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ब्लॉग: अल्लाह हो या राम संसद में मजहबी नारों का क्या काम
संसद में शपथ ग्रहण के दौरान जो नजारे थे उन्हें सही नहीं ठहराया जा सकता। सवाल ये उठता है कि लोकतंत्र के मंदिर में विचारों की ऐसी संकीर्णता क्या साबित करती है।
लोकतंत्र के मंदिर यानी देश की संसद में जनता ने अपने-अपने नुमाइंदो को चुनकर भेजा। लेकिन संसद में पता चला कि देश के वो प्रतिनिधि देश और जनता से पहले अपने-अपने मजहब के प्रतिनिधि हैं। सर्वधर्म समभाव से मिलकर बना भारत और दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश जिस संविधान से चलता है उसी संविधान के तहत चुनकर आने वाले सांसद अब लोकतंत्र के मंदिर को मजहबी अखाड़ा बना रहे हैं। संसद में नए सांसदों के शपथ ग्रहण के दौरान गूंजते अल्लाह हु अकबर और जय श्रीराम के नारे ये सवाल खड़े करते हैं।
लोकसभा में जय श्रीराम और अल्लाह हु अकबर के नारे लगने लगे लोकसभा में इस दृश्य के सूत्रधार सत्ता पक्ष में बैठे सांसद थे जिन्होंने शपथ ग्रहण के लिए एमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी बुलाए जाते ही भारत माता की जय और वंदे मातरम के नारे लगाने शुरु कर दिया।
भाजपा सांसदों की ये नारेबाजी मुस्लिम राजनीति के पोस्टर बॉय असदुद्दीन ओवैसी के लिए काफी थी.... जिन्होंने उर्दू में अपनी शपथ पूरी करने के बाद जय भीम-जय मीम और अल्लाह हु अकबर का जवाबी नारा बुलंद कर दिया। भाजपा सांसदों और ओवैसी ने जो सिलसिला शुरु किया उसकी अगली कड़ी सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क रहे जिन्होंने शपथ ग्रहण के बाद वंदे मातरम बोलने से इनकार कर विवाद की पटकथा को आगे बढ़ाया।
ये संसद है, लोकतंत्र का मंदिर है। संविधान ही यहां सबसे ऊपर है लेकिन 17वीं लोकसभा की शुरुआत में ही जो नजारा संसद में दिख रहा है वो सवाल उठाता है कि क्या
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रंगनाथ सिंहवरिष्ठ पत्रकार
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