हिमाचल में भाजपा को मुख्यमंत्री का नाम क्यों घोषित करना पड़ा?

अब स्पष्ट है कि 9 नवंबर को सभी 68 विधानसभा सीटों के लिए होने जा रही हिमाचल प्रदेश की चुनावी जंग दो वयोवृद्ध महारथियों के बीच लड़ी जा रही है. कांग्रेस की तरफ से वर्तमान सीएम वीरभद्र सिंह (83 वर्ष) का नाम तो पहले से ही तय था लेकिन राज्य में मतदान से ठीक 9 दिन पहले अचानक प्रेम कुमार धूमल (73 वर्ष) को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करके भाजपा ने अपना ही स्टैंड बदल दिया. भाजपा हिमाचल में लगातार यही रुख अपनाए हुए थी कि मुख्यमंत्री के नाम पर फैसला चुनाव के बाद किया जाएगा.
वास्तव में 31 अक्तूबर को पार्टी अध्यक्ष अमित शाह द्वारा धूमल के नाम की घोषणा किए जाने से एक दिन पहले तक भाजपा के वरिष्ठ नेता मीडिया के सवालों के जवाब में रटते रहे कि पार्टी में अनुभवी नेताओं की कमी नहीं है और यह भी कि मुख्यमंत्री पद के लिए किसी नाम की घोषणा न करना पार्टी की रणनीति का हिस्सा है और पहले भी यूपी से लेकर कई राज्यों में पार्टी बिना मुख्यमंत्री घोषित किए चुनाव लड़ी और जीती है. क्यों सीएम उम्मीदवार की घोषणा करनी पड़ी? स्टैंड बदलने का तात्कालिक कारण तो यही समझ में आता है कि भाजपा की हिमाचल इकाई में एक वर्ग ऐसी घोषणा के पक्ष में था क्योंकि कांग्रेस इसी मुद्दे को लेकर भाजपा को 'बिना दूल्हे की बारात' करार दे रही थी और ललकार रही थी कि भाजपा के पास उनके पांच बार सीएम रह चुके वीरभद्र सिंह से टक्कर लेने वाला कोई नेता ही नहीं है! अमित शाह ने राजगढ़ में जब धूमल के नाम की घोषणा की तो यह भी जोड़ा कि वीरभद्र सिंह अपने शासन के भ्रष्टाचार पर बात नहीं कर रहे और बार-बार भाजपाई मुख्यमंत्री के चेहरे का मुद्दा उठा रहे हैं, इसीलिए वह स्पष्ट कर रहे हैं कि भाजपा श्री धूमल के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही है. एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि पार्टी चाहती थी कि कार्यकर्ताओं के मन में कोई भ्रम न रहे और वे उत्साहपूर्वक काम कर सकें.
73 वर्षीय धूमल दो बार (1998 से 2003 तक और 2007 से 2012 तक) हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. लेकिन पार्टी के इस तरह अचानक रुख बदलने से कई सवाल उठ खड़े होते हैं, जैसे कि क्या पार्टी हिमाचल में जीत को लेकर उतनी निश्चिंत नहीं है जितनी दिख रही है? क्या 1990 से हर पांच साल में सरकार बदल देने के हिमाचलवासियों के मिजाज़ को भुना पाने में पार्टी खुद को कमज़ोर पाने लगी है? क्या हिमाचल में सत्ताविरोधी लहर नहीं चल रही है? क्या पार्टी को हिमाचल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता पर भरोसा नहीं है?
