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बदलती भू-राजनीति के साथ ही पलट गयी यूक्रेन, यूरोप और अमेरिका की नई प्राथमिकताएं

डोनाल्ड ट्रंप की व्हाइट हाउस में वापसी के साथ ही वैश्विक राजनीति में भू-राजनीतिक संतुलन में बदलाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. अपने चुनाव अभियान के दौरान ही ट्रंप ने संकेत दे दिया था कि अमेरिका उन्हीं क्षेत्रों में संसाधन लगाएगा, जहां से उसे प्रत्यक्ष लाभ प्राप्त होगा. यही कारण है कि यूरोप और यूक्रेन की सुरक्षा को लेकर अमेरिका की भूमिका सीमित होती जा रही है. ट्रंप ये भली-भांति समझते हैं कि अमेरिका के लिए सबसे बड़ा खतरा अब यूरोप में नहीं, बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के रूप में मौजूद है. 

अमेरिका की प्राथमिकताएं और ट्रंप की नीति

ट्रंप प्रशासन ने स्पष्ट कर दिया है कि अमेरिका अब यूरोप की सुरक्षा का ठेका नहीं ले सकता. उन्होंने बार-बार यह दोहराया है कि यूरोपीय देशों को अपनी सुरक्षा के लिए खुद खर्च उठाना होगा. इस संदर्भ में, यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेन्स्की की हालिया वाशिंगटन यात्रा निराशाजनक रही, क्योंकि ट्रंप प्रशासन ने यूक्रेन को और अधिक सुरक्षा सहायता देने से इनकार कर दिया. इससे साफ़ संकेत मिलता है कि ट्रंप का ध्यान अब इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर है, जहां चीन लगातार शक्ति संतुलन को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहा है. 

इसका सबसे बड़ा प्रमाण ट्रंप की टीम में चीन विरोधी सदस्यों की मौजूदगी है. उपराष्ट्रपति के रूप में जेडी वेंस से लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों में प्रभावी भूमिका निभाने वाले काश पटेल जैसे लोग चीन को अमेरिका के लिए सबसे बड़ा खतरा मानते हैं. ट्रंप प्रशासन का यह झुकाव बताता है कि अमेरिका की रणनीतिक प्राथमिकताएँ अब बदल चुकी हैं. 

यूक्रेन और यूरोप के लिए चेतावनी

अमेरिका की इस नई विदेश नीति का सबसे बड़ा प्रभाव यूक्रेन पर पड़ा है. रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान अब तक अमेरिका ने यूक्रेन को 65 अरब डॉलर की सहायता दी है, जबकि यूरोपीय संघ के सभी 27 देशों ने मिलकर 51 अरब डॉलर की सहायता दी है. यह दर्शाता है कि यूरोप अकेले यूक्रेन की सुरक्षा नहीं कर सकता. अमेरिका की मदद में कटौती के कारण जेलेन्स्की की सरकार पर शांति समझौते के लिए दबाव बढ़ रहा है. 


बदलती भू-राजनीति के साथ ही पलट गयी  यूक्रेन, यूरोप और अमेरिका की नई प्राथमिकताएं

अगर यूक्रेन ट्रंप प्रशासन के शांति प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करता, तो यह निश्चित है कि उसे रूस के खिलाफ़ युद्ध में हार का सामना करना पड़ेगा. यूरोपीय नेता भले ही बयानबाजी कर रहे हों, लेकिन वे आर्थिक और सैन्य रूप से यूक्रेन को पर्याप्त मदद देने की स्थिति में नहीं हैं. यूरोप के पास न संसाधन है और न ही इच्छाशक्ति. यूरोप पहले ही रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण ऊर्जा संकट से जूझ रहा है, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था कमजोर हुई है. यूरोप में गैस और तेल की आपूर्ति बाधित होने से महंगाई बढ़ी है और फ्रांस-जर्मनी जैसे बड़े देश भी राजनीतिक अस्थिरता का सामना कर रहे हैं. 

