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जम्मू-कश्मीर का सियासी नक्शा बदल जाने से बीजेपी को मिलेगा फायदा?
![जम्मू-कश्मीर का सियासी नक्शा बदल जाने से बीजेपी को मिलेगा फायदा? Will BJP benefit from changing the political map of Jammu and Kashmir जम्मू-कश्मीर का सियासी नक्शा बदल जाने से बीजेपी को मिलेगा फायदा?](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2022/05/06/15d19b0552c1f20294b3a84011115b80_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की आहट शुरु हो गई है. परिसीमन आयोग की रिपोर्ट आने के बाद चुनाव आयोग ने विधानसभा और लोकसभा सीटों को लेकर नोटिफ़िकेशन जारी दिया है. परिसीमन के बाद राज्य का राजनीतिक नक्शा काफी हद तक बदल जायेगा. यही वजह है कि बीजेपी को छोड़ सभी पार्टियों ने परिसीमन का विरोध किया है, क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे बीजेपी को ही ज्यादा सियासी फायदा मिलेगा. पहली बार कश्मीरी पंडितों के लिए दो सीटें रिज़र्व की गई हैं, ताकि विधानसभा में उनकी भी नुमाइंदगी हो सके.
हालांकि परिसीमन आयोग की रिपोर्ट में इसके लिए कश्मीरी प्रवासी शब्द का इस्तेमाल किया गया है. ऐसा माना जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव अक्टूबर-तक हो सकते हैं. गृहमंत्री अमित शाह ने पिछले दिनों दिए एक इंटरव्यू में ये संकेत दिए थे कि जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की प्रक्रिया जल्द पूरी होने वाली है और इसके अगले छह से आठ महीने में विधानसभा के चुनाव होंगे.
दरअसल, कश्मीर घाटी में सक्रिय राजनीतिक दलों ने आयोग की सिफ़ारिशों को लेकर सवाल उठाये हैं और वे इसका विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि ये राज्य के लोगों को शक्तिहीन करने की कोशिश के साथ ही संविधान का उल्लघंन भी है. विपक्षी दलों ने पहले भी इसका विरोध करते हुए कहा है कि सिर्फ़ जम्मू-कश्मीर में परिसीमन किया जा रहा है, जबकि पूरे देश के लिए ये 2026 तक स्थगित है. 2019 में धारा 370 हटने से पहले केंद्र सरकार राज्य की संसदीय सीटों का परिसीमन करती थी और राज्य सरकार विधानसभा सीटों का परिसीमन करती थी. अब जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद दोनों ही ज़िम्मेदारियां केंद्र सरकार के पास हैं.
हालांकि जम्मू-कश्मीर में आख़िरी बार 1995 में परिसीमन किया गया था. इसके बाद राज्य सरकार ने इसे 2026 के लिए स्थगित कर दिया था. इसे जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, लेकिन दोनों ने स्थगन को बरकरार रखा. विपक्षी पार्टियों का कहना है कि परिसीमन पुनर्गठन अधिनियम के तहत किया जाता है जो कि अभी विचाराधीन है.
मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा के मुताबिक परिसीमन के बाद जम्मू और कश्मीर में 90 विधानसभा सीटें और पांच संसदीय सीटें होंगी. विधानसभा सीटों में से 43 जम्मू क्षेत्र में, जबकि 47 सीटें कश्मीर घाटी में होंगी. इन 90 विधानसभा सीटों में से सात सीटें अनुसूचित जाति और नौ सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित होंगी. पांच संसदीय सीटें होंगी- बारामूला, श्रीनगर, अनंतनाग-रजौरी, उधमपुर और जम्मू.
उन्होंने बताया कि 'हमने ये सुनिश्चित किया है कि विधानसभा क्षेत्र एक ज़िले तक सीमित रहें क्योंकि पहले ये होता था कि विधानसभा क्षेत्र कई ज़िलों में बंट जाते थे.' आयोग का कहना है कि उन्होंने जम्मू-कश्मीर को दो अलग-अलग क्षेत्र की तरह लेने की बजाए एक क्षेत्र के तौर पर लिया है. उसने कुछ विधानसभाओं के नाम या क्षेत्रीय बदलाव को भी मंज़ूरी दी है. जैसे तंगमर्ग को गुलमर्ग के नाम से ज़ूनीमार को ज़ैदीबाल के नाम से, सोनार को लाल चौक और कठुआ उत्तर को जसरोटा के नाम से अब जाना जाएगा.
