8.2 पर्सेंट की ग्रोथ रेट, फर्राटा भर रही देश की इकोनॉमी; फिर भी क्यों डॉलर के सामने पस्त हुआ रुपया?
Indian Economy: कारोबारी साल 2025-26 की दूसरी तिमाही में देश की GDP 8.2 परसेंट की दर से बढ़ी, जो पिछले साल समान तिमाही के 5.6 परसेंट से कहीं अधिक है. बावजूद इसके रुपया गिर रहा है.

Indian Economy: भारत की इकोनॉमी लगातार आगे बढ़ रही है. पिछले लगातार दो तिमाहियों से GDP ग्रोथ ने इसे लेकर लगाए गए अनुमानों को पीछे छोड़ दिया है, कॉर्पोरेट कंपनियां भी अच्छा-खासा कमा रही हैं और हाल ही में सामने आई डेटा से यह भी पता चला है कि कारोबारी साल 2025-26 की दूसरी तिमाही में देश की GDP 8.2 परसेंट की दर से बढ़ी, जो पिछले साल समान तिमाही के 5.6 परसेंट से कहीं अधिक है.
ग्लोबल एजेंसियों ने भी माना भारत का लोहा
यहां तक कि जिन ग्लोबल एजेंसियों को भारतीय इकोनॉमी की रफ्तार को लेकर शक था, उन्होंने भी अब भारत का लोहा मान लिया है. इतना सब कुछ हो रहा है, लेकिन हैरान करने वाली बात है कि फिर भी रुपया गिरता जा रहा है. बुधवार को भारतीय रुपया US डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गई. पहली बार एक डॉलर 90 रुपये को पार कर गया है. ये दोनों बातें एक-दूसरे के बिल्कुल उलट हैं क्योंकि GDP से पता चलता है कि देश के अंदर क्या चल रहा है और करेंसी दिखाती है कि बाहरी दुनिया में भारत का कैसा रूतबा है.
ग्रोथ और इकोनॉमी के बीच रिश्ता
इन्फॉर्मिक्स रेटिंग्स के चीफ इकॉनमिस्ट मनोरंजन शर्मा का कहना है कि ग्रोथ और करेंसी के बीच का कनेक्शन लोगों की समझ से परे है. उन्होंने कहा कि मजबूत इकोनॉमी रुपये की मदद करती है, लेकिन यह अकेला फैक्टर काफी नहीं है. उन्होंने समझाते हुए कहा, ग्लोबल कैपिटल फ्लो, इंटरेस्ट रेट में अंतर और जियोपॉलिटिकल अनिश्चितता की वजह से रुपये गिर रहा है और सेफ हेवन करेंसी डॉलर की डिमांड बढ़ रही है. डॉलर को सेफ हेवन करेंसी इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह ग्लोबल मार्केट में अनिश्चितता के समय में स्थिरता बनाए रखता है.
उन्होंने यह भी कहा कि भारत की इंपोर्टेड एनर्जी, इलेक्ट्रॉनिक्स और सोने पर निर्भरता, साथ ही ट्रेडिंग पार्टनर्स के साथ महंगाई में अंतर और बढ़ता करंट अकाउंट डेफिसिट भी रुपये पर दबाव डाल रहे हैं. ऐसे में यह सोच पुरानी है कि GDP मजबूत होगा, तो रुपया भी अपने आप ही मजबूत हो जाएगा. एक मजबूत इकोनॉमी और मजबूत करेंसी के बीच कोई एक जैसा संबंध नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका में ऊंची ब्याज दरों के चलते रुपये के विनमय दर में गिरावट आई है, जबकि इम्पोर्ट मजबूत हुआ है.
रुपये की कमजोरी की एक बड़ी वजह डॉलर की मजबूती भी है. चूंकि, अमेरिका और भारत के बीच ट्रेड डील पर बात अटकी हुई है, फेडरल रिजर्व रेट कट को लेकर उम्मीदें लगातार बदल रही हैं. इसके चलते निवेशक अपना पैसा वापस डॉलर में लगा रहे हैं. और जब-जब ऐसा होता है दुनिया भर की करेंसी कमजोर होती है.
रुपये को लेकर आगे क्या?
रुपये में क्या आगे भी गिरावट जारी रहेगी? इस सवाल का जवाब देते हुए आर्यभट्ट कॉलेज में इकोनॉमिक्स की प्रोफेसर आस्था आहूजा ने कहा, जब तक अनिश्चितता बनी हुई है तब तक कुछ पुख्ता कहा नहीं जा सकता. आखिरकार रिजर्व बैंक भी कब तक रुपये को सहारा देने के लिए अपने रिजर्व में से डॉलर बेचता रहेगा. रुपये में मजबूती आए इसके लिए ट्रेड डील का जल्द से जल्द होना जरूरी है क्योंकि ट्रेड डेफिसिट भी बढ़ रहा है. इस वजह से रुपया एशिया की सबसे कमजोर करेंसीज में से एक बन गया है.
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Source: IOCL






















