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नाथन एंडरसन के हिंडनबर्ग रिसर्च बंद करने के एलान के पीछे छिपे हो सकते ये 3 कारण

हिंडनबर्ग एक रिसर्च फर्म है, जिसका काम है फॉरेंसिक फाइनेंशियल रिसर्च करना. ये फर्म शॉर्ट-सेलिंग में एक्सपर्ट थी और इसका मुख्य काम था कि अगर कोई कंपनी फाइनेंशियल फ्रॉड कर रही है तो उनका पता लगाया जाए या फिर किसी कॉरपोरेट गवर्नेंस में खामियां हो तो उसका पता लगाना. इसके साथ ही, अगर सरकारी गतिविधियों में कोई कंपनी शामिल है उसका भी पता लगाना.

ये डीप फाइनेंशियल रिसर्च करते थे और उसका पता लगाकर इन्वेस्टर तक, शेयर होल्डर और उस कंपनी में मुख्य निवेदक तक उस रिपोर्ट को साझा करते थे कि कैसे कोई कंपनी उनके पैसों या उनके इन्वेस्टमेंट के साथ धोखाधड़ी या मैनिपुलेशन कर रही है? ये बेसिकली हिंडनबर्ग का काम था.

नाथन एंडरसन हिंडनबर्ग रिसर्च के फाउंडर हैं, जिन्होंने साल 2017 में इसकी स्थापना की थी. वे एक नर्स के बेटे हैं और इनके पिता अध्यापक रहे हैं. इन्होंने इजराइल में जॉब की है. इस फर्म को बनाने का मुख्य उद्देश्य केवल इतना था कि निवेशकों तक सही सूचना पहुंचाई जा सके.

निजी कारणों का हवाला 

नाथन एंडरसन की तरफ से लगातार हिंडनबर्ग को बंद करने के निजी कारणों का हवाला दिया जा रहा है या फिर उनकी तरफ से कहा जा रहा है कि फर्म का उद्देश्य पूरा हो गया. लेकिन सवाल उठता है कि किसी फर्म का उद्देश्य कैसे पूरा हो सकता है. एक सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या एंडरसन का सिर्फ एक या दो फर्म को टारगेट करना ही मकसद था. ये बातें काफी संदेहास्पद है क्योंकि उन्होंने कहा था कि हमारे लक्ष्य खत्म हो गए थे. जबकि, हकीकत देखें तो किसी एक फर्म के लक्ष्य कैसे पूरे हो सकते हैं. उन्होंने दो फर्मों की रिपोर्ट जारी की थी, एक निकोला और दूसरा अडाणी ग्रुप के लिए. 

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इन्हीं दोनों की रिपोर्ट जारी करना उस फर्म का मकसद था, इसका जवाब तो खुद एंडरसन ही दे पाएंगे कि इस फर्म को बंद करने में उनकी क्या कुछ मजबूरियां रही. लेकिन हां, एक कारण मुझे लगता है कि एक कारण जो रहा होगा कि हिंडनबर्ग को बंद क्यों करना पड़ा वो है शॉर्ट सेलिंग.

शॉर्ट-सेलिंग को सरल भाषा में ऐसे समझ सकते हैं कि अगर किसी को लगता है कि निकट भविष्य में मार्केट गिरेगी या किसी शेयर का भाव गिरेगा, तो उसमें फ्यूचर ऑप्शन होता है कि उस शेयर को आज ही सेल कर दें और निकट भविष्य में उस शेयर को फिर से खरीद लें. 

शॉर्ट सेलिंग

जैसे कि मान लें कि कोई शेयर अडानी का है, अडानी केस में क्या हुआ होगा. अडानी का शेयर हाई चल रहा था. इन्होंने उसी दिन उस रेट पर शेयर को बेच दिया. इन्होंने बाद में अपनी रिपोर्ट जारी कर दी, जिसके बाद शेयर की कीमत में कमी आ गई और बाद में खरीद लिया.

इनका ट्रांजैक्शन पूरा हो गया और इससे इनकी कमाई हो गई. मतलब वित्तीय लाभ होता है. इससे कि आप बढ़ी हुई कीमत पर बेच देते हैं और बाद में अपनी रिपोर्ट जारी कर घटी हुई कीमत पर उसे खरीद लेते हैं.

दरअसल, भारत में जिस तरह से सेबी- सिक्योरिटी एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया है या फिर अन्य देशों के अपने स्टॉक एक्सचेंज को मैनेज करने वाली संस्थाएं हैं, ये सभी काफी प्रभावी हैं. ऐसे में शॉर्ट सेलिंग का काम इतना आसान नहीं रह गया था, उस स्थिति में शॉर्ट सेलिंग मुनाफे का धंधा नहीं रह गया था.

दूसरी बात ये कि जो शर्ट-सेलर होते हैं, वे कई बार अपनी कहानी कुछ भी बना के भी कर देते हैं. अब इस केस में क्या हुआ. इनके ऊपर केस पे कैसे भी दर्ज हो रहे हैं. मुझे ऐसा लगता है कि कहीं ना कहीं ये शॉर्ट सेलिंग कर अच्छा मुनाफा इन्होंने कमा लिया, लेकिन अब कहीं ना कहीं ये गड़बड़ी हो सकती थी, क्योंकि हो सकता है कि इनकी रिपोर्ट्स सही न हो या पैसा कमाने के लिए ऐसा कर दिया गया हो. आगे जाकर इनको बड़ा नुकसान न झेलना पड़े, इसलिए भी हो सकता है. इन्होंने इसको बंद कर दिया हो.

जो प्रॉफिट बड़ा कमा रहा हो, उसी के बारे में रिपोर्ट डालने पर फायदा होगा. मान लीजिए कोई कंपनी है जो नहीं चल पा रही है, उस सूरत में उस की रिपोर्ट बनाकर कोई लंबा फायदा नहीं होने वाला है. लोगों की उसमें खास रुचि भी नहीं रहेगी. निवेशक भी उसमें दिलचस्पी नहीं लेंगे. 

ट्विटर कंपनी अच्छा चल रही थी, अडाणी कंपनी हिन्दुस्तान में बूम पर चल रही थी और निकोला एक ट्रक बनाने वाली US की कंपनी की है. निकोला बहुत अच्छा काम कर रही थी और अच्छा प्रॉफिट कमा रही थी. इसलिए शायद निकोला और ट्विटर जैसी कंपनियों को हिंडनबरेग ने टारगेट किया. ऐसा नहीं लगता कि उनकी कोई निजी वजह रही होगी, लेकिन जहां प्रॉफिट होगा ,जहां पैसा होगा उसी को टारगेट करेगी. जाहिर सी बात है कि इन तीनों कंपनियों को टारगेट करने का वो एक कारण हो सकता है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.] 

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