आयोग ने दो बार जम्मू-कश्मीर का दौरा किया और रिपोर्ट तैयार करने से पहले 242 प्रतिनिधिमंडलों से बातचीत की. परिसीमन आयोग ने सात सीटें बढ़ाने की सिफ़ारिश की है. इसके साथ ही जम्मू में अब 37 से बढ़कर 43 और कश्मीर में 46 से 47 सीटें हो गई हैं. यानी जम्मू क्षेत्र को 6 सीटें और मिल गई हैं, जबकि घाटी के हिस्से में सिर्फ एक ही सीट आई है. विपक्षी दलों के विरोध और नाराजगी की एक बड़ी वजह ये भी है.
एक अंग्रेज़ी अख़बार की रिपोर्ट के मुताबिक जम्मू क्षेत्र की छह नई सीटों में से चार हिंदू बहुल हैं. चिनाब क्षेत्र की दो नई सीटों में, जिसमें डोडा और किश्तवाड़ ज़िले शामिल हैं, पाडर सीट पर मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं. उधर, कश्मीर घाटी में एक नई सीट पीपल्स कॉन्फ्रेंस के गढ़ कुपवाड़ा में है, जिसे बीजेपी के क़रीबी के तौर पर देखा जाता है.
दरअसल, अनंतनाग और जम्मू के पुनर्गठन से इन सीटों पर अलग-अलग समूह की आबादी का प्रभाव बदल जाएगा. परिसीमन आयोग ने अनुसूचित जनजातियों यानी एसटी के लिए नौ विधानसभा सीटें आरक्षित की हैं. इनमें से छह, पुनर्गठित अनंतनाग संसदीय सीट में शामिल हैं. इनमें पुंछ और राजौरी भी शामिल हैं, जहां अनुसूचित जनजाति की सबसे ज़्यादा जनसंख्या है. विपक्षी दलों को आशंका है कि इस संसदीय सीट को भी एसटी के लिए आरक्षित किया जाएगा. पहले की अनंतनाग सीट पर एसटी की आबादी कम थी, लेकिन इन बदलावों के बाद इस सीट पर चुनावी नतीजे पुंछ और राजौरी पर निर्भर करेंगे. घाटी में राजनीतिक दल इसे कश्मीरी भाषी मुस्लिम मतदाताओं के प्रभाव को कम करने के रूप में देख रहे हैं.
पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ़्ती ने कहा है कि 'हम इसे पूरी तरह ख़ारिज करते हैं. परिसीमन आयोग ने जनसंख्या के आधार को नज़रअंदाज़ किया है और उनकी मर्ज़ी के अनुसार काम किया है. उनकी सिफ़ारिशें आर्टिकल 370 हटाने का ही एक हिस्सा हैं... कि जम्मू-कश्मीर को लोगों को कैसे शक्तिहीन किया जाए.' गुपकार गठबंधन के प्रवक्ता मोहम्मद युसुफ तरीगामी ने कहा, 'आयोग ने हमसे कभी बात नहीं की और हमारी गैर मौजूदगी में लिया गया कोई भी फ़ैसला कभी सही नहीं हो सकता और हम इसे कभी मंजूर नहीं करेंगे.'
नेशनल कॉन्फ्रेंस के इमरान डार के मुताबिक, 'उम्मीद के मुताबिक़ बदलाव नहीं किए गए हैं. इससे सिर्फ़ बीजेपी और उससे जुड़े दलों को फ़ायदा होगा. ये राजनीतिक एजेंडे को पूरा करने की कवायद है. हमें लगता है कि जब भी चुनाव होंगे तो मतदाता बीजेपी और उससे जुड़े दलों को निर्णायक जवाब देंगे.'
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)
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