनाव प्रभारी की भी नियुक्ति- वर्तमान में यूपी बीजेपी का प्रभार सीनियर नेता राधामोहन सिंह के पास है. 2022 चुनाव से पहले पार्टी ने धर्मेंद्र प्रधान को चुनाव प्रभारी बनाया था. 

2024 को लेकर हाईकमान जल्द ही उत्तर प्रदेश में नए चुनाव प्रभारी को नियुक्त कर सकती है. राधामोहन सिंह के बदले किसी नए चेहरे को राज्य प्रभारी बनाए जाने की चर्चा है. संगठन में अगर यह बदलाव हुआ तो 2024 के मद्देनजर यह बड़ा फेरबदल भी माना जाएगा. 

दलित-ओबीसी और महिलाओं को संगठन में तरजीह
यूपी में जातीय जनगणना और रामचरित मानस विवाद के बाद बीजेपी दलित और ओबीसी (OBC) वोटरों पर पकड़ मजबूत करने की तैयारी में है. संगठन के बदलाव में इसकी झलक भी दिख सकती है. पार्टी में ओबीसी-दलित और महिलाओं की भागीदारी बढ़ना तय माना जा रहा है. 

2022 में बीजेपी को मायावती की पार्टी बसपा का करीब 10 प्रतिशत वोट यूपी में ट्रांसफर हुआ था. बीजेपी 2024 में भी इसी रणनीति को अमलीजामा पहनाने की कोशिश में है. 

इसके अलावा, उन सीटों पर विशेष फोकस किया जा रहा है, जहां पिछली बार सपा और बसपा मिलकर चुनाव लड़ी थी. 2019 में सपा और बसपा ने मिलकर 15 सीटों पर जीत दर्ज की थी. संगठन विस्तार में इन जिलों को तरजीह दी जा सकती है.

इन 2 रणनीतियों पर भी काम कर रही बीजेपी
संगठन में बदलाव के साथ ही बीजेपी 2024 के चुनाव में लक्ष्य हासिल करने के लिए 2 अन्य रणनीतियों पर भी काम कर रही है. 

कई दलों को साथ लाने की तैयारी- बीजेपी अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने कहा कि सामान्य विचारधारा वाले दलों को भी साथ लाने की तैयारी है. 2024 में पूर्वांचल के किले को भेदने के लिए बीजेपी फिर से ओम प्रकाश राजभर के साथ गठबंधन कर सकती है.

2017 में ओम प्रकाश राजभर बीजेपी के साथ गठबंधन में शामिल थे और सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाई थी. यूपी में राजभर वोटर्स करीब 3 फीसदी के आसपास हैं, जो पूर्वांचल के कई सीटों पर जीत और हार तय करते हैं.

इसके अलावा महान दल समेत कुछ अन्य छोटे-छोटे दलों को भी बीजेपी साथ लाने की कोशिश में जुटी है. 

बाहरी नेताओं को बीजेपी में एंट्री- गठबंधन का दायरा बढ़ाने के साथ ही बीजेपी क्षेत्रिय क्षत्रपों को भी साधने की कोशिश में जुटी है. हाल ही में कद्दावर नेता धर्म सिंह सैनी बीजेपी में शामिल होने जा रहे थे, लेकिन पार्टी ने उस वक्त उनकी एंट्री को टाल दिया था. 

बीजेपी 2024 को देखते हुए धर्म सिंह सैनी समेत बाहरी नेताओं को भी एंट्री देने की तैयारी में है. हालांकि, शुरुआत में इन नेताओं को कोई बड़ा पद नहीं दिया जाएगा और इन्हें सिर्फ कूलिंग पीरियड में रखा जाएगा.

फिर भी 2024 की राह मुश्किल क्यों, 3 वजह

1. पूर्वांचल में लग चुका है बड़ा झटका- 2022 के चुनाव में बीजेपी को पूर्वांचल में बड़ा झटका लग चुका है. पूर्वांचल के अंबेडकरनगर, आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर और कौशांबी में बीजेपी का खाता तक नहीं खुला था. इसके अलावा बलिया और जौनपुर में भी पार्टी सपा से पिछड़ गई थी. 

पूर्वांचल में लोकसभा की कुल 26 सीटें हैं और 2019 में इन 26 में से बीजेपी ने 17 सीटों पर जीत दर्ज की थी. 2022 के बाद यहां सियासी समीकरण बदला है, जो बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा सकती है. 

2. खतौली मॉडल ने पश्चिम में बढ़ाई टेंशन- 2022 में मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ था, जिसमें रालोद ने बीजेपी को पटखनी दी. खतौली में जयंत चौधरी ने जाट, गुर्जर, दलित और मुस्लिम समीकरण बनाकर बड़ी जीत की नींव रखी थी. 

2022 के चुनाव में पश्चिमी यूपी के शामली में सपा गठबंधन ने क्लीन स्वीप किया था. वहीं खतौली में जीत ने मुजफ्फरनगर और आसपास के जिलों में बीजेपी की टेंशन बढ़ा दी है. 2024 में अगर खतौली मॉडल सफल रहा तो यहां नुकसान संभव है.

3. यादवलैंड में मुलायम कुनबा मजबूत- मैनपुरी उपचुनाव में डिंपल यादव की जीत के बाद मुलायम कुनबा एक बार फिर साथ आ गया है. अखिलेश यादव ने बीते दिनों चाचा शिवपाल यादव को राष्ट्रीय महासचिव बनाकर बड़ी जिम्मेदारी सौंपी.

चाचा-भतीजा के साथ आने से यादवलैंड में सपा मजबूत हुई है. यूपी के मैनपुरी, एटा, फिरोजाबाद, फर्रूखाबाद, कन्नौज आदि जिलों में यादव वोटर काफी प्रभावी हैं. ऐसे में 2024 में इन जिलों में जीत हासिल करना भी बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा.

अखिलेश यादव खुद कन्नौज से चुनाव लड़ने के संकेत दे चुके हैं. ऐसे में यादवलैंड का समीकरण भी पूरी तरह बदलने का आसार दिख रहा है, जो बीजेपी के लिए चुनौतीपूर्ण है.

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