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तेजस्वी का किया जा रहा यूज, सीएम बनाने का दावा हवा-हवाई, महागठबंधन में दरार, बदल सकती है राजनीतिक बयार

बिहार में तेजस्वी यादव को होली के बाद मुख्यमंत्री बनाने का आरजेडी विधायक विजय मंडल की तरफ से दावा किया गया है. लेकिन दूसरी तरफ उनके इस दावे को जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने पूरी तरह से खारिज करते हुए कहा कि अभी कोई विधानसभा का चुनाव नहीं है. विधानसभा का चुनाव 2025 में होगा और उस वक्त विधायक फैसला लेंगे. लेकिन मैं शुरुआती दौर से ही जानती थी की ये कोई गठबंधन नहीं है बल्कि सहूलियत से की गई शादी है और ये बड़े ही विचित्र लोग हैं. ये एक ट्रांजेक्टरी फेज है यानी कि कुछ समय के लिए आप इतना ज्यादा इच्छुक हो जाते हैं सत्ता में आने के लिए कि येनकेन-प्रकारेण आप कोशिश करते हैं कि किसी तरह से सत्ता हासिल कर लें और ये गठबंधन उसी का नतीजा है. बिल्कुल ही अलग सोच रखने वाले लोग एक साथ आ गए हैं.

मैं नहीं जानती की नीतीश जी क्या सोचते हैं. लेकिन उनकी ये सोच की बीजेपी के साथ काम करना और फिर एकदम से करवट लेकर राजद के साथ आ जाना. कांग्रेस का तो रोल ही नहीं पता चलता है कि वो किस तरफ जाना चाहते हैं.  एक समय था कि कांग्रेस आरजेडी के विरोध में ही वोट पा कर सत्ता में आये थे. उनका नारा था कि लालू को हटा दीजिए तो बिहार बेहतर परफॉर्म करेगा और वही आज आरजेडी के साथ कॉम्प्रोमाइज कर लिये हैं. उपेन्द्र कुशवाहा जी हर समय अपनी राग अलापते रहते हैं. वो कभी खुश ही नहीं रहते हैं और एक समुदाय को लेकर वो अपना एक दलीय व्यवस्था करना चाहते हैं और वो अपने को उसका लीडर या मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं.

तेजस्वी को सत्ता बचाए रखने के लिए किया जा रहा यूज

तेजस्वी बहुत यंग और डायनेमिक लड़का है जिसको यूज किया जा रहा है. नीतीश जी भी चाह रहे हैं के सीएम का फेस बनाकर उनको प्रेजेंट करें. लेकिन इस पूरी राजनीति में जो पिस रहे हैं वो जनता है क्योंकि उनके सामने बिहार की पूरी राजनीति में नेतृत्व का संकट दिख रहा है. एकदम विघटनकारी तत्व आ चुके हैं. एक आदमी कह रहा है कि अगले महीने बन जाएंगे. एक कह रहा है कि अगले चुनाव में बन जाएंगे और जनता क्या सोच रही है और वो किसको चाहती है वो कोई मायने नहीं रखता है...तो बिहार की ये स्थिति है जो बहुत ही कष्टदायक स्थिति है. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि विधायक कौन होगा ये तो जनता तय करेगी क्योंकि जिसके विधायक आएंगे उस हिसाब से न उसकी सरकार बनेगी. तो ये तो अंततः जनता की शक्ति है ने जिसको ये लोग एकदम सेकेंडरी स्टेटस दे रहे हैं.

दोयम दर्जा पर जनता है और प्राइमरी पर नेता हैं जो उभर कर आ गए हैं राजनीति में...तो मैं मानती ही नहीं इस गठबंधन को और मैं क्या ये तो लोग भी समझ रहे हैं. कोई खुल कर बोलते हैं कोई नहीं बोलते हैं, लेकिन जनता जान रही है कि गठबंधन कहां है. ये तो सिर्फ अवसरवादिता है या जिसे हम अवसरवादी राजनीति कहते हैं. आज के समय में जो गठबंधन बनते हैं या बन रहे हैं वो किसी विचारधारा या आइडियोलॉजी के आधार पर नहीं है. ये तो सिर्फ सत्ता में आने और उसका नेतृत्व करने मात्र के लिए है.

राजद और जदयू में अंदरूनी आइडियोलॉजिकल मतभेद बहुत अधिक

आरजेडी विधायक विजय मंडल जी के दावे को मैं बहुत तवज्जो नहीं देती हूं. लेकिन राजद के अंदर ये भय तो है कि कहीं नीतीश कुमार फिर से पाला नहीं बदल लें. एक बात और ये कि कहीं न कहीं ये घुटन उभर कर पब्लिक के सामने आ जाएगा इस बात का अंदेशा मुझे है कि ये होने वाला है देर या सबेर. चूंकि दोनों पार्टियों में अंदरूनी आइडियोलॉजिकल मतभेद तो बहुत ज्यादा है और चाचा-भतीजा कब करवट बदल लें ये कहा नहीं जा सकता है. ये क्यों नहीं हो सकता है कि नीतीश जी फिर से पाला बदल लें. इस बात का तो इतिहास गवाह है. ऐसा होता आया है और जब चार बार हो चुका है तो पांचवीं बार होने की संभावना को नाकारा नहीं जा सकता है. अपनी गद्दी को बचाए रखने के लिए ये सारी संभावनाएं व कूटनीति तो बनती हैं.

2024 लोकसभा चुनाव के लिए नीतीश की स्थिति अच्छी नहीं

लोकसभा चुनाव 2024 में  अब ये तो मैं नहीं कह सकती की लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार की क्या रणनीति होगी लेकिन मैं इतना जरूर कहूंगी कि उनकी स्थिति अच्छी नहीं है ये दिख रहा है और वे किस रणनीति पर चलेंगे ये तो समय बताएगा. इसके लिए तो हमें इंतजार करना होगा. क्योंकि आज कल की जो राजनीति है ने वो बहुत ही अनप्रिडिक्टेबल हो गया है यानी कि कुछ भी ठीक से कहा नहीं जा सकता है. ये इसलिये कि कौन कहां और कब करवट लेगा ये तो पता भी नहीं चलता है...तो चाहे मांझी हों, उपेंद्र कुशवाहा हो या मंडल ये सबकी बात है.

इसलिए, मैं इस समय इसे लेकर जजमेंटल नहीं हो सकती हूं. देखिये जीतन राम मांझी के बेटे बिहार के सीएम क्या पीएम तक बन जाएं बिहार का इसमें कोई दिक्कत नहीं है. हमें तो ये भी उम्मीद है क्योंकि वे एक समय रेस में थे तो हो सकता है कि वे सेंटर के रेस में आ जाएं इसमें क्या दिक्कत है. देखिये, बिहार में राजनीतिक अस्थिरता आ चुकी है. ये समय कभी भी जबरदस्त टकराव और बदलाव की संभावनाओं को इंगित कर रहा है.  

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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