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BUDGET 2020: अर्थव्यवस्था के सामने क्या हैं चुनौतियां, जानिए जानकारों की राय

देश की अर्थव्यवस्था इस समय नाजुक दौर से गुजर रही है और इसके सामने एक बार फिर तेज रफ्तार से दौड़ने की चुनौती है. इस बजट में सरकार को ऐसे ही कुछ कदम लेने होंगे जो इकोनॉमी को आगे बढ़ाने में मदद दे सकें.

नई दिल्लीः इस समय देश का सवाल है कि मौजूदा वक्त में देश की जो अर्थव्यस्था है, उसका इलाज क्या है. सवाल है कि जब देश में आर्थिक मंदी का माहौल है, तो क्या एक बार फिर अर्थव्यववस्था को रफ्तार देने के लिए 1991 जैसे कदम उठाने की जरूरत है. दो दिन बाद बजट आने वाला है और सबके मन में ये सवाल है कि क्या वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन वैसे ही बड़े फैसले का एलान करेंगी, जैसा 1991 में वित्त मंत्री रहते मनमोहन सिंह ने किया था. किसी अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए जिन सेक्टरों का रोल अहम होता है उनके लिए सरकार को क्या अहम कदम उठाने चाहिए, इस रिपोर्ट में आप जान सकते हैं.

जब देश गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा था तब भारत की जीडीपी सिर्फ 1.1 फीसदी थी, विदेशी मुद्रा भंडार से सिर्फ दो हफ्ते का आयात खर्च पूरा होता था और भारत को आईएमएफ में अपना सोना गिरवी रखना पड़ा था. दुनिया के आर्थिक नक्शे पर भी भारत कहीं नहीं था. ऐसे में इन हालात से मुकाबला करने के लिए तब की नरसिम्हा राव सरकार ने बड़ा कदम उठाया जिसे भारत में आर्थिक उदारीकरण कहते हैं. ये कदम नया भारत बनने के सफर में मील का पत्थर साबित हुआ.

वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने 1991 में जो बजट पेश किया उसने देश की अर्थव्यवस्था में क्रांति ला दी. युवाओं को रोजगार मिला. कारोबार के नए अवसर पैदा हुए. विदेशी निवेशकों के लिए रास्ता खुला और देश ने आर्थिक तरक्की देखी, उसी का नतीजा है कि 1991 में भारत की जीडीपी 19 लाख करोड़ रुपये थी जो कि 2019 में 198 लाख करोड़ रुपये पर आ गई है.

उस बड़े फैसले के करीब 3 दशक बाद एक बार फिर भारत में आर्थिक मंदी का दौर दिख रहा है. तरक्की के सारे पैरामीटर निगेटिव तस्वीर पेश कर रहे हैं तो क्या एक बार फिर 1991 की तरह अर्थव्यवस्था में 'बिग बैंग रिफॉर्म्स' की जरूरत है? अर्थव्यवस्था से जुड़े 6 अहम सेक्टर के एक्सपर्ट्स ने बताया कि कौन से बड़े सुधारों की जरूरत है.

बेरोजगारी बेरोजगारी 45 सालों में सबसे ज्यादा है और 2017-18 के सरकारी आंकड़े के मुताबिक बेरोजगारी दर 6.1 फीसदी है और दिसंबर 2019 में सीएमआईई के आकंड़े के मुताबिक 7.5 फीसदी है. इसका एक उदाहरण है कि मार्च 2018 में रेलवे के 90 हजार पदों के लिए 2.8 करोड़ लोगों ने आवेदन दिया. नवंबर 2019 में बिहार में 5 लाख लोगों ने माली और चौकीदार के पद के लिए आवेदन दिया जिनमें एमबीए और इंजीनियर्स भी शामिल थे. बेरोजगारी की ये सच्चाई अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी चुनौती है. इसके लिए जब एसोचैम के उप महासचिव अजय शर्मा से बात की गई तो उनका कहना था कि सरकार को मैन्यूफैक्चरिंग पर ध्यान देने की जरूरत है.