उपर्युक्त में से कुछ सवाल बेतुके लग सकते हैं पर हैं नहीं. जब हिमाचल और गुजरात के विधानसभा चुनावों की घोषणा भी नहीं हुई थी तभी से माना जा रहा था कि भाजपा हिमाचल में अपनी जीत को लेकर काफी हद तक आश्वस्त है; भले ही गुजरात में उसे थोड़ी-बहुत परेशानियां लग रही हों! निर्वाचन आयोग द्वारा हिमाचल में चुनाव की तारीखों की घोषणा कर देने और गुजरात में चुनाव की तारीखों की घोषणा टालने को भी इसी सन्दर्भ में देखा जा रहा था. लेकिन हिमाचल में जहाँ मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप झेल रहे हों, गुड़िया हत्याकांड जैसे मामलों के कारण कांग्रेस सरकार परेशानी में हो और कांग्रेस पार्टी गुटबाजी और अपने दुर्बल प्रचार-तंत्र से जूझ रही हो, वहां भाजपा के लिए चिंता की कोई बात नहीं थी. फिर इधर ऐसा क्या हुआ कि हिमाचल में भाजपा को एड़ी-चोटी का जोर लगाने की नौबत आ गई और स्वयं पीएम मोदी जी को धूमल जी के लिए गली-गली भटकना पड़ रहा है?
बीजेपी की दिक्कत क्या है?
दरअसल हुआ यह कि अमित शाह के बेटे जय शाह के कथित रूप से एक साल में 80 करोड़ की कमाई करने का मामला उछलने और भाजपा द्वारा टेलीकॉम घोटाले के घनघोर आरोपी सुखराम और टीएमसी के कालिख पुते नेता मुकुल राय को शामिल कर लिए जाने से पार्टी का भ्रष्टाचार वाला ट्रंप कार्ड पिट गया है. यह भी हुआ कि नोटबंदी (जिसे हिमाचल चुनाव से एक दिन पहले साल पूरा हो जाएगा) और जीएसटी के 'दुष्परिणाम' हिमाचल प्रदेश में भी सामने आने लगे हैं. इसके अलावा तमाम गैर-भाजपा सरकारों वाले राज्यों की सत्तासीन पार्टियाँ (खास तौर पर कांग्रेस) लोगों के मन में यह बिठाने में सफल होती दिख रही हैं कि उनकी रोज़गार और व्यापार की समस्या का मूल कारण मोदी सरकार की आर्थिक नीतियां ही हैं. यही वजह है कि भाजपा को अंदरखाने आशंका है कि कहीं दांव उल्टा न पड़ जाए!
कुछ महीने पहले तक मोदी जी समेत भाजपा नेताओं के भाषणों में झलक रहे आत्मविश्वास की जगह 'बौखलाहट' ने ले ली है. यह हिमाचल की पहली रैली में मोदी जी के हताशा भरे आक्रामक रुख से ही स्पष्ट हो गया था क्योंकि वह विपक्षियों का मखौल उड़ाने में सारी हदें पार करते दिखे थे! दूसरी तरफ भाजपा ने इस पहाड़ी राज्य में अपने मुख्यमंत्रियों से लेकर केंद्रीय मंत्रियों की फ़ौज झोंक दी है. खुद प्रधानमंत्री अब भी हिमाचल में डटे हुए हैं और पिछले लोकसभा चुनाव वाला अपना भाषण हर रैली में दोहरा रहे हैं जिसमें गांधी परिवार पर हमला, गरीबों का हक छीनने वाला पंजा, एक रुपए को घिस कर पंद्रह पैसा बना देना, दिल्ली की सल्तनत, कांग्रेसी दीमक आदि शब्द-पदों की भरमार है.
देखा जाए तो बिलबोर्डों, पोस्टरों, बैनरों, दीवारों, स्थानीय टीवी चैनलों और अखबारों में भी कांग्रेस कहीं नहीं दिख रही. खुद मोदी जी कह रहे हैं कि कांग्रेस मैदान छोड़कर ही भाग गई है और भाजपा के पक्ष में एकतरफा चुनाव हो रहा है. तो क्या भाजपा ने जनता के बीच वयोवृद्ध वीरभद्र सिंह की राजा वाली स्थापित छवि से डर कर बुजुर्गवार धूमल को मैदान में उतारा है!
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