IAS Success Story: देश से लगाव ने वापस खींचे कदम, विदेश की हाई-पेड जॉब छोड़कर कनिष्क UPSC रैंक 01 के साथ ऐसे बने IAS
कनिष्क कटारिया ने साल 2018 में न केवल यूपीएससी परीक्षा पास की थी बल्कि पूरे देश में टॉप भी किया था, उनकी एआईआर रैंक 01 थी. जनरल स्टडीज़ में खुद को ज़ीरो मानने वाले कनिष्क ने कैसे पायी यह सफलता.

Success Story Of IAS Kanishak Kataria: आज हम जिस यूपीएससी टॉपर से आपको मिलवाने जा रहे हैं, वह खास हैं और उन्हें खास बनाती है उनकी यह सफलता. पहले तो यूपीएससी जैसा इतना कठिन एग्जाम उसमें भी एआईआर रैंक 1, किसी सपने जैसा लगता है. लेकिन यह सपना कनिष्क ने पूरा कर दिखाया वो भी सही मायने में कहें तो अपने पहले प्रयास में ही. कनिष्क हमेशा से पढ़ाई में बहुत अच्छे थे खासकर मैथ्स तो उनके लिए खेल जैसी थी. उन्होंने बचपन से ही बहुत सारे एचीवमेंट्स हासिल किए पर कभी यूपीएससी में जाने का नहीं सोचा. फिर आखिर ऐसा क्या हुआ जो विदेश में अपनी लगी-लगायी हाई-पेड जॉब छोड़कर कनिष्क भारत आ गए. आइये जानते हैं.
कनिष्क का पारिवारिक जीवन और शिक्षा –
कनिष्क के पिता संवर लाल वर्मा भी एक आईएएस ऑफिसर हैं और उनके ताऊ के सी वर्मा भी. उन्होंने बचपन से ही अपने घर में एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेस वाला माहौल देखा था और इसीलिए उन्हें एक आईएएस अधिकारी के रुतबे या क्षमताओं से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता था. जो चीज़ें आसानी से मिल जाती हैं अक्सर उनकी कीमत समझ नहीं आती. कनिष्क को भी इन बातों की कोई वैल्यू नहीं थी और वे बड़े होकर कोई और काम करना चाहते थे. हालांकि उनके पिताजी का बड़ा मन था कि वे भी आईएएस बनें पर कनिष्क ने कभी इसे गंभीरता से नहीं लिया. कनिष्क की पढ़ाई कोटा से हुयी क्योंकि उनके पापा की पोस्टिंग आसपास के जिले में थी. वहां के सेंट पॉल्स स्कूल से उन्होंने क्लास 12 पास किया. इसके बाद कोचिंग करके उन्होंने जेईई दिया और पहली ही बार में 44वीं रैंक के साथ सेलेक्ट हो गए. उन्होंने आईईटी बॉम्बे चुना और वहां से कंप्यूटर साइंस में बीटेक किया. कनिष्क मैथ्स में कमाल थे. उनके मैथ्स में दसवीं और बारहवीं दोनों में 100 अंक आये थे साथ ही उन्होंने ओलम्पियाड में भी ऑल इंडिया रैंक 01 पायी थी. आईआईटी के बाद उनका चयन हो गया और वे प्लेसमेंट के द्वारा साउथ कोरिया की एक कंपनी में बहुत अच्छे पैकेज पर सेलेक्ट हो गए.

नहीं लगा विदेश में मन –
अक्सर हम जैसा सोचते हैं, वैसा होता नहीं. कनिष्क विदेश चले तो गए जहां उन्होंने लगभग एक साल काम भी कर लिया पर पैसे के अलावा उनको उस नौकरी से किसी प्रकार की संतुष्टि नहीं मिल रही थी. वे वापस आ गए और इंडिया में बेंगलुरू में एक कंपनी में नौकरी करने लगे. जॉब आदि के लिए जाते समय ट्रैफिक की वजह से वे घंटों कैब में फंसे रहते थे. उस समय उनके मन में यह ख्याल आते थे कि विदेशों की तुलना में यहां सुविधाओं की कितनी कमी है. कुछ समस्याओं का समाधान तो बहुत ही आसान है अगर लोग छोटी-छोटी बातों पर ध्यान दें. तभी उन्हें लगा कि यहां बैठकर सिस्टम को कोसने से कुछ नहीं होगा और अगर हम सच में कुछ बदलना चाहते हैं तो हमें सिस्टम का हिस्सा बनकर ही अपने स्तर के प्रयास करने होंगे. इस विचार के बाद उन्होंने अपने परिवार से चर्चा की और काफी समय सोचने-विचारने के बाद उन्होंने यूपीएससी परीक्षा देने का मन बना लिया.
