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भारत और अफ्रीका का सांस्कृतिक संगम! सिनेमा, कला और परम्पराएं बनें माध्यम

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाइजीरिया दौरा, जो 17 वर्षों में नाइजीरिया जाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री का दौरा था, भारत-अफ्रीका संबंधों में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था. वे नाइजीरिया दौरे पर जाने वाले चौथे भारतीय प्रधानमंत्री हैं, इससे पहले जवाहरलाल नेहरू (1962), अटल बिहारी वाजपेयी (2003), और डॉ. मनमोहन सिंह (2007) नाइजीरिया गए थे. मोदी नाइजीरिया के दूसरे सर्वोच्च पुरस्कार, 'ग्रैंड कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ नाइजर' से सम्मानित होने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने. यह पुरस्कार इससे पहले ब्रिटिश क्वीन एलिजाबेथ को 1969 में मिला था.

भारत अफ्रीका का मुख्य साझीदार

पिछले एक दशक में, भारत और अफ्रीकी देशों के बीच कूटनीतिक और आर्थिक संबंधों को मजबूत किया गया है, और भारत ने अफ्रीका के विकास में एक प्रमुख साझेदार के रूप में खुद को स्थापित किया है. भारत के अफ्रीकी देशों के साथ संबंध व्यापार, शिक्षा, प्रौद्योगिकी, और कृषि जैसे विभिन्न क्षेत्रों पर आधारित हैं. जैसे-जैसे भारत और अफ्रीकी देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों का विस्तार हो रहा है, दोनों क्षेत्रों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान और समझ को और गहरा करने की आवश्यकता महसूस हो रही है. सॉफ्ट डिप्लोमेसी और जन-संपर्क मजबूत साझेदारी बनाने में मदद कर सकते हैं, जो साझा मूल्यों और लक्ष्यों पर आधारित होंगे, जिससे भारत और अफ्रीका वैश्विक मंच पर मजबूत सहयोगी बन सकते हैं.

सांस्कृतिक समझ कूटनीतिक निकटता बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह प्रभावी संवाद और सहयोग को बढ़ावा देती है. भारत और अफ्रीका के मामले में, यहां भारत में भी अफ्रीका और उसकी विविधता की बेहतर सराहना और समझ को बढ़ावा देना चाहिए . विशेष रूप से जब 25,000 से अधिक युवा अफ्रीकी छात्र भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाई कर रहे हैं और कई हजार अफ्रीकी भारत के चिकित्सा सेवाओं का लाभ लेने के लिए यहां आते हैं.

संस्कृतियाों की साझा समझ जरूरी

अफ्रीकी संस्कृति को जानकर भारत अफ्रीकी देशों के साथ गहरे और अधिक सार्थक रिश्ते बना सकता है. भारत में अफ्रीकी छात्रों को नस्लवाद, बहिष्कार और रूढ़ियों का सामना करना पड़ा है. अफ्रीकी संस्कृतियों के बारे में गलतफहमियां और जागरूकता की कमी इन समस्याओं को बढ़ाती हैं, इसलिए ज्ञान और धारणा में अंतराल को दूर करना महत्वपूर्ण है. भारत में अफ्रीकी छात्रों के लिए एसोसिएशन ऑफ अफ्रीकन स्टूडेंट्स इन इंडिया (AASI) जैसे युवा समूह, भारतीय और अफ्रीकी युवाओं के बीच सार्थक सांस्कृतिक संबंध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

हालांकि, भारत और अफ्रीका के बीच वर्षों से मजबूत कूटनीतिक और आर्थिक संबंध रहे हैं, किन्तु सांस्कृतिक जुड़ाव अभी भी इन संबंधों को मजबूत करने का एक अक्सर अनदेखा पहलू है. अफ्रीकी संस्कृतियाँ विविध हैं, जिनमें विभिन्न रीति-रिवाज, भाषाएँ और विश्वास प्रणालियां हैं. इस विविधता को पहचानना और मनाना, उन रूढ़ियों को तोड़ने में मदद कर सकता है जो अक्सर अफ्रीका को गरीबी, सिविल वॉर और पिछड़ेपन की एक समान और संकुचित छवि के रूप में प्रस्तुत करती हैं. जब भारतीय छात्र अफ्रीकी संस्कृतियों के बारे में सीखेंगे, तो वे अपने अफ्रीकी साथियों के साथ बेहतर संवाद स्थापित कर सकेंगे, जिससे अकादमिक और सामाजिक आदान-प्रदान में समृद्धि होगी. अफ्रीका की विविधता को सराहने और अपनाने से हमारे लोग पूर्वाग्रहों को अपनाने से कम प्रेरित होंगे.

