'19 के खिलाड़ी': अगर चुनाव नतीजे किसी एक के पक्ष में नहीं रहे तो बड़ी भूमिका में हो सकते हैं एमके स्टालिन
एमके स्टालिन देश की राजनीति में इस वक्त काफी अहम बन गये हैं. चुनाव नतीजों के बाद अगर डीएमके को तमिलनाडु में ज्यादा सीटें मिली तो वह किंग मेकर बन सकते हैं.

नई दिल्ली: एमके स्टालिन का नाम तमिलनाडू की राजनीति में काफी महत्वपूर्ण है. इस लोकसभा चुनाव में द्रमुक का खोया करिश्मा लौटाने की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर है. 2014 में द्रमुक को एक भी सीट नहीं मिली थी. जयललिता और करुणानिधि जैसे दिग्गजों के निधन के बाद राज्य के राजनीतिक हालात बदल चुके हैं. कभी कांग्रेस का विरोध करने वाली द्रमुक ने कांग्रेस से गठबंधन कर लिया है. स्टालिन राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के योग्य भी करार दे चुके हैं.
ऐसे में इस बार के लोकसभा चुनाव में उनका रोल काफी अहम हो जाता है. इस चुनाव में अगर स्टालिन की पार्टी बेहतर प्रदर्शन करती है तो उनके नेतृत्व क्षमता की वाहवाही होगी. वह कांग्रेस-द्रमुक गठबंधन का सबसे बड़ा चेहरा हैं. इसलिए उनकी रणनीति और फैसले देश की राजनीति पर बड़े अहम किरदार अदा करेंगे. जिस तरह से तमिलनाडु की राजनीति रही है उस इतिहास को देखकर ऐसा लगता है कि स्टालिन की भूमिका बड़ी हो सकती है.
क्यों होंगे एमके स्टालिन 2019 के बड़े खिलाड़ी
उत्तर प्रदेश (80), महाराष्ट्र(48), पश्चिम बंगाल (42) और बिहार (40) के बाद तमिलनाडु में ही सबसे ज्यादा 39 लोकसभा सीटें हैं. इस राज्य की एक बड़ी चौंकाने वाली खासियत और है. यह हर बार एकतरफा मतदान करता है. अब तक जयललिता की पार्टी अगर चुनाव जीतती थी तो करुणानिधि की पार्टी एकदम शून्य पर पहुंच जाती थी. 2014 के चुनाव में भी बिल्कुल ऐसा ही हुआ. जयललिता की पार्टी को 39 में से 37 सीटें मिली और करुणानिधि की पार्टी का खाता भी नहीं खुला. इसी दम पर लोकसभा में एआएडीएमके तीसरे नंबर की पार्टी बनी और लोकसभा के डिप्टी स्पीकर इसी पार्टी से चुने गए.
2019 में भी तमिलनाडु की 39 सीटों का बड़ा महत्व है और इसलिए करुणानिधि के उत्तराधिकारी और उनके बेटे एमके स्टालिन की भूमिका अब बहुत बड़ी होने वाली है. मीडिया की कई खबरों के मुताबिक कहा जा रहा है कि डीएमके इस बार क्लीन स्वीप कर सकती है. नतीजे जो भी होंगे लेकिन दिल्ली की सत्ता पर कौन बैठेगा इसका निर्णय 23 मई के बाद एमके स्टालिन कर सकते हैं. स्टालिन 65 साल के हैं और सियासत में उनका अनुभव भी कम नहीं हैं. उनकी करुणानिधि जैसी क्रांतिकारी भाषण शैली भले ही ना हो लेकिन संगठन शक्ति के मामले में स्टालिन का फिलहाल कोई सानी नहीं है. उन्हें कांग्रेस को समर्थन देने का एलान तो किया है लेकिन राजनीति परिस्थितियों का खेल है. अब देखना होगा कि सरकार बनाने में स्टालिन कितनी बड़ी भूमिका निभा पाते हैं.
कौन है स्टालिन?
स्टालिन छह बार विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं. हालांकि उन्होंने अभी तक कोई लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा है.
उनके राजनीतिक सफर की बात करें तो साल 1967 में उन्होंने पहली बार विधान सभा चुनाव में प्रचार किया. उस वक्त स्टालिन की उम्र 14 साल की थी. इमरजेंसी के दौरान मीसा एक्ट में वह जेल भी गए थे. तमिलनाडु की थाउजेंड लाइट्स चुनाव क्षेत्र से 1984 में वह पहली बैृार विधानसभा चुनाव लड़ा और हार गए, हालांकि 1989 से लेकर अब तक स्टालिन 4 बार यहां से जीते रहे. 1996 में चेन्नई शहर के पहले ऐसे मेयर जो बिना किसी इलेक्शन के चुने गए. उनको डायरेक्ट अपॉइंट किया गया था.
इसके बाद साल 2008 में उन्हें डीएमके का कोषाध्क्ष चुना गया. साल 2009 से 2011 तक वह तमिलनाडू के उप-मुख्यमंत्री रहे. साल 2011 में स्टालिन ने कोलाथुर विधानसभा से चुनाव लड़ा और जीते. इसके बाद साल 2016 में भी इसी सीट से जीते थे.
साल 2013 को करूणानिधि ने ये एलान कर दिया कि उनकी मौत के बाद पार्टी के प्रमुख स्टालिन होंगे. करुणानिधि की मृत्यु के बाद करुणानिधि की राजनीतिक विरासत को लेकर लंबे समय तक चले संघर्ष में स्टालिन बड़े भाई एमके अलागिरी पर भारी पड़े. वे अलागिरी से ज्यादा पढ़े-लिखे होने के साथ ही कूटनीति में भी माहिर हैं. खुद करुणानिधि भी चाहते थे कि उनके बाद स्टालिन पार्टी संभालें. अगस्त 2018 में द्रमुक की कमान स्टालिन के हाथों में चली गई.
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Source: IOCL
