पहला प्रयास था केवल मजाक –
कनिष्क एक साक्षात्कार में बताते हैं कि पहले प्रयास को न ही गिनें तो बेहतर है जब परीक्षा के एक दिन पहले उन्हें पता चलता है कि फॉर्म भर दिया गया है और कल परीक्षा देने जाना है. दरअसल उनके पिताजी ने बिना कनिष्क को बताये फॉर्म भर दिया था और वो चाहते थे कि कनिष्क एक बार ट्राय तो करें. उन्हें लगा परीक्षा का अभी भी वही पुराना पैटर्न है. खैर पापा के कहने पर कनिष्क परीक्षा देने चले गए और जीएस में बेइंतहा कमजोर होने के कारण एग्जाम हॉल से सोकर आ गए. जाहिर है परीक्षा पास नहीं होनी थी. ये बात आयी-गयी हो गयी और कनिष्क विदेश चले गए. इस वजह से वे अपने इस अटेम्पट को नहीं गिनते. जब वापस आकर उन्होंने गंभीरता से इस बारे में सोचा तो डेढ़-दो साल का समय लगाकर जमकर तैयारी की. और पहले ही अटेम्पट में न केवल सेलेक्ट हो गए बल्कि पहली रैंक भी पायी.
अपने अनुसार बनायी स्ट्रेटजी –
कनिष्क दूसरे कैंडिडेट्स को भी यही सलाह देते हैं जो उन्होंने अपने साथ भी किया कि सुनो सबकी, सीखो भी जिससे जो अच्छा हो पर अपनी स्ट्रेटजी अपनी वीकनेस और स्ट्रांग बिंदुओं को देखकर बनाओ, किसी को कॉपी मत करो. सबकी जरूरतें अलग होती हैं, सब एक ही स्ट्रेटजी से सफलता नहीं पा सकते. जैसे कनिष्क की जीएस बहुत कमजोर थी. उन्होंने परीक्षा के सालों पहले से पेपर पढ़ना और करेंट अफेयर्स पर नज़र रखना शुरू कर दिया था. मैथ्स जोकि उनका ऑप्शनल भी था में उन्हें कोई परेशानी नहीं हुयी न ज्यादा मेहनत करनी पड़ी पर बाकी विषय जिनसे वे कक्षा 11वीं लगभग जान बचाकर भागे थे, उन्हें फिर वहीं विषय चुनने पड़ें. इससे हमें ये सीख भी मिलती है कि जीवन में जब कुछ बड़ा एचीव करना होता है तो पसंद-नापसंद को पीछे छोड़कर जो जरूरी है वो करना पड़ता है. कनिष्क ने दिन-रात मेहनत की. आम दिनों में कम से कम आठ घंटे और परीक्षा के पहले 12 से 14 घंटे तक पढ़ाई की. खूब प्रैक्टिस करी, अपनी गलतियों पर फोकस किया, बड़ों का गाइडेंस लिया और अपनी गलर्फ्रेंड सोनल जिन्हें भी वे अपनी सफलता का श्रेय देते हैं से भी दूर रहे. सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करके कनिष्क ने वो कर दिखाया जो उनके मां-बाप से लेकर खुद उन्होंने भी सपने में भी नहीं सोचा था.
कनिष्क की कहानी हमें यह सिखाती है कि सपने पूरे करने के लिये कभी भी देर नहीं होती, जब जागो तभी सवेरा. अगर आप जहां हैं, वहां संतुष्ट नहीं हैं तो आपको खुद ही आगे बढ़कर उसे बदलने की चेष्टा करनी होगी. कोई जादुई ताकत आपके दिन, आपकी जिंदगी नहीं बदलेगी. इसलिये उठें और अपने सपनों को पाने के लिये निकल पड़ें बस उनकी जो कीमत है उसे चुकाने के लिये तैयार रहें.
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Source: IOCL






