अफ्रीकी संस्कृति ने भारतीय कला, भोजन और संगीत पर अप्रत्यक्ष रूप से महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है. संगीत के क्षेत्र में, भारतीय शास्त्रीय संगीत और अफ्रीकी लय में ढोल का समान प्रयोग होता है. भारतीय नृत्य रूप जैसे भरतनाट्यम और ओडिसी, जिनमें जटिल पैरों की चाल और व्यक्तिपरक अंग-संचालन होते हैं, अफ्रीकी नृत्य शैलियों से मिलते-जुलते हैं. भोजन की दुनिया में, भारतीय महासागर के किनारे अफ्रीकी व्यापारियों के प्रभाव का असर देखा जा सकता है, खासकर तटीय क्षेत्रों में, जहां मसाले और पकाने की विधियाँ सदियों से मिश्रित हो चुकी हैं.

फिल्मों के माध्यम से सांस्कृतिक आदान-प्रदान

नॉलीवुड और बॉलीवुड दुनिया की दो सबसे प्रभावशाली और प्रमुख फिल्म इंडस्ट्री हैं, जो क्रमशः नाइजीरिया और भारत की सिनेमाई शक्ति का प्रतीक हैं. हालांकि, भारतीय सिनेमा प्रेमियों को नॉलीवुड फिल्मों या सामान्य रूप से किसी अफ्रीकी फिल्म को नियमित रूप से देखने का अवसर नहीं मिलता. 2015 में, दिल्ली के सीरी फोर्ट ऑडिटोरियम में वुडपेकर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (WIFF) के तहत नॉलीवूड फिल्मों का एक विशेष प्रदर्शन आयोजित किया गया था. कई नॉलीवुड फिल्म निर्माताओं और अभिनेताओं की उपस्थिति में यह प्रयास अफ्रीकी सिनेमा और फिल्म निर्माताओं को भारतीय दर्शकों से जोड़ने का एकमात्र प्रयास था. तब के बाद से, अफ्रीकी फिल्मों को भारत में किसी प्रमुख फिल्म महोत्सव में स्पेशल फोकस के रूप में नहीं दिखाया गया.

भारत के विभिन्न हिस्सों में अफ्रीकी फिल्म और खाद्य महोत्सवों के साथ-साथ रंगमंच और कला शो आयोजित करना, सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए एक परिवर्तनकारी मंच प्रदान कर सकता है, जो भारतीयों को अफ्रीकी संस्कृतियों और लोगों की समृद्धि का अनुभव करने और जुड़ने का एक महत्वपूर्ण अवसर देगा. प्रधानमंत्री मोदी ने 2018 में इस महत्व को रेखांकित करते हुए कहा था, "भारत की प्राथमिकता केवल अफ्रीका नहीं है; भारत की प्राथमिकता अफ्रीका के लोग हैं – अफ्रीका में हर आदमी, महिला और बच्चा. हमारे अफ्रीका के साथ साझेदारी केवल रणनीतिक चिंताओं और आर्थिक लाभों से परे है. यह उन भावनात्मक बंधनों पर आधारित है जो हम साझा करते हैं और उस एकजुटता पर जो हम महसूस करते हैं."

रूढ़ियों को तोड़ने और भारत के सांस्कृतिक परिदृश्य को समृद्ध करने से लेकर, मजबूत कूटनीतिक, शैक्षिक और आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने तक, सांस्कृतिक जुड़ाव का महत्व अत्यधिक है. जैसे-जैसे भारत और अफ्रीका वैश्विक मंच पर अपनी साझेदारी को और बढ़ाते हैं, आपसी सांस्कृतिक समझ शांति, विकास और साझी समृद्धि को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

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