कब ख़त्म होगी नेताओं के नाम पर पुरस्कार व स्टेडियम के नाम रखने की परंपरा?
नयी दिल्लीः देश के सर्वोच्च खेल रत्न के पुरस्कार का नाम बदलकर इसे हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के नाम पर रखे जाने का मोदी सरकार का फैसला स्वागत योग्य है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि नेताओं के नाम पर किसी पुरस्कार या स्टेडियम का नाम आखिर रखा ही क्यों जाये?
मान भी लें कि नेहरु-गांधी के जमाने से इस गलत परंपरा की शुरुआत हुई थी, तब भी उसे ख़त्म करने की बजाय मौजूदा सरकार तो उसे और भी आगे ले जा रही है, तो फिर सोच में फर्क कहाँ रहा. कांग्रेस की सरकारों ने यदि खिलाड़ियों के योगदान की यादें जिंदा रखने के स्थान पर अपने नेताओं की स्मृतियों को जीवित रखने की गलतियां कीं, तो क्या उन्हीं गलतियों को दोहराकर अपनी श्रेष्ठता साबित की जाएगी. समाज हो या सरकार, वो इतिहास की गलतियों से सबक लेकर उसे सुधारने का काम करते हैं, न कि उन्हें दोहराने का.
सही मायने में सम्मान व्यक्त करने का सबसे बेहतर तरीका तो ये होता कि मोदी सरकार मेजर ध्यानचंद के नाम पर ही कोई और नया पुरस्कार शुरू करने की घोषणा करती, जिसका महत्व वह खेल रत्न पुरस्कार जितना ही बनाये रखती. तब न तो एक दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री की स्मृति को मिटाने की जरुरत पड़ती और न ही विपक्ष को इसमें कोई सियासत नज़र आती.
जाहिर है कि कांग्रेस, शिव सेना समेत अन्य विपक्षी दलों को मेजर ध्यानचंद के नाम पर पुरस्कार रखने पर कोई एतराज नहीं है, उनकी आपत्ति राजीव गांधी का नाम हटाने को लेकर है, लिहाज़ा इसमें उन्हें सियासत की बू नज़र आ रही है. वैसे भी अगर नाम बदलने की शुरुआत ही करनी थी, तो ये तो 2014 में भी की जा सकती थी. इसके लिए आखिर सात साल का इंतज़ार करने की क्या जरुरत थी.
वैसे भी किसी एक परिवार से बने देश के तीन प्रधानमंत्रियों की निशानी ख़त्म करना अगर अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की प्राथमिकता में शुमार होता, तो 1998 से 2004 की अवधि में बहुत सारे नाम बदल गए होते. उनके सहयोगियों ने ऐसे सुझाव भी दिये थे लेकिन तब वाजपेयी का एक ही जवाब था- "मैं ऐसा कोई काम नहीं करुंगा जिससे मेरे राजनीतिक विरोधियों को ये अहसास हो कि मैं बदले की भावना वाली राजनीति कर रहा हूं." लिहाज़ा उन्होंने ऐसे तमाम सुझाव को दरकिनार कर दिया था.
हालांकि अब कांग्रेस को अहसास हो गया है कि आगे और भी नाम बदले जाएंगे, इसलिये पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने आज चुटकी लेते हुए कहा कि "शुरूआत हो ही गई है तो अच्छी शुरुआत कीजिए. हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के प्रति सम्मान प्रकट करने का कांग्रेस स्वागत करती है. मेजर ध्यानचंद का नाम अगर बीजेपी और पीएम मोदी अपने छोटे राजनीतिक उदेश्यों के लिए नहीं घसीटते तो अच्छा था. फिर भी मेजर ध्यानचंद के नाम पर खेल रत्न पुरस्कार का नाम रखे जाने का हम स्वागत करते हैं. अब हम चाहते हैं कि नरेंद्र मोदी स्टेडियम और अरुण जेटली स्टेडियम का नाम बदल कर उन्हें भी खिलाड़ियों के नाम पर रखा जाना चाहिए. अब पीटी उषा, सरदार मिल्खा सिंह, मैरी कॉम, सचिन तेंदुलकर, गावस्कर और कपिल देव के नाम से रखिए.''
हालांकि बीजेपी का यही कहना है कि नाम बदलने से आखिर किसी का अपमान कैसे हो गया. यह तो हॉकी के एक महान खिलाड़ी के प्रति सम्मान व्यक्त किया गया है.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)