China in Recession: जापान-ब्रिटेन के बाद चीन पर भी छाए मंदी के बादल? इस आंकड़े ने बढ़ा दी टेंशन
China Economic Crisis: पिछले साल यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी मंदी में गिर गई थी. उसके बाद जापान और ब्रिटेन में भी मंदी ने दस्तक दे दी है...
Global Recession 2024: पिछले साल शुरू हुई आर्थिक मंदी की चर्चा एक बार फिर तेज हो गई है. इस बार आर्थिक मंदी ने दुनिया भर की टेंशन बढ़ा दी है. ये चिंताएं और परेशानियां अनायास नहीं हैं, क्योंकि एक के बाद एक दुनिया की कई बड़ी अर्थव्यवस्थाएं मंदी के दलदल में फंसती जा रही हैं. जर्मनी, ब्रिटेन और जापान के बाद मंदी कहीं दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन में भी दस्तक न दे, यह बात खास तौर पर अर्थशास्त्रियों और नीति नियंताओं को परेशान कर रही है.
दरअसल चीन की अर्थव्यवस्था लगातार सुस्त हो रही है. आंकड़े दबाए जाने के बाद भी अर्थव्यवस्था की बुरी स्थिति छिप नहीं पा रही है. चीन के शेयर बाजार गिर रहे हैं. अब एक और आर्थिक आंकड़े ने मंदी की आशंकाएं तेज कर दी है. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट बताती है कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को एफडीआई यानी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मोर्चे पर तगड़ा झटका लगा है. इसके आंकड़े 3 दशक से भी ज्यादा समय में सबसे खराब हो गए हैं.
3 दशक के सबसे खराब आंकड़े
रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल चीन को सिर्फ 33 बिलियन डॉलर के एफडीआई मिले, जो एक साल पहले की तुलना में 82 फीसदी कम है. रिपोर्ट में चीन के स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ फॉरेन एक्सचेंज के आंकड़ों का हवाला दिया गया है, जिसे रविवार को जारी किया गया. आंकड़े बताते हैं कि 2023 के दौरान चीन के बैलेंस ऑफ पेमेंट्स में डाइरेक्ट इन्वेस्टमेंट लायबलिटीज 2022 की तुलना में 82 फीसदी कम होकर 33 बिलियन डॉलर पर आ गया. यह आंकड़ा बताता है कि 2023 में विदेशी कंपनियों ने चीन में कितना निवेश किया. यह 1993 के बाद का सबसे स्लो ग्रोथ है.
इन फैक्टर्स से बढ़ रही है परेशानी
आंकड़ों से पता चलता है कि पूरे साल के हिसाब से एफडीआई ग्रोथ 3 दशक में सबसे कम तो रही ही, साथ ही 2023 की तीसरी तिमाही के दौरान 1998 के बाद पहली बार ऐसा हुआ, जब प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ने के बजाय कम हो गया. इससे पता चलता है कि चीन की अर्थव्यवस्था अभी भी कोविड महामारी के असर से उबर नहीं पा रही है. महामारी की रोकथाम के लिए लगाई गई पाबंदियों, बढ़ते सरकारी हस्तक्षेप और पारदर्शिता की कमी जैसे फैक्टर चीन की अर्थव्यवस्था को गहरे तक प्रभावित कर रहे हैं.
भारी-भरकम फंड से भी नहीं मिली राहत
इससे पहले ब्लूमबर्ग ने ही एक रिपोर्ट में बताया था कि किस तरह से चीन की सरकार के हस्तक्षेप के बाद भी शेयर मार्केट सुधर नहीं पा रहा है. चीन अपने शेयर बाजारों को संभालने के लिए बड़े पैमाने पर सरकारी फंड झोंक रहा है. इसके लिए 278 बिलियन डॉलर का भारी-भरकम फंड तैयार किया गया है. हालांकि इसके बाद भी चाइनीज शेयर बाजारों को सीमित राहत मिल पा रही है. बोफा ने इसी महीने बताया था कि 9 फरवरी को समाप्त हुए सप्ताह में चीन के बाजार में जो अच्छी रैली देखी गई थी, उसका कारण था कि चीन के सरकार ने सबसे बड़ी मात्रा में मार्केट में फंड डाला था.
तकनीकी मंदी से कितनी दूर है चीन?
ये आंकड़े इस कारण परेशान करने वाले हैं क्योंकि इससे पहले कई प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं मंदी की चपेट में जा चुकी हैं. यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था 2023 की शुरुआत में मंदी की चपेट में गिर गई थी. वहीं ताजे आंकड़े बता रहे हैं कि 2023 की दूसरी छमाही में जापान और ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था भी मंदी की चपेट में पड़ गईं. कोई अर्थव्यवस्था अगर लगातार दो तिमाही निगेटिव ग्रोथ रिकॉर्ड करती है तो तकनीकी तौर पर उसे मंदी मान लिया जाता है. इस पैमाने से चीन की अर्थव्यवस्था पर फिलहाल तो मंदी का प्रत्यक्ष खतरा नहीं है, लेकिन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की सुस्त होती रफ्तार से अच्छी तस्वीर सामने नहीं आ रही है.
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