एसोचैम के उप महासचिव अजय शर्मा ने कहा कि मैं मानता हूं कि आज लोगों की खरीदने की क्षमता को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाने की जरूरत है. हम लोगों के हाथों की खरीदने की क्षमता बढ़ाएं ताकि जो कंज्यूमर की डिमांड है बाजार में वो बढ़े. जब डिमांड बढ़ेगी तो प्रोडक्शन भी बढ़ेगा और जब प्रोडक्शन बढ़ेगा तो मेरे हिसाब से रोजगार भी बढ़ेगा. सरकार भी समय-समय पर इंसेटिव दे रही है, अभी कुछ इंपोर्ट ड्यूटी भी लगी है ताकि हमारी लोकल मैन्यूफैक्चरिंग और बढ़े.

लेबर रिफॉर्म रोजगार पैदा होने के लिए देश में साफ तौर पर लेबर रिफॉर्म की जरूरत है. भारत में कामकाजी लोगों में 90 फीसदी असंगठित क्षेत्र से जुड़े हैं और इसकी सबसे बड़ी वजह निजी क्षेत्र में निवेश का कम होना है. पुराने श्रम कानून कॉरपोरेट सेक्टर के रास्ते में बड़ी रुकावट हैं लिहाजा लेबर लॉ में संशोधन जरूरी है. मोदी सरकार ने इस ओर ध्यान तो दिया है लेकिन एक्सपर्ट की माने तो नए फैसलों को लागू करना भी एक चुनौती है.

अर्थशास्त्री एस पी शर्मा ने कहा कि अभी हाल ही में सरकार ने एक बहुत अच्छा कदम उठाया है जिसे फिक्स टर्म इंप्लॉइमेंट कहते हैं जिसका मतलब है कि कोई भी फैक्ट्री एक तय समय के लिए भी किसी को नौकरी पर रख सकती है लेकिन इंडस्ट्री ये देख रही है कि उसे किस तरह लागू किया जाता है तो ऐसे कानून और सुधार लाने की जरूरत है. जो दोनों के लिए विन-विन स्थिति की तरह हो, वर्क फोर्स के लिए भी हो क्योंकि जितना सरल कानून होगा उतना ज्यादा उनको रोजगार मिलेगा और कंपनी भी जितना सरल कानून होगा वो अपने उत्पादन क्षमता को और बढ़ाएगा.

इंफ्रास्ट्रक्चर अर्थव्यवस्था के जानकार मानते हैं कि रोजगार पैदा करने के लिए सरकार को ज्यादा से ज्यादा इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करना होगा और उसी रास्ते से टारगेट पूरा हो पाएगा.

आर्थिक मामलों के जानकार कुमार दीप का कहना है कि 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनानी है तो वो सड़क, नदियों, रेलवे और आवास के प्रोजेक्ट के रास्ते ही आएगा. सड़क परिवहन की बात करें तो 1.25 लाख किलोमीटर सड़क बनाने की बात कही गई है जिसके लिए करोड़ों रुपया चाहिए. रेलवे को पीपीपी मॉडल के जरिए चलाना होगा और रेलवे की गति को बढ़ाने की बात कही गई है. इसके अलावा भारत के शहरों में जो प्रदूषण की मार है, जो एयर क्वालिटी इंडेक्स है उसके कारण कई लोग भारत से बाहर जाने का फैसला कर रहे हैं.

इस तरह साफ है कि सरकार के सामने चुनौतियां अपार हैं और संसाधन जितने होने चाहिए उतने हैं नहीं. सरकार को अगर देश की इकोनॉमी सुधारनी है तो ऐसे ठोस कदम लेने पड़ेगे जो वाकई में अर्थव्यवस्था को बूस्ट दे सकें. इस रिपोर्ट में आर्थिक जगत के जानकारों ने जो सुझाव दिए हैं अगर उन पर सरकार विचार करती है तो सरकार को अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए थोड़ा तो सहयोग मिल ही जाएगा.

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