रूस पर प्रतिबंधों का उल्टा असर

यूरोपीय देशों ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए, लेकिन ये प्रतिबंध अपेक्षित प्रभाव नहीं डाल सके. रूस की अर्थव्यवस्था इन प्रतिबंधों के बावजूद 4% की दर से बढ़ रही है, जबकि यूरोपीय अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ रही है. यूरोप में महंगाई बढ़ने और ऊर्जा संकट गहराने से राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो गई है. इस स्थिति में, यूरोपीय देश अब अपनी सुरक्षा पर अधिक खर्च कर रहे हैं, लेकिन इसमें समय लगेगा और तब तक यूक्रेन का युद्ध में टिके रहना मुश्किल होगा. 

ट्रंप की नीतियां अमेरिका के पारंपरिक गठबंधनों को कम ध्यान दे रही हैं. यूरोपीय नेता, जो अब तक अमेरिकी सुरक्षा पर निर्भर थे, अब आत्मनिर्भर बनने के प्रयास कर रहे हैं. ट्रंप ने साफ़ कर दिया है कि अमेरिका का उद्देश्य अब "अमेरिका फर्स्ट" नीति पर केंद्रित होगा, जहां आर्थिक और रणनीतिक लाभ सर्वोपरि होंगे. 

इसी रणनीति के तहत ट्रंप प्रशासन चीन के खिलाफ़ आक्रामक नीतियां अपनाने के लिए तैयार है. चीन पर टैरिफ लगाना, अमेरिकी युद्धपोतों की दक्षिण कोरिया और जापान में तैनाती और पूर्वी एशियाई सहयोगियों को मजबूत करना इस बात का प्रमाण है कि ट्रंप की प्राथमिकता अब यूरोप नहीं, बल्कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र है. 

यूक्रेन के लिए भविष्य के विकल्प

यूक्रेन के पास अब सीमित विकल्प बचे हैं. पहला विकल्प यह है कि वह ट्रंप प्रशासन के शांति समझौते को स्वीकार कर ले, जिसमें उसे कुछ क्षेत्रीय रियायतें देनी पड़ सकती हैं नहीं तो ऐसा प्रतीत हो रहा कि जेलेन्स्की को अपने पद से हटना पड़ सकता है, क्योंकि उनकी नीतियाँ अब अमेरिका की रणनीति के अनुरूप नहीं हैं. दूसरा विकल्प, जो सबसे कठिन है, वह यह है कि यूक्रेन को अमेरिका की सैन्य सहायता के बिना रूस से लड़ना होगा, जो लगभग असंभव प्रतीत होता है. 

ट्रंप की सत्ता में वापसी ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति के शक्ति संतुलन को बदल दिया है. अमेरिका अब यूरोप और यूक्रेन की सुरक्षा से हाथ खींच रहा है और अपनी प्राथमिकताओं को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में केंद्रित कर रहा है. यूरोपीय नेता घबराए हुए हैं, लेकिन उनके पास अमेरिकी सहयोग के बिना बहुत कम विकल्प हैं. 

यूक्रेन को अब यह स्वीकार करना होगा कि पश्चिमी समर्थन पर निर्भर रहकर वह रूस के खिलाफ़ लंबी लड़ाई नहीं लड़ सकता. ऐसे में, शांति समझौता करना ही उसका एकमात्र व्यावहारिक विकल्प रह जाता है. आने वाले वर्षों में, हम एक नए भू-राजनीतिक युग में प्रवेश करेंगे, जहां अमेरिका के हित यूरोप में कम और चीन को रोकने में अधिक केंद्रित होंगे. संसार में फिर से मिलिट्राइजेशन का युग आ चुका है. और इस नई व्यवस्था में, रूस फिलहाल सबसे बड़ा विजेता बनकर उभरता दिख रहा है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.] 

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