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सरकार चाहे तो संवैधानिक शर्ते पूरी कर रख सकती है देश का नाम केवल 'भारत', भ्रम की नहीं कोई जरूरत, इंडिया भी है सिक्के का दूसरा पहलू

केंद्र सरकार ने जी20 का एक आमंत्रण-पत्र भेजा, जिसमें प्रेसिडेंट ऑफ भारत लिखा गया. इसको लेकर पूरे देश में बहस शुरू हो गयी. कहा गया कि सरकार इस देश का नाम बदलना चाहती है. हालांकि, सरकार ने अभी तक ऐसा कोई आधिकारिक ऐलान नहीं किया है. ना ही यह कहा गया कि इंडिया नाम को हटाया जाएगा. इसके बावजूद सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारों तक, प्रेस से लेकर चौक-चौराहों तक यही चर्चा गर्म रही कि क्या मोदी सरकार देश का नाम केवल भारत करने जा रही है? अगर उसके ऐसे इरादे हैं भी, तो क्या यह संभव है, क्या इसमें कोई संवैधानिक बाधा या कानूनी अड़चन भी है या सरकार के लिए रास्ता साफ है? 

भारत तो देश का नाम है ही

भारत. इसे हम इंडिया भी कहते हैं. इसका एक नाम हिंदुस्तान भी रहा है. अलग-अलग समय में इस राष्ट्र को अलग-अलग नामों से भले जानते हों, लेकिन भौगोलिक दृष्टिकोण लगभग साफ रहा है. सिंधु घाटी से उतर कर नीचे हिंद महासागर तक के बीच में जो द्वीप पड़ता है, जिसे सप्तद्वीप भी कहा जाता जाता था. उस पूरे भाग को ही तो भारत या इंडिया कहते हैं. अब इसके पहले तो आर्यावर्त, ब्रह्मावर्त इत्यादि भी कहते थे, पर उसको रहने देते हैं. जब अंग्रेज जा रहे थे, देश का बंटवारा हो रहा था तो संविधान सभा में भी चर्चा हुई कि इस देश का नाम क्या रखना चाहिए? सबसे ज्यादा किस नाम से इस देश के लोग नजदीकी जुड़ाव महसूस करते हैं? इस देश के नाम पर चर्चा के साथ हमें यह भी याद रखना चाहिए कि इस देश में 22 भाषाएं हैं. वे भाषाएं संविधान से दर्जा प्राप्त हैं.

इसके अलावा अंग्रेजी भी है. 23 भाषाओं में जो अंग्रेजी में आर्टिकल-1 आएगा, उसी में इस देश का नाम कहा गया है- इंडिया दैट इज भारत- उसके अलावा जो 22 संवैधानिक भाषाएं हैं- तमिल,तेलुगु, कन्नड़, नेपाला, मैथिली, उड़िया, बंगाली इत्यादि- उन सभी में वह ऐसा है कि भारत, जो इंडिया है. इसका मतलब है कि इंग्लिश वाले संस्करण में ही India that is Bharat लिखा है, बाकी सभी भारतीय भाषाओं में भारत दैट इज इंडिया ही लिखा हुआ है. आप किसी भी नाम को चुनें, देश के भौगोलिक स्वरूप को लेकर कोई भ्रम है ही नहीं. वह भ्रम तो जबरन पैदा किया जा रहा है. 

वह भ्रम भी इसलिए पैदा किया जा रहा है कि एक मानसिकता जो कांग्रेस शासित और कम्युनिस्टों द्वारा पढ़ायी गयी है, उसे ही बढ़ावा दिया गया है. उसमें भारत को जान-बूझकर पीछे छोड़ा गया है, इंडिया को ही लगातार इतना इस्तेमाल किया गया है कि वही मुख्य बन गया. इस मिथक को ही सरकार तोड़ने का काम कर रही है. सरकार किसी भी नाम को हटाने नहीं जा रही है, जैसा मुझे लगता है. एक जो इस देश पर एक नाम एक खास मानसिकता के तहत थोप दिया गया है, बस उसी मिथक को तोड़ा जा रहा है. एक बात समझनी होगी कि केवल भारत नहीं, बहुतेरे देश हैं जहां एक से अधिक नाम है. उदाहरण के लिए, 200 वर्षों तक हम पर शासन करनेवाला जो देश था, उसे इंग्लैंड भी कहते हैं, ग्रेट ब्रिटेन भी और यूनाइटेड किंगडम भी. ऐसे ही अमेरिका और यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका भी है. जापान और न्यूजीलैंड के भी दो नाम हैं. इसलिए, इसको ऐसे पेश करना कि यह इंडिया बनाम भारत की लड़ाई है, यह बात बेमानी है.इसको अधिक तूल नहीं देना चाहिए. 

सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्देश

न्यायपालिका यह निर्देश नहीं दे सकती है कि इस देश का नाम यही होगा. 2015 में इस संदर्भ में दाखिल याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बिल्कुल सही फैसला दिया था. यह काम संसद का है. साथ ही साथ यह भी समझना पड़ेगा कि इस तरह की घोषणा क्यों करनी पड़ी? दरअसल, कनफ्यूजन शुरू से ही रखने की कोशिश की गयी है. जब भारत का विभाजन हुआ और पाकिस्तान नामक एक नया देश बना तो देखना चाहिए था कि किस नाम से भारत के लोग सबसे अधिक रिलेट करते हैं. 22 भारतीय भाषाओं में भारत ही है, उसके बाद ही इंडिया आता है, तो यह जान-बूझकर किया गया और वही अब तक चला आ रहा है. यह ऐसा इसलिए किया गया, ताकि आप अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत से दूर रहें और उच्छिष्ट पर ही अपना जीवन बिताएं. अगर आप स्रोत खोजेंगे तो भारत नाम की शुरुआत कहां से हुई है? बहुत पहले अगर आप देखें तो हरियाणा के पास एक ट्राइब था, जो सप्तसैंधव पर राज करते थे. संजीव सान्याल जी ने इस पर बहुत बढ़िया किताब लिखी है. उसके बाद उन्होंने पुरु वंश को हराकर पूरे देश पर अपना राज कायम किया. फिर दाशराज्ञ युद्ध (दस राजाओं की बात) की बात है, जहां से यह पूरा देश एक हुआ और इसका नाम भारत पड़ा. यहीं से ऋग्वैदिक काल शुरू हुआ. इसके बाद जैन मुनियों और तीर्थंकरों में भी एक भरत हुए, फिर महाभारत काल में भरत हैं. तो, जाहिर तौर पर कहीं कोई कनफ्यूजन नहीं है. वह भारत ही है. 

सरकार चाहे तो कानूनी अड़चन नहीं

संविधान सभा में भी श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने यह कहा कि इंडिया जो आप नाम दे रहे हैं, तो भारत भी दीजिए. फिर सवाल आया कि इंडिया और भारत कैसे एक साथ लिखेंगे या ब्रैकेट में कैसे लिखेंगे. तब जाकर बात हुई कि इंडिया दैट इज भारत लिखा जाए. वैसे, सरकार ने अभी ऐसी कोई मंशा जाहिर नहीं की है कि वह देश का नाम केवल भारत करने जा रही है. हालांकि, भारत सरकार के विमानों से लेकर हरेक जगह तक भारत तो लिखा ही जाता है. हां, सरकार अगर चाहे कि वह आज से देश का नाम केवल भारत ही रखेगी, दूसरे नाम इंडिया को हटाएगी, तो सरकार ऐसा कर सकती है. इसके लिए सरकार को संवैधानिक बदलाव करना पड़ेगा. इसके लिए संसद में दो-तिहाई बहुमत की उनको जरूरत होगी. साथ ही जितने भी हमारे राज्य हैं, उनमें से कम से कम 50 फीसदी राज्यों से इसकी अनुमति लेनी होगी. यह कोई नयी और बड़ी बात नहीं होगी. श्रीलंका, थाईलैंड, बर्मा इत्यादि कई देश हैं, जिन्होंने उपनिवेशवाद से मुक्त के साथ अपना नाम बदला है. हमारे देश में ही कई राज्यों के नाम बदले गए हैं, तो यह केवल मानसिकता की बात है. साथ ही, एक बार फिर से यह य़ाद करना चाहिए कि सरकार ने ऐसी कोई घोषणा अभी नहीं की है. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.] 

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