श्रेय लूटने से जिम्मेदारी ठेलने तकः RJD व JDU के बीच घूम चुका समय-चक्र और बिहारी राजनीति

आये दिन बिहार में राजनीति को गर्म करने वाले बयानों का दौर चल रहा है. नीतीश बाबू पिछले लगभग महीने भर से यात्रा पर हैं और आये दिन जो नयी-नयी योजनाओं की सौगात बांटते आगे बढ़ रहे हैं, उससे विपक्ष पर अप्रासंगिक हो जाने का खतरा मंडराने लगा है. इसी बीच दिल्ली में चुनाव होते हुए भी राहुल गांधी बिहार चले आये इसने विपक्षी वोटों के बंटवारे में और खेल कर दिया है. विपक्ष कैसे स्वीकारे कि जिस कांग्रेस का सफाया करके वो सत्ता में आये थे, उनका वोट बैंक उनकी ओर फिर से सरकने लगा. उनको पता है कि अगर ऐसा हुआ तो सबसे बड़ी दिक्कत उन्हें ही होने वाली है? इसके अलावा लालू यादव के शासनकाल में जिन कम्युनिस्टों को बिहार से करीब-करीब साफ कर डाला था, तेजस्वी यादव के दौर में उसमें फिर से प्राण फूंक दिए गए हैं. राजद पर अपनी पकड़ जाती हुई लालू यादव को भी समझ में आ ही रही थी इसलिए अब वो अधिकारिक तौर पर पार्टी की कमान तेजस्वी को थमाकर किनारे हटने लगे हैं.
बिहार में एक मुद्दा युवा नेतृत्व भी
इसके अलावा बिहार में एक मुद्दा युवा नेतृत्व का रहा. बाहर से बिहार को देखने वालों को भले ही ये न दिखे, लेकिन मतदाताओं के लिए पुराने मुद्दे अब काम के नहीं रह गए हैं. बिहार की 40 प्रतिशत से अधिक आबादी आज ऐसे युवाओं की है, जिनके लिए पुराने मुद्दे ऐसे हैं, जो उन्होंने देखे ही नहीं. उनके लिए सामाजिक न्याय कोई मुद्दा नहीं होता, क्योंकि जातिवाद वैसा दिखता नही जैसा राजनेता दिखाना चाहते हैं. जंगलराज मुद्दा नहीं क्योंकि वो भी उन्होंने व्यक्तिगत स्तर पर महसूस नही किया. जातिगत जनगणना से तथाकथित सामाजिक न्याय के पैरोकारों के लिए एक नयी समस्या ये है कि अब दलित और अत्यंत पिछड़ा वर्ग भी अपनी संख्या के हिसाब से हिस्सेदारी मांगने लगा है. युवा बिहार के लिए जो समस्याएं हैं उसे संबोधित करने के लिए मतदाता एक युवा नेतृत्व ढूंढ रहा है. राजद अपने एक नेता तेजप्रताप को किनारे करके तेजस्वी के जरिये ये युवा नेतृत्व दे रही है. चिराग पासवान भी लोकसभा चुनाव के बाद से बिहार में एक स्थापित नाम हो गए हैं. इसकी तुलना में जद(यू) के पास कोई नेतृत्व नहीं है. नेतृत्व के मामले में पहले से ही पिछड़ी हुई भाजपा के पास भी चेहरों की कमी है.

प्रगति यात्रा में योजनाओं की बाढ़
तुलनात्मक रूप से नीतीश कुमार जनता की नब्ज पकड़ने में वैसे ही कुशल हैं, जैसे दिल्ली के केजरीवाल. इसलिए उनकी यात्राओं में जारी बयानों और नयी योजनाओं में आपको इसकी झलक दिख जाएगी. उत्तर बिहार में प्रगति यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा घोषित विभिन्न योजनाओं को लागू करने के लिए मंत्रिपरिषद और विभाग ने अपनी मंजूरी दे दी है. करीब 20,000 करोड़ रुपये की लागत वाली कुल 188 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है. इनमें से 121 को मंत्रिपरिषद से मंजूरी मिली, जबकि 67 को विभागीय स्तर पर मंजूरी दी गई. शहरी विकास एवं आवास विभाग को पांच, ग्रामीण निर्माण विभाग को दो योजनाओं को मंजूरी मिली. सात पर्यटन पहलों को भी हरी झंडी दी गई. ऊर्जा विभाग को चार योजनाओं, जल संसाधन विभाग को 12 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई. इसके अलावा दो स्वास्थ्य संबंधी योजनाओं को भी मंजूरी दी गई.
