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बजरंग दल को बैन करने के मुद्दे पर मचा सियासी घमासान, जानिए कांग्रेस को कितना फायदा, कितना नुकसान

कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में बजरंग दल को बैन करने की बात कही. इसके साथ ही उसने पहले से ही बैन PFI को भी बैन करने की घोषणा की. इसके बाद भाजपा ने सियासी जंग छेड़ दी है. दोनों ही पार्टियों की तरफ से जुबानी जंग जारी है. लेकिन सवाल है कि कर्नाटक जहां कि 80 % हिंदू आबादी है. ऐसे में सवाल है कि कि आखिर कांग्रेस कर्नाटक चुनाव के घोषणा पत्र में इस तरह से हिंदूवादी संगठन को बैन करने के पीछे क्या रणनीति है? उसे इसका लाभ कर्नाटक में कैसे मिलेगा? मेरे हिसाब से कांग्रेस को अपने घोषणा पत्र में इस तरह से बजरंग दल को बैन करने की बात नहीं करनी चाहिए थी. क्योंकि जो एक आइडियल घोषणा पत्र होता है उसमें पार्टियों को ये बताना चाहिए कि वे सरकार में आने के बाद लोगों के लिए क्या योजनाएं लेकर आएंगे. उनका विजन क्या है. विकास कार्यों को कैसे किया जाएगा. गरीबों के लिए क्या योजनाएं होंगी.

मेरे ख्याल से उन्होंने इसे अपने चुनावी घोषणा पत्र में डालने से पहले ये नहीं सोचा था कि उसे कोई इतनी बारीकी से देखेगा. पहली बात तो यह कि पिछले साल ही भाजपा ने पीएफआई को बैन कर दिया था. उसके बाद ये स्टेटमेंट घोषणा पत्र में डालना मुझे लगता है कि ये भी ओवरसाइट लग रहा है. मुझे नहीं लगता है कि इससे कांग्रेस को कोई ज्यादा फायदा होने वाला है. 

जहां तक नुकसान की बात है, मेरा अपना मानना है कि बजरंग दल कोई ऐसा संगठन नहीं है जिसका की हिंदुओं में बहुत बड़ा सपोर्ट बेस है. हां, ऐसे जरूर कुछ इलाके हैं जहां पर उनका ज्यादा प्रभाव है लेकिन वो भी काफी सीमित है. उनका प्रभाव खासकर के ओबीसी वर्ग में है. बीजेपी ने ओबीसी का हिंदूकरण किया है. आरएसएस और भाजपा ने भी बजरंग दल के लिए उसी सेक्शन का ग्रूमिंग किया है. ओबीसी वर्ग के ही कुछ लोग भाजपा के लिए एक सैनिक की तरह बन जाते हैं. इसका असर अगर आप कहें तो कर्नाटक के तटीय इलाकों में देखने को मिल सकता है. तटीय कर्नाटक बीजेपी की हिंदुत्व लैब के नाम से जानी जाती रही है और यहाँ कांग्रेस इतनी मजबूत भी नही है तो यह नुकसान हो सकता है. इन इलाकों में ऐसे भी पहले से कांग्रेस के जितने के कम ही आसार दिखते हैं. इसके अलावा थोड़ा सा इसका प्रभाव दक्षिण कर्नाटक में पड़ेगा जहां पर बजरंग दल का थोड़ा सो होल्ड है.


कांग्रेस के घोषणा पत्र के आधे घंटे के बाद ही भाजपा की तरफ से प्रतिक्रिया आयी कि ये तो हनुमान की जमीन है. तेजस्वी सूर्या का भी बयान आया कि मैं तो बजरंगी हूं और देखते हैं कि वे कैसे बैन करेंगे. इस तरीके से अगर इसे देखें तो कांग्रेस ने चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा को इसे भुनाने के लिए एक हथियार दे दिया है. उसने अपने घोषणा पत्र में इस तरह का स्टेटमेंट डाल कर. मेरे हिसाब से कांग्रेस ने अपने पैर में इस तरह से कुल्हाड़ी मारी है कि उसने भाजपा को एक मौका दे दिया है. नहीं तो अभी तक कांग्रेस का प्रभाव अच्छा चल रहा था. अभी तक जितने भी सर्वे हुए हैं उसमें भी यही दिख रहा है इस बार के कर्नाटक चुनाव में मुद्दे ज्यादा हावी हैं. अभी तक महंगाई, गरीबी और बेरोजगारी के मुद्दे चुनाव में छाए हुए थे.

लेकिन घोषणा पत्र में इस तरह के स्टेटमेंट से कांग्रेस के लिए थोड़ा सा बैक फायर हुआ है. ऐसा मेरा मानना है. लोगों का तो इतना नहीं कहा जा सकता है लेकिन कांग्रेस ने भाजपा को एक हथियार जरूर दे दिया है. चूंकि भाजपा इसे जिस तरह से उपयोग करेगा वो कांग्रेस के लिए नुकसानदायक होगा. लोगों के लिए तो जैसा मैंने कहा कि बजरंग दल एक मिलिटेंट ऑर्गेनाइजेशन है, कई जगहों पर मर्डर सब में भी इसकी संलिप्तता है. पिछले महीने ही मैसूर मंडिया के पास एक जगह है रामनगर जहां पर एक गाय को लेकर लिंचिंग की घटना सामने आई थी. उसमें भी बजरंग दल के सदस्यों का हाथ था. अंततः आरोपितों को पकड़ लिया गया. दक्षिण कर्नाटक में इनका प्रभाव बढ़ता जा रहा है.

कांग्रेस चुनाव जीतने के बाद भी ये कह सकती थी, कर सकती थी. उसे चुनावी घोषणा पत्र में शामिल नहीं किया जाना चाहिए था. मेरे ख्याल से भाजपा इसे बचे हुए चुनाव प्रचार के दिनों में जमकर इस्तेमाल करेगी. लेकिन इससे कांग्रेस को कितना नुकसान होगा यह कह पाना तो मुश्किल होगा. मुझे लगता है कि ये लोगों के बीच ज्यादा रेजोनेंस नहीं हो पाएगा. हां, इतना जरूर है कि कैंपेनिंग में मोदी जी, नड्डा और अमित शाह बने हुए हैं तो वे इसे भुनाने की कोशिश जरूर करेंगे. भाजपा तो ऐसे भी चाहती है कि वे इन्हीं सब मुद्दों को आगे रखे. दो दिनों से यह दिखना शुरू भी हो गया है. इसलिए कैंपेनिंग में कांग्रेस का जो अब तक अपर हैंड था वो अब थोड़ा सा उस पर असर पड़ेगा.

हम सभी ये जानते हैं और ये मेरा व्यक्तिगत विचार है कि हिंदुत्व का मुद्दा एक मैन्युफैक्चर्ड मुद्दा है. ये कोई मुद्दा ही नहीं है. इसे तो जानबूझ कर बनाया गया है. भाजपा इसे हमेशा बनाए रखने के लिए मीडिया का सहारा लेती है. अभी जितनी भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रैली कर रहे हैं वो उसमें कुछ खास नहीं बोल रहे हैं. अगर आप उनके भाषण देखें तो वो बहुत ही खोखले भाषण हैं. मुद्दों की बात नहीं हो रही है लेकिन मीडिया उनकी एक-एक बात को ड्रम करके मुद्दा बनाकर दिखा रही है. भाजपा तो मीडिया की मदद से इन मुद्दों को पब्लिक डोमेन में बनाए रखने की कोशिश करती रही है और वे ऐसा करते रहेंगे. इसमें कोई दो राय नहीं हैं. 