योजनाओं पर एक नजर डालते ही ये दिख जाता है कि आवास, ग्रामीण क्षेत्रों में निर्माण, जल संसाधन, उर्जा और स्वास्थ्य पर ध्यान दिया जा रहा है. ये योजनाएं सीधे तौर पर निजी क्षेत्र में निवेश और रोजगार सृजन को बढ़ावा देंगी. इसके अलावा पर्यटन पर जोर देकर बिहार सरकार एक ऐसे क्षेत्र को बढ़ावा दे रही है जो निजी क्षेत्र जैसे गाड़ियों के परिचालन, होटल इत्यादि व्यवसायों को बढ़ावा देने वाला क्षेत्र है. जाहिर है युवा नेतृत्व, नए मुद्दे, और विपक्ष में आपसी सामंजस्य की कमी के कारण ऐसे मुद्दों का विरोध करने के लिए विपक्ष के पास कुछ बचा नहीं है. बड़े पैमाने पर नियुक्ति पत्र बांटने की सरकारी कवायद के क्रम में राजद के पास “शिक्षकों को नौकरी दी” वाला जुमला भी नहीं बचा है. ऐसे में राजद वापस अपने एम.वाय. (मुहम्मडेन-यादव) समीकरण की ओर लौटने के प्रयास में है. इसके लिए राजद को हाल में ही मधुबनी में एक कथित इमाम की पुलिस द्वारा पिटाई का मुद्दा हाथ आ गया है.
इमाम की पिटाई का मसला
मधुबनी जिले के कटैया, बेनीपट्टी में कथित रूप से पुलिस उपाधीक्षक ने मुहम्मद फिरोज की अकारण बेरहमी से पिटाई की. तेजस्वी यादव अपने दल-बल के साथ नीतीश सरकार की पुलिस के आचरण को क्रूरतापूर्ण, अमानवीय व्यवहार, अत्याचार, अन्याय और शोषण के विरुद्ध लड़ाई की बातें करते हुए पीड़ित फिरोज से मिलने बेनीपट्टी, मधुबनी पहुंचे. यहां गौर करने लायक ये है कि दरभंगा और मधुबनी के 20 में से 17 विधायक भाजपा/जद(यू) के हैं. विगत दो दशकों से मधुबनी-दरभंगा-झंझारपुर के सांसद भी इन्हीं पार्टियों के रहे हैं. तेजस्वी का आरोप है कि नीतीश प्रशासन जात-धर्म के आधार पर भेदभाव करता है. इसी मौके पर बोलते हुए तेजस्वी ने कई और नाम भी गिनवाए. ऑटोचालक मुन्ना झा, पास के ही एक कम्पाउण्डर सुनील झा इत्यादि की हत्या के मामले भी तेजस्वी यादव ने गिनवाए. यहां गौर करने लायक है कि दरभंगा-मधुबनी आदि क्षेत्रों को मैथिल ब्राह्मण बहुल भी माना जाता है. इनकी अच्छी-खासी संख्या होने के कारण, इन क्षेत्रों में चुनावों को भी ये प्रभावित करते हैं, इसलिए तेजस्वी यादव इनका नाम ले रहे थे, ये अनुमान लगाना सहज ही है.
इस तरह बिहार में जो राजनीति कुछ दिन पहले तक राजद और जद(यू) के बीच नौकरियां देने का श्रेय लूटने की थी, उसमें राजद लड़ाई हारती दिख रही है. नीतीश बाबू ने इतने नियुक्ति पत्र बांट लिए और इतनी नयी नौकरियों की घोषणाएं हो जाने की संभावना है कि राजद के लिए “नौकरियां दी” के मुद्दे पर वोटों की फसल काटना संभव नहीं होगा. अब मुख्यमंत्री को अक्षम बताकर अपराधों की जिम्मेदारी जंगलराज से नीतीश शासन पर ठेलने पर राजनीति पहुंच चुकी है. बीच-बीच में नीतीश कुमार की बिगड़ती तबीयत का छौंका भी लगाया जा रहा है. चुनावी वर्ष में कौन सी अलमारियों से कौन से कंकाल निकाले जाते हैं, अब बस वही देखना बाकी है.
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