लेकिन हम कर्नाटक के चुनावी लड़ाई से पहले अच्छी तरह से देख पा रहे हैं कि कोविड-19 के बाद से यहां पर जो जनता का लिविंग स्टैंडर्ड गिरा है. वो अभी तक वापस पटरी पर नहीं आया है. बहुत सारे लोग गरीबी रेखा से नीचे चले गए हैं. उन्हें खाने को नहीं मिल रहा है. किसी भी सर्वे में लोगों ने यह नहीं बताया कि वे कर्नाटक सरकार के फलाने योजना के लाभार्थी रहे हैं. ऐसे तो भाजपा हमेशा गाना गाते रहती है कि हमारी स्कीम इतनी है. हमने इतने लोगों को मुफ्त में राशन दिया है. जैसे यूपी के चुनाव में बहुत सारी योजनाओं की बात हुई थी और ये कहा गया कि योजनाओं की बदौलत ही भाजपा वहां पर जीती. कर्नाटक चुनाव का बिगुल बजने से जो भी सर्वे हुए हैं उसमें से सिर्फ आठ लोगों ने यह बता पाया कि केंद्र या राज्य सरकार के वे किसी योजना के लाभार्थी हैं. लोगों को यह इस बात का भान होने लगा है कि हिंदू-मुस्लिम के मुद्दे में कुछ नहीं रह गया है. वे अब इससे ऊपर सोच रहे हैं. लोग रोजगार की बात कर रहे हैं.

आप सोचिए की कर्नाटक जोकि सुख-समृद्धि वाला राज्य है यहां पर गरीबी और महंगाई की लोग बात कर रहे हैं. जबकि ये सारे मुद्दे उत्तर भारत के राज्यों के हुआ करते थे. मुझे जो लग रहा है वो ये कि अब चूंकि प्रचार के लिए बहुत कम समय रह गया है ऐसे में भाजपा की पूरी कोशिश होगी किसी भी तरह से वह हिंदुत्व का कार्ड खेले लेकिन अंत में जो वोटिंग होगी उसमें तो यही दिखाई पड़ रहा है कि लोगों के लिए उनकी जरूरतें ज्यादा महत्वपूर्ण होने वाली है. हम ये जानते हैं कि भाजपा के पास धन की कोई कमी नहीं है और चुनाव के एक हफ्ते पहले जितनी भी लुभावनी चीजें की जा सकती है, जितने भी मैनिपुलेशन किए जा सकते हैं वो सब हो रही हैं. लेकिन अभी तक के जो ट्रेंड्स सामने आ रहे हैं उसमें कांग्रेस आगे है. ये देखा जा रहा है कि जहां भी विपक्ष मजबूत होता है वहां पर भाजपा के लिए चुनाव निकाल पाना मुश्किल हो जाता है. कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस को लोगो फूली कंसीडर करते हैं और भाजपा को अभी भी एक बाहरी पार्टी के तौर पर ही देखा जाता है. यहां पर लिंगायत वोट बैंक के माध्यम से येदियुरप्पा ने जरूर भाजपा को एंट्री दिला दी है. लेकिन अभी भी कांग्रेस यहां पर एक मजबूत पार्टी है. पिछले चुनाव में भी कांग्रेस का वोट परसेंटेज बढ़ा था. 

अगर ऑपरेशन लोटस नहीं हुआ तो पिछली बार भी कांग्रेस और जेडीएस की मिलीजुली ही सरकार थी. 2018 में भाजपा तीसरे नंबर की पार्टी थी. इस बार तो पिछले समय से भाजपा की स्थिति और भी खराब है. चूंकि बसवराज बोम्मई बहुत ही अनपॉपुलर लीडर हैं. येदियुरप्पा और बोम्मई के वक्त में ही बहुत सारे घोटाले सामने आए हैं. कोविड के दौरान सरकार का निकम्मापन सामने आया है. ये सारी चीजें लोगों को दिख रही हैं. ये सरकार फेमस है सबसे अधिक भ्रष्ट होने के लिए, कॉन्ट्रैक्टर्स एसोसिएशन तक ने इसे 40 % कमीशन वाला सरकार बता दिया है. कर्नाटक चुनाव में भ्रष्टाचार भी बहुत बड़ा मुद्दा है. तो कुल मिला कर परिस्थितियां बहुत अच्छी नहीं दिख रही है भाजपा के लिए कर्नाटक में.

 
[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है